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डाउनलोड करेंनारी तू नारायणी, कहने वाले देश की महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए 18 साल पहले बजट में ‘जेंडर बजट’ का प्रावधान किया गया था। जेंडर बजट के कितने उद्देश्य पूरे हुए, ये जानते हैं।
2021-22 के मुकाबले 2022-23 के जेंडर बजट में 11% बढ़ोतरी हुई है। फिर भी ‘जेंडर बजट’ कुल GDP का महज 1% ही था। जीडीपी के कुल खर्च में इसकी हिस्सेदारी भी 4 से 6% ही रही।
किस वित्तीय वर्ष में जेंडर बजट के लिए कितने पैसे मिले, इसे जानने से पहले आइए समझते हैं कि जेंडर बजट होता क्या है?
क्या होता है जेंडर बजट
जेंडर बजट पुराने समय के रेल बजट की तरह अलग से एलोकेट नहीं होता। किसी भी मंत्रालय की महिलाओं से जुड़ी योजना के लिए अलग से पैसे का आवंटन सुनिश्चित करना ही जेंडर बजट है।
जेंडर बजट को जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) कहा जाता है। इसमें हर मंत्रालय और विभाग यह बताता है कि उनके यहां जेंडर आधारित कौन-कौन से कार्यक्रम या स्कीम हैं और उनके लिए कितने पैसे दिए गए हैं।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी: महिलाओं की आबादी देश में 48.4% है। लेकिन कई ऐसे सेक्टर जैसे- हेल्थ, एजुकेशन, स्किल डेवलपमेंट, आर्थिक रूप से मिलने वाले अवसरों में वो पुरुषों से पीछे रह जाती हैं। इन संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच बन सके, इसलिए जेंडर बजट की जरूरत पड़ी।
जेंडर बजट में दो भाग होते हैं
पहला-महिला केंद्रित वो योजनाएं जिसमें 100 प्रतिशत पैसे दिए जाते हैं।
दूसरा-वैसी योजनाएं जिनमें कम से कम 30% पैसे दिए जाते हैं।
इसे ऐसे समझें
जेंडर बजट 2022-23 में डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन में 8.44 करोड़ दिए गए। इसमें भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर वुमन इन एग्रीकल्चर और ऑल इंडिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन होम साइंस को ये पैसे मिले।
महिलाओं से जुड़े ये सेंटर थे, इसलिए इन्हें 100% पैसे दिए गए।
जेंडर बजट के तहत हर साल पैसे दिए जाते हैं। 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में जेंडर बजट की राशि 11.5% अधिक थी। पिछले पांच सालों का आंकड़ा देख लेते हैं।
कितना कम हुआ, कितना बढ़ा बजट
पिछले पांच साल में 100% आवंटन वाली योजनाओं में जेंडर बजट का पैसा 10 फीसदी कम हुआ है। 2017-18 में जहां इन पर जेंडर बजट का लगभग 26% खर्च किया जाता था, वह घटकर 16% रह गया है।
जेंडर बजट के नाम पर केंद्र सरकार जेंडर बजट का 91% हिस्सा जिन 5 विभागों में बांट देती है, उसका फायदा केवल महिलाओं को नहीं मिलता। इसमें सड़क, बिजली, पानी, सेहत, खेती-किसानी से लेकर पढ़ाई समेत सभी चीजों पर खर्च होता है।
कहने को जेंडर बजट, असलियत में पैसा सब पर खर्च
जेंडर बजट में सुरक्षा पर पैसा, ऊंट के मुंह में जीरे जैसा
जेंडर बजट में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं पर पैसे कम दिए गए। जेंडर बजट से पिछले साल निर्भया फंड को 7.61 करोड़ रुपए दिए गए लेकिन 2022-23 में एक भी रुपया नहीं दिया गया। दिलचस्प यह है कि 2022-23 के आम बजट में निर्भया फंड के लिए 200 करोड़ रुपए दिए गए, लेकिन जेंडर बजट के तहत एक भी पैसा नहीं दिया गया।
महिलाओं की जुड़ी अन्य योजनाओं वन स्टॉप सेंटर, वुमन हेल्पलाइन, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वाधार गृह, वर्किंग वुमन हॉस्टल के लिए 2021-22 और 2022-23 में कुछ नहीं दिया गया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग और वुमन हेल्प डेस्क के लिए 2022-23 में 28 करोड़ रुपए दिए गए जो कि 2021 के मुकाबले 24 करोड़ कम हैं।
शिक्षा-स्वास्थ्य से अधिक मनरेगा और आवास योजना पर पैसा
जेंडर बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य से ज्यादा पैसे मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए दिए गए। 2022-23 में स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों को मिलाकर करीब 31 हजार करोड़ दिए गए जबकि स्वास्थ्य पर 30,720 करोड़। वहीं, मनरेगा में 26 हजार करोड़ और प्रधानमंत्री आवास योजना पर 43 हजार करोड़ दिए गए। यानी मनरेगा और आवास योजना पर जो राशि दी गई है वो स्वास्थ्य और शिक्षा को मिलाकर दी गई राशि से भी अधिक है।
9 राज्यों ने नहीं अपनाया जेंडर बजट
2004-05 में जेंडर बजट को शुरू किया गया था। लेकिन इसे अभी तक सभी राज्यों ने नहीं अपनाया है। 2015 तक 16 राज्यों ने ही अपने यहां जेंडर बजट शुरू किया था। 2022 में देश के 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जेंडर बजट को अपना लिया था।
9 राज्यों गोवा, हरियाणा, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, तेलंगाना, चंडीगढ़, लद्दाख और पुडुचेरी ने जेंडर बजट को नहीं अपनाया है।
जेंडर बजट को लेकर इस बार महिलाओं की क्या मांग है, आइए इसे समझते हैं।
कामकाजी महिलाओं के लिए कम हो इनकम टैक्स
फाइनेंशियल एक्सपर्ट गौरव शर्मा कहते हैं कि सरकार को कामकाजी महिलाओं के लिए इनकम टैक्स कम करने की जरूरत हैं। यह उनके लिए अच्छा इन्सेंटिव साबित होगा।
इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव होना चाहिए। 5 लाख से 7.5 लाख तक 5%, 10 लाख तक 10%, 10 से 12.5 लाख तक 15%, 12.5 लाख से 15 लाख तक 20%, 15-17.5 लाख तक 25% और 17.5 लाख से ऊपर वाली इनकम पर 30% टैक्स लगना चाहिए।
इनकम टैक्स में 80C के तहत अभी तक डेढ़ लाख रुपए का डिडक्शन मिलता है। इसे बढ़ाकर ढाई लाख कर देना चाहिए।
महिलाओं की शिक्षा के लिए बजट बढ़े तो होगा सशक्तीकरण
हाल ही में भारत को जी-20 का चार्ज मिला। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के नेतृत्व में देश के विकास की बात कही थी। महिलाएं सशक्त तभी बन सकती हैं, जब वो शिक्षित हों।
भले ही शिक्षण संस्थानों में लड़कियों को 5% का रिजर्वेशन मिलता है, लेकिन उन्हें फीस लड़कों की तरह पूरी देनी पड़ती है। महिलाओं के लिए एजुकेशन बजट बढ़ाने की जरूरत है। उनकी स्किल डिवेलपमेंट और हायर एजुकेशन के लिए बढ़िया इन्फ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए।
होममेकर्स पर पड़ रही जीएसटी की मार
गौरव कहते हैं कि हमारे देश की इकोनॉमी में सबसे ज्यादा भागीदारी होममेकर्स की है। जॉब करने वाले साल में एक बार ही टैक्स देते हैं, लेकिन हाउसवाइफ रोज दाल, चावल, सब्जी, मसाले जैसा सामान खरीदती हैं और जीएसटी के तौर पर हर बार टैक्स चुकाती हैं, जो इनडायरेक्ट टैक्स होता है। सरकार को इन सभी महिलाओं के बारे में सोचने की जरूरत है।
जिनकी बेटियां हैं, उन्हें टैक्स रिबेट मिले
सरकार को ऐसे पेरेंट्स को टैक्स में छूट का फायदा देना चाहिए, जिनकी बेटियां हैं। अगर पेरेंट्स बेटियों के नाम पर निवेश करें तो उन्हें टैक्स में छूट मिले।
अगर महिलाएं आर्थिक तौर पर मजबूत होंगी, तो परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। बल्कि, निवेश के ऐसे कई तरीके हैं, जिनमें महिलाओं के हाथों में बागडोर थमाकर ज्यादा मुनाफा हासिल किया जा सकता है।
स्टार्टअप से खेती तक, महिलाओं की हिस्सेदारी फायदे का सौदा
महिलाओं के लिए सस्ते बिजनेस लोन
स्टार्टअप शुरू करना हो तो महिलाओं को हिस्सेदार बनाना फायदे का सौदा हो सकता है। सरकार से लेकर बैंकों की ढेरों ऐसी योजनाएं हैं, जिनमें महिला उद्यमियों को सस्ता लोन ऑफर मिलता है। बिजनेस शुरू करने से लेकर मार्केट तक सरकारी विभागों की तरफ से मदद दी जाती है। अगर कोई बिजनेस शुरू करने का इरादा है, तो लोन के लिए आवेदन करने से पहले बैंकों से महिलाओं के लिए मौजूद स्कीम्स के बारे में जरूर पता कर लें।
महिला किसानों को मिलती है लाखों रुपए की सब्सिडी
महिला किसानों के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनमें उन्हें खेती के लिए उपकरण खरीदने से लेकर बाजार तक अपने उत्पाद को पहुंचाने के लिए सस्ता लोन और लाखों रुपए की सब्सिडी दी जाती है। महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना, नाबार्ड, नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट, राष्ट्रीय ई-मार्केट सर्विस जैसी तमाम योजनाओं में महिला किसानों के लिए अलग से स्कीम्स मौजूद हैं। इसकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों और बैंकों से ले सकते हैं।
महिलाओं के जरिए निवेश बेहतर ऑप्शन हो सकता है। कई स्कीम्स में निवेश करने पर न केवल उन्हें मनुाफा अधिक होता है बल्कि टैक्स में भी छूट मिलती है।
ग्रैफिक्स: प्रेरणा झा
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