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डाउनलोड करेंबॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह का न्यूड फोटो शूट चर्चा में है। मुंबई में उन पर केस दर्ज होने के बाद लोग तरह-तरह से अपनी प्रतिक्रिया दे रहे। एक तरफ बॉलीवुड की कई हस्तियों ने उनका बचाव किया है तो दूसरी ओर समाज के अलग-अलग वर्ग के लोगों ने इसे शर्मनाक बताया है। सवाल यह है कि मुख्यधारा का समाज इसकी इजाजत नहीं देता तो क्या विविधता वाले देश में ऐसा भी समाज है जिनकी संस्कृति में न्यूड रहने की परंपरा है। जहां कपड़े पहनने को सभ्य समाज की निशानी नहीं माना जाता। पढ़ें ये विशेष रिपोर्ट।
न्यूड रहते हैं जारवा और सेंटिनल ट्राइब के लोग
सीनियर जर्नलिस्ट श्याम सुंदर बताते हैं कि अंडमान निकोबार में रहने वाली जनजातियों की संख्या काफी कम है। जैसे-ग्रेट अंडमानिज न के बराबर हैं। जो थोड़े बहुत हैं तो उन्हें स्ट्रेट आइलैंड पर बसाया गया है। हालांकि वे पोर्ट ब्लेयर में ही रहते हैं। लेकिन जारवा या सेंटिनल आदिम जनजाति के लोग न्यूड रहते हैं। महिलाएं या पुरुष शरीर पर किसी तरह के कपड़े नहीं पहनते। तबीयत खराब होने या किसी विशेष परिस्थिति में उन्हें पोर्ट ब्लेयर लाया जाता है। इस दौरान वे जरूर कपड़े में होते हैं।
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प्रकृति के करीब रहकर खुद को मानते हैं अधिक सभ्य
दुनियाभर में आदिम जनजातियों को बचाने के लिए काम कर रही संस्था सर्वाइवल इंटरनेशनल के अनुसार, अंडमान आइलैंड पर जारवा, ग्रेट अंडमानिज, ओंग और सेंटिनल जनजातियां रहती हैं। इनमें जारवा ट्राइब के अस्तित्व पर खतरा अधिक है। जारवा की आाबादी बमुश्किल से 450 के करीब होगी, जबकि सेंटिनल की आबादी 250 के आसपास है। 2004 में भारत सरकारी की जारवा पॉलिसी आई जिसमें कहा गया कि जारवा को मुख्यधारा में लाने का प्रयास नहीं होना चाहिए। श्याम सुंदर बताते हैं कि जारवा या सेंटिनल मुख्यधारा के समाज से कटे रहना चाहते हैं क्योंकि वो खुद को प्रकृति के करीब रहकर अधिक सभ्य मानते हैं।
बोंडा ट्राइव की महिलाएं कमर के ऊपर कुछ नहीं पहनतीं
ओडिशा के मलकानगिरी में बोंडा ट्राइब की महिलाएं रिंगा पहनती हैं। यह कमर पर पहना जाने वाला एक तरह का मिनी स्कर्ट होता है। कमर से ऊपर महिलाएं कुछ नहीं पहनतीं। हालांकि बिड्स से बनी कई मालाएं गले में पहनती हैं। पुरुष आमतौर पर लंगोटी जैसे कपड़े पहनते हैं। श्याम सुंदर ने देशभर के कई जनजातीय इलाकों का भ्रमण किया है और उनके रहन-सहन को देखा है। वह बताते हैं कि झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में जहां भी जनजाति हैं वहां आमतौर पर पुरुष लंगोटी पहनते हैं। उनके घर जंगल में होते हैं जहां उमस होती है। ऐसे में वो नाम मात्र के ही कपड़े पहनते हैं।
मुख्यधारा के समाज से जुड़ने पर भी कपड़े पहनने का दबाव नहीं
असम के बोडो या राधा कम्युनिटी की महिलाएं घर में कपड़ा बुनती हैं जिसे दोखना कहते हैं। वहां भी पूरे शरीर को कपड़े से ढक लेना बहुत सभ्य नहीं माना जाता। आंध्र में गढ़वा और कोंडारेड्डी जनजाति के पुरुष मुश्किल से लंगोट पहनते हैं। पूरा बदन नग्न ही रहता है। इसी तरह नागालैंड, अरुणाचल, त्रिपुरा, असम आदि राज्यों में मेनस्ट्रीम में रहने के बाद भी पर्व त्योहारों में वे पारंपरिक कपड़े ही पहनते हैं। जैसे नागालैंड का मॉन कोनियक आदिवासियों का घर है। पर्व के समय उनके ऊपरी हिस्सों में कपड़े नहीं होते।
केरल के सिद्धा समाज में कपड़े पहनने की मनाही
केरल के वडकरा में सिद्धा समाज के लोग कपड़े नहीं पहनते। केरल में चार और तमिलनाडु में इस समाज की एक शाखा है। इस सोसाइटी की स्थापना स्वामी शिवानंद परमहंस ने की थी। 300 लोग इस समाज से जुड़े हैं। वडकरा स्थित सोसाइटी में किसी तरह का अनुष्ठान नहीं होता। 60 एकड़ में यह सोसाइटी है जहां समाज से जुड़े खेती करते हैं। महिला हो या पुरुष, सभी न्यूड रहकर ही काम करते हैं।जैन मुनि को दिगंबर कहा जाता है।
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