पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंपहाड़ों की चढ़ाई करनी हो तो इरादे भी चट्टान जैसी होनी चाहिए। ऐसे ही हौसले वाली हैं मिताली प्रसाद। अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो और दक्षिण अमेरिका की माउंट अकोकागुआ चोटी के शिखर पर पहुंचने वाली मिताली बिहार के नालंदा जिले के कतरीसराय के मायापुर गांव की रहनेवाली हैं। उनका सपना दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करना है।
पर्याप्त पैसे नहीं होने के कारण वो इस बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं कर पा रहीं। बावजूद वो माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पहुंच चुकी हैं। कुछ दिन पहले ही वो पटना से काठमांडु के लिए रवाना हुईं थीं। बेस कैंप पहुंचने से पहले रास्ते में मिताली ने भास्कर वुमन से बातचीत की।
मिताली कहती हैं हम तीन बहनें हैं। बड़ी बहन ने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से पढ़ाई की है। वह अभी पुणे में एक कंपनी में काम कर रही है। छोटी बहन बीएचयू से पढ़ाई कर रही है।
पिता किसान हैं। गांव में खेतीबाड़ी है। मैं चौथी कक्षा तक गांव के ही उत्क्रमित प्राथमिक मध्य विद्यालय से पढ़ी। इसके बाद मां ने सोचा कि यहां रहकर बच्चों की पढ़ाई बेहतर नहीं हो पाएगी। इसलिए उन्होंने पटना में रहने का फैसला किया। मां गांव में सिलाई का काम करती थी तो उनका यही स्किल पटना में भी काम आया।
2008 में हम पटना पहुंचे। दो साल तक तो घर पर ही पढ़ाई की। दीदी ने मुझे पढ़ाया। तब हमें पता नहीं था कि सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में कितना फर्क है। वहां मां ने बहादुरपुर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में दाखिला करवा दिया।
जब दाखिला हो रहा था तब मैंने मां से पूछा कि यहां अंग्रेजी में पढ़ाई नहीं होगा क्या...हा हा..खैर मैंने पढ़ाई की। आगे 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पाटलिपुत्र विद्यालय और पुनाडीह बंकाघाट से की। फिर ग्रेजुएशन पटना कालेज से पूरा किया। पटना यूनिवर्सिटी से ही पीजी किया।
कराटे ने बदला जीवन
2008 में स्कूल के टाइम ही मैंने कराटे ज्वाइन किया। मैंने अपनी सारी एनर्जी कराटे में लगा दिया। मैंने कराटे में ब्लैक बेल्ट हूं। 2010 में मैंने कराटे का इंटरनेशनल टूर्नामेंट भी खेला।
एनसीसी कैडेट रही हूं
2012 में मैंने एनसीसी भी ज्वाइन किया। मुझे एनसीसी में भी सर्टिफिकेट मिला। यहां आकर बहुत कुछ सीखने को मिला। एनसीसी में बेहतर करने पर पैरा जंपिंग टीम में भी चयन हुआ था। तब लगा कि स्पोर्ट्स ही मेरा जीवन है।
एयरक्राफ्ट भी उड़ाया
मुझे एडवेंचर की दुनिया शुरू से ही लुभाती रही है। मैंने एयरक्राफ्ट उड़ाने की भी ट्रेनिंग ली है।
पर्वतारोहण की पूरी ट्रेनिंग ली
मैंने माउंटेनरिंग में बेसिक, एडवांस, मेथड ऑफ इंस्ट्रक्शन के साथ अल्पाइन कोर्स भी किया है। इसकी पूरी जानकारी होने पर ही आप पर्वतारोही बन सकते हैं। इसके लिए मैंने खुद को तैयार किया।
किलिमंजारो पर चढ़ाई पूरी की
31 मार्च 2019 को मैंने अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो की चढ़ाई पूरी की। वहां पर तिरंगा झंडा फहराया। इसके बाद 13 जनवरी को 6962 मीटर ऊंचे दक्षिण अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकोकागुआ पहुंची। 2014 में इस चोटी पर सबसे पहले अरुणिमा सिन्हा पहुंची थीं।
पैसे नहीं जुटा पाई इसलिए अब तक माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना बाकी
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए जितना पैसा चाहिए था, नहीं जुटा पाई। बिहार सरकार से भी मदद की अपील की, लेकिन कुछ खास नहीं हो पाया। हालांकि क्राउंड फंडिंग से कुछ पैसे जुटे थे। व्यक्तिगत तौर पर भी कई लोगों ने सहयोग किया। लेकिन माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए पर्याप्त नहीं थे। भारत पेट्रोलियम की ओर से बिहार की पहली स्पोर्ट्स पर्सन हूं जिसके लिए 1.5 लाख का फंड स्वीकृत हुआ है पर अभी राशि मिली नहीं है।
माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप की चढ़ाई कर रही
अभी मैं माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप की चढ़ाई के लिए नेपाल में हूं। बेस कैंप की ऊंचाई 17 हजार 598 फीट है। इस चढ़ाई को पूरा करने में 20 दिन लगेंगे। मुझे दुख है कि माउंट एवरेस्ट की चोटी पर नहीं पहुंच सकूंगी। पर संतोष इस बात का है कि कम से कम बेस कैंप से माउंट एवरेस्ट के शिखर को निहार सकूंगी।
जुनून हो तो मंजिल मिलेगी ही
किसी चीज को पाने के लिए पैशन होना जरूरी है। मां-बाप का भरोसा हो तो बेटियां क्या नहीं कर सकतीं। लड़की को जब लड़की मान लेते हैं और फिर हर चीज में टोकते हैं कि यह काम नहीं कर पाएगी, तब मुश्किल होती है। मेरा यही कहना है कि एक बार ठान लो तो क्या हासिल नहीं हो सकता।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.