पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंकहने को पिता की सरकारी नौकरी और खुशियों से भरा परिवार, लेकिन मैं इतनी बीमार रहती कि खुशियां क्या होती हैं, इसकी सुध ही न थी।
बचपन से रही बीमार
मध्यप्रदेश में जन्मी और अहमदाबाद में पली-बढ़ी नेहा टंडन वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, ‘मुझे आर्थिक नहीं शारीरिक रूप से परेशानियां रहीं। बचपन से ही कुपोषण और कम वजन का शिकार रही।
पढ़ने-लिखने में अच्छी थी, लेकिन बीमारी मेरा पीछा नहीं छोड़ती थी। कई बार खीझ उठती कि पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। खैर…जैसे-तैसे 12वीं पास कर ली और कर्णाटक से इंजीनियरिंग पढ़ी। ग्रेजुएशन पूरी होते ही शादी हो गई।
हर कदम पर झेला संघर्ष
मायका हो या ससुराल कहीं भी लड़का-लड़की वाला भेदभाव नहीं देखा, लेकिन जब नौकरीपेशा जिंदगी में आई तो हर कदम पर संघर्ष झेला। सबसे पहली चुनौती लड़की होने की वजह से फील्ड में न जाने देने की थी।
मुझे याद है, अहमदाबाद में नौकरी कर रही थी और मुझसे बार-बार कहा जाता कि तुम्हारे डिजाइन अच्छे नहीं होते। बाकी लोगों को देखो वो कैसे साइट पर जाकर अच्छे डिजाइन बनाते हैं। जब मुझे फील्ड पर जाने ही नहीं दिया जाएगा तो मैं कहां से अच्छे डिजाइन लाती।
वर्कप्लेस पर झेला भेदभाव
राजस्थान में जब एक बिल्डिंग का काम चल रहा था तो वहां मुझे भेजा गया। जितना मैंने पढ़ा था उसके मुताबिक राजस्थान में रेत है तो वहां खुदाई बहुत ज्यादा करनी पड़ती है। तब मजबूत बिल्डिंग बन पाती है, मैंने इसी सोच के साथ डिजाइन बनाकर दे दिया, लेकिन फिर मुझे डांट पड़ी।
मैंने ये काम करते-करते एमबीए किया। क्योंकि अभी तक ये समझ आ गया था कि ये मेरी फील्ड नहीं है, यहां मैं नहीं टिक पाऊंगी। मैंने नौकरी छोड़ दी और फ्रीलांसिंग इंग्लिश पढ़ाने लगी। ये वो समय था जब घर, नौकरी, एमबीए की पढ़ाई साथ-साथ चल रहा था।
दुख भरे दिन बीते फिर पीछे नहीं देखा
दुख भरे दिन जब बीते तब 2007 के बाद वापस मुड़कर नहीं देखा। एमबीए के बाद इन्वेस्टमेंट बैंक में काम करने लगी। चूंकि मेरा ससुराल रायपुर में है तो हसबैंड की डॉक्टरी पूरी होने के बाद उन्होंने तय किया कि रायपुर जाकर ही अस्पताल शुरू करते हैं।
रायपुर जाने से पहले मैं दुबई जॉब करके आ चुकी थी, लेकिन इस नौकरी के साथ मैं पति के साथ नहीं रह पा रही थी फिर लगा कि लव मैरिज की है तो क्या हम सिर्फ नौकरियों के लिए जीते रह जाएंगे, एक-दूसरे का प्यार नहीं मिलेगा। बस इसी भाव के साथ मैंने पति का दामन थाम लिया और रायपुर चली आई।
साड़ी पहनना कठिन लगा
ससुराल में हसबैंड का बिजनेस सेट कराने के लिए क्लाइंट्स से जब मिलना पड़ता तो साड़ी पहननी पड़ती। अब मैंने कभी साड़ी पहनी नहीं तो मुझे उसे पहनना बहुत कठिन लगता। ऐसे वक्त में मुझे समझ आया कि अगर साड़ी पहनना आने वाली जनरेशन के लिए इतना ही कठिन रहा तो एक दिन यह सुंदर परिधान लोग पहनना ही बंद कर देंगे।
एक मिनट में पहनें साड़ी
बस इसी चिंता को बैकग्राउंड में रखते हुए मैंने कुछ ऐसे तरीके इजात करने की कोशिश की, जिससे की लड़कियां आसानी से साड़ी पहन सकें। यहीं से बनी ‘इसाडोरा लाइफ’ कंपनी। इस कंपनी के जरिए मैंने अपनी डिजाइन की हुई साड़ियां बेचनी शुरू कीं और एक मिनट में साड़ी पहनना सिखाय।
ये सबकुछ करना इतना आसान नहीं था। सबकुछ जीरो से शुरू करना पड़ा। 38 की उम्र सोशल मीडिया पर आई। यहां प्रोडक्ट की मार्केटिंग की। कुल तीन लाख में बिजनेस शुरू किया था। अब ढाई करोड़ का टर्नओवर है।
हिम्मत न हारें
अब मैं सभी को यही कहती हूं कि हिम्मत न हारें। मुश्किलें आ सकती हैं लेकिन अपने लक्ष्य पर डटें रहें। अगर लक्ष्य तक पहुंचने का एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा इजात करें। मैंने हमेशा खुद को प्रूव करने की कोशिश की कभी घर बैठने के बारे में नहीं सोचा। आज जितना है जो है उससे खुश हूं।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.