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छह शक्लें बदलकर यहां तक पहुंचा पेन:4200 साल पहले बनी पहली कलम, भारत के पास सबसे लंबे पेन का रिकॉर्ड

नई दिल्ली9 महीने पहलेलेखक: भारती द्विवेदी
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बिहार की सियासी उठा-पटक के बाद भाजपा सत्ता से बाहर गई तो राजद की सत्ता में वापसी हुई। सरकार बनते और पद संभालते ही डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिलने उनके समर्थक फूलों का गुलदस्ता लेकर पहुंच रहे हैं। तेजस्वी ने अपने समर्थकों से अपील की कि समर्थक उन्हें बतौर शुभकामनाएं कुछ देना ही चाहते हैं तो किताब और कलम दें। तेजस्वी को चाहने वाले अब उन्हें कलम या किताब तोहफे में दे रहे हैं।

वैसे तो सियासत और कलम के बीच ‘छत्तीस का आंकड़ा’ रहा है, मगर नेताओं ने हमेशा पेन को अपने दिल से लगाए रखा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कई ऐतिहासिक पत्र और किताबें लिखीं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फाउंटेन पेन के शौकीन हैं। उन्हें अक्सर जर्मनी के फेमस ब्रांड मॉन्टब्लांक (Montblanc Pen) का पेन इस्तेमाल करते देखा जाता है। आइए जानते हैं छोटी सी कलम के ताकतवर और रसूखदार बनने की दिलचस्प कहानी।

इंसान ने जब अपनी दुनिया के लिए हदें खींचनी शुरू कीं तो उसे सबसे पहले अपनी भाषा और संस्कृति का बचाव करने की जद्दोजहद करनी पड़ी। पेट की भूख शांत करने के लिए आग जलाई तो मन की कशमकश जाहिर करने के लिए भाषा ईजाद की। पहले पहल तो उसने गुफाओं, पहाड़ों और पेड़ों पर अपनी भावनाएं जताने के लिए आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचनी शुरू कीं। वक्त बीतने के साथ उसने पत्तों, कपड़ों पर लिखना शुरू किया।

चीन से कागज की यात्रा शुरू हुई तो लिखावट भी बदली। और फिर इस सफर में कलम भी साथ हो ली। आज से करीब 5500 साल पहले कलम की कहानी तब शुरू हुई, जब पहली बार इंसान ने मेसोपोटामिया यानी आज के इराक में लिखना शुरू किया।

इसके बाद तो लिखने का ये सिलसिला चल पड़ा। प्राचीन मिस्र, चीन के शैंग साम्राज्य और हिंदुस्तान की सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ हिस्सों में लोग लिखने लगे। मेसोपोटामिया के लोग तो मजदूरों का लिखित हिसाब रखने लगे। मिट्‌टी की एक प्लेट पर लिखा गया एक बहीखाता 4,000 साल पहले का है, जो अब ब्रिटिश म्यूजियम में रखा हुआ है।

मिस्र में पत्थरों पर उकेरने के अलावा हाथी दांत पर लिखा जाने लगा। वहीं, सिंधु घाटी सभ्यता यानी हड़प्पता सभ्यता में मुहरों पर लिखने का काम शुरू हो गया। ये मुहरें आज भी भारत और पाकिस्तान के दरियाई इलाकों में मिल जाया करती हैं।

अब आगे बढ़ने से पहले जान लें कि कलम ने क्या-क्या करवटें लीं और कैसे हमारे-आपके बीच इसने अपनी जगह बनाई।

बांस, पंख से लेकर जेल तक यूं सूरत बदलती रही कलम

लिखावट की चर्चा हुई तो आपके जेहन में ये जरूर आया होगा कि इंसान ने सही मायनों में लिखना किस चीज से शुरू किया होगा। आपको बता दें कि पत्थरों और धातुओं से उकेरने के बाद लिखावट के लिए सही कलम मिस्र में ईजाद की गई थी, जहां करीब 4200 साल पहले बांस से कलम बनाई गई। उसकी निब (नोंक) भी बांस की ही बनी हुई थी। उस वक्त बांस के एक सिरे को नुकीला करके उसे स्याही में डुबोकर लिखा जाता।

फिर आई चिड़ियों के पंखों से लिखने की कला, जिसे ‘क्विल पेन’ कहा गया। ये जमाना छठी सदी का था, जब ऐसे पेन की शुरुआत हुई। हालांकि, ये पेन बेहद नाजुक होते थे, क्योंकि इसकी नोंक जल्द टूट जाती। राजा-महाराजाओं के फरमान या ग्रंथ लिखने वाले लोग इनका खूब इस्तेमाल करते। आज के कैलीग्राफर्स अभी भी इनका इस्तेमाल करते हैं।

क्विल पेन के बाद इसी से मिलता-जुलता स्टील डीप पेन आया, जिसकी खोज जॉन मिशेल ने 1822 में की थी। इसे भी लिखने के लिए स्याही में डुबोना पड़ता था। मेटल से बनी होने के नाते यह जल्दी खराब नहीं होती थी। फिर 1827 में आया फाउंटेन पेन का जमाना। शुरुआत में पेट्राचे पोएनारू नाम के शख्स के बनाए इस पेन से लिखने में बहुत मुश्किलें सामने आईं। कभी इसमें स्याही बहुत ज्यादा आ जाती और कभी बिल्कुल भी नहीं आती। तब 1844 में लुईस एडसन ऐसा फाउंटेन पेन लेकर आए, जिसकी स्याही ना बहती थी और ना ही रुकती थी।

1888 की बात है जब जॉन लाउड ने बॉल पॉइंट पेन का आविष्कार किया। मकसद था कि लकड़ी या रैपिंग पेपर पर लिखने लायक पेन बनाया जाए, जो फाउंटेन पेन से मुमकिन नहीं था। इसके बाद 1984 में एक जापानी कंपनी ‘सकूरा कलर प्रोडॅक्ट्स’ ने जेल पेन बनाया। पहला जेल पेन ‘बॉल साइन 208’ था, जिसे बाजार में उतारा गया। इस कपंनी का पहला प्रोडक्ट जो 1980 के दशक के आखिर में अमेरिका में उपलब्ध हुआ, वह ‘जेली रोल पेन’ था।

ये तो हुई पेन के इतिहास की बात। आइए, अब पेन बनाने वालों की दुनिया में चलते हैं और देखते हैं कि उस जमाने में पेन को लेकर कैसे-कैसे स्टार्टअप शुरू हुए। जिन्होंने दुनिया के सबसे महंगे पेन बनाए और कलम प्रेमियों के दिल पर राज किया।

पेन म्यूजियम, जिसे देखने के लिए लेना पड़ता है एडमिशन

इंग्लैंड के बर्मिंघम के जूलरी क्वार्टर में पेन का एक म्यूजियम है। इस म्यूजियम में बर्मिंघम के स्टील पेन के व्यापार का इतिहास बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि कैसे ये जगह दुनिया भर में पेन के व्यापार का केंद्र बन गई। 19वीं सदी में लगभग 100 कंपनियां बर्मिंघम में स्टील पेन डिस्ट्रीब्यूट करती थीं। दुनिया भर में यहां से पेन की निब भेजी जाती।

स्टील पेन की बुलंदी का ये सिलसिला तब तक चला, जब तक कि फाउंटेन पेन और बॉलपेन ने पेन मार्केट को ओवरटेक नहीं कर लिया। इस म्यूजियम में एंट्री पाने के लिए एडमिशन लेना पड़ता है। म्यूजियम में आने वाले विजिटर्स को इस बिजनेस में शामिल पेन इंडस्ट्री के मालिकों और कर्मचारियों की तब की लाइफ कैसी थी, इसकी भी जानकारी दी जाती है। इसमें यह भी बताया जाता कि स्टील पेन के निब कैसे बनाए गए।

दुनिया का अकेला म्यूजियम जहां पेन की वंशावली है

स्टील पेन के अलावा म्यूजियम का मकसद विजिटर्स को लिखाई से जुड़ी हर चीज की जानकारी देनी होती है। यह म्यूजियम वहां आने वाले परिवारों और कम्यूनिटी ग्रुप के लिए अलग-अलग थीम पर वर्कशॉप भी करता है और पेन से जुड़े कई विषयों पर चर्चा होती है। यहां पेन की जेनियोलॉजी (वंशावली) भी बताई जाती है, और समय-समय पर पेन पर होने वाली रिसर्च की जानकारी भी मिलती है। पेन बनाने के इतिहास और पेन इंडस्ट्री को समर्पित यह दुनिया का अकेला म्यूजियम है।

ऐसा नहीं है कि पेन का इतिहास बर्मिंघम में रचा गया तो भारत में कुछ नहीं हुआ। भारतीयों में पेन को लेकर जुनून कम नहीं है। पेन को लेकर एक गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड हमारे नाम पर भी है।

तेलंगाना के श्रीनिवास का पेन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल

तेलंगाना के निजामाबाद में रहने वाले आचार्य मकुनुरी श्रीनिवास ने 2011 में दुनिया का सबसे लंबा बॉल पेन बनाया। उसी साल 24 अप्रैल को इस 5.5 मीटर लंबे और 37.23 किलो वजनी बॉल पेन को हैदराबाद में डिस्प्ले किया गया। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे दुनिया के सबसे बड़े बॉलपेन का खिताब भी दिया। इस पेन को बनाने में 9 किलो पीतल लगा है। इस पेन को उठाकर लिखना एक आदमी के बस की बात नहीं। लेकिन हां, इससे लिखा जरूर जा सकता है। वहीं, दुनिया का सबसे छोटा पेन 'नैनोफाउंटेन प्रोब' है। इसका इस्तेमाल वैज्ञानिक नैनोस्केल ऑन-चिप पैटर्निंग के लिए करते हैं।

बात दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की करें तो वहां की सबसे ताकतवर शख्सियत यानी अमेरिकी राष्ट्रपतियों का पेन प्रेम अलग ही लेवल पर दिखता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति हर पन्ने पर अलग पेन से करते हैं साइन

अमेरिका में राष्ट्रपति और पेन से जुड़ा एक दिलचस्प रिवाज़ है। वहां किसी भी जरूरी डॉक्यूमेंट पर साइन करने के लिए प्रेसिडेंट उस डॉक्यूमेंट के हर पन्ने के लिए अलग पेन का इस्तेमाल करते हैं। इस चलन को शुरू करने वाले पहले राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट थे, जो मार्च 1933 से अप्रैल 1945 तक इस पद पर रहे। हालांकि सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने इस परंपरा को नहीं अपनाया। जॉर्ज डब्लू. बुश ने किसी विधेयक पर साइन करने के लिए कभी भी एक से अधिक पेन का इस्तेमाल नहीं किया।

ओबामा ने 22 तो लिंडन जॉनसन ने 72 पेन से किए साइन

वहीं राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ‘लाइन-आइटम वीटो’ पर हस्ताक्षर करने के लिए चार पेन इस्तेमाल किए। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मार्च 2010 में ‘हेल्थ केयर रिफॉर्म’ बिल पर साइन करते वक्त 22 पेन यूज किए। यही नहीं उन्होंने अपने नाम के हर अक्षर या आधे अक्षर के लिए अलग पेन यूज किया था। ऐसा करते वक्त उन्होंने कहा भी था, मुझे साइन करने में थोड़ा टाइम लगेगा। आपको बताते चलें कि ‘हेल्थ केयर रिफॉर्म बिल’ का मकसद प्राइवेट और सरकारी हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम को ठीक करना था। इस बिल के आने के बाद से लगभग 2 करोड़ अमेरिकियों को इसका फायदा मिला।

क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर के अनुसार, ओबामा को उन 22 पेन का यूज करके बिल साइन करने में 1 मिनट 35 सेकंड लगे। वहीं अमेरिका के 36वें राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने 1964 के ऐतिहासिक ‘नागरिक अधिकार अधिनियम’ पर साइन करते समय 72 पेन इस्तेमाल किए थे।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले ही दिन एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन करते हुए कई पेन का इस्तेमाल किया था। तारीख थी, 20 जनवरी 2017, जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली। बाद में ये पेन उन्होंने यादगार तोहफे के तौर वाइट हाउस के कर्मचारियों को दे दिए थे। पेन के इस रिवाज पर अपने कर्मचारियों से मजाक करते हुए ट्रंप ने कहा था- 'मुझे लगता है, हमें कुछ और पेन की जरूरत होगी। वैसे सरकार कंजूस हो रही है।'

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस्तेमाल किए पेन का क्या होता है?

अमेरिकी राष्ट्रपति इतने पेन इस्तेमाल करते हैं तो उन पेन का आखिर में क्या होता है, ये सवाल आपके मन में भी जरूर आया होगा। तो बता दें कि राष्ट्रपति बिल साइन करने के बाद उस पेन को कांग्रेस मेंबर या उस इंसान को गिफ्ट के तौर पर देते हैं, जिन्होंने बिल डॉक्यूमेंट्स बनाने में उनकी मदद की होती है। हर पेन को प्रेसिडेंशियल मुहर और साइन करने वाले प्रेसिडेंट के नाम के स्पेशल बॉक्स में रखकर गिफ्ट किया जाता है।

अमेरिकी राष्ट्रपतियों के बाद अब दुनिया की मशहूर हस्तियों और लेखकों के पेन प्रेम के बारे में भी जान लीजिए।

महान किताबें और इतिहास हमेशा खास पेन से लिखे गए

अमेरिकी लेखक स्टीफन किंग ने अपना नॉवेल 'ड्रीमकैचर' लिखने के लिए वाटरमैन फाउंटेन पेन का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस बात का जिक्र ‘ऑथर नोट- वन लास्ट नोट’ में भी किया। लेखक कॉनन डॉयल ने फेमस ‘शरलॉक’ नॉवेल को पार्कर डुओफोल्ड फाउंटेन पेन से लिखा था। ऐनी फ्रैंक ने अपनी ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ को लिखने के लिए मॉन्टब्लांक फाउंटेन पेन यूज किया। अल्बर्ट आइंस्टीन ने ‘थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी’ लिखते वक्त ‘पेलिकन 100N’ और ’वाटरमैन टेपर-कैप फाउंटेन’ पेन का इस्तेमाल किया था। आइंस्टीन का यूज किया ‘वाटरमैन पेन’ नीदरलैंड के शहर लीडेनो में बोएरहावे म्यूजिम में डिस्प्ले किया गया है। वहीं महारानी विक्टोरिया साल 1959 से पर्सनल यूज के लिए ‘पार्कर 51’ पेन का इस्तेमाल करती हैं। ‘एचएम द क्वीन’ और ‘द प्रिंस ऑफ वेल्स’ दोनों ने पार्कर को उसकी सर्विस और क्वालिटी की वजह से ‘रॉयल वारंट’ भी दिया है।

बॉलीवुड हस्तियों को भी रही है कलम से मोहब्बत

आपको याद ही होगा कि कैसे एक्ट्रेस रवीना टंडन को कभी रोटोमैक पेन से ‘लिखते-लिखते लव’ हो गया था। संजय दत्त को डिजाइनर पेन इकट्‌ठा करने का बहुत शौक है। उन्हें पेन खरीदना भी बेहद पसंद है। अमिताभ बच्चन का नाम भी पेन के शौकीन लोगों में शुमार है। वह पार्कर पेन से लिखते हैं। शबाना आजमी मॉन्टब्लांक पेन का इस्तेमाल करती हैं। उनके पास 18 मॉन्टब्लांक पेन हैं। जावेद अख्तर भी पेन जमा करने का शौक रखते हैं लेकिन वह ज्यादातर बॉल पेन से ही लिखते हैं।

फांसी की सजा लिखने जाने वाले पेन की निब तोड़ दी जाती है

भारत में अपराधी को फांसी की सजा सुनाने के बाद, डेथ वॉरंट पर साइन करने वाले पेन की निब तोड़ दी जाती है। ऐसा इस भरोसे के साथ किया जाता है कि दोबारा कभी भविष्य में कोई इंसान ऐसा अपराध न करे। यह रिवाज ब्रिटिश काल से चल रहा है। यह कोई कानून नहीं है और न ही संविधान की किसी धारा में इसका जिक्र है। लेकिन हमारे देश की अदालतों में में यह रिवाज चलन में है।

सिग्नेचर करना हो या अलग हैंडराइटिंग सबके लिए अलग निब

आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि किसी खास कंपनी का पेन कई बार लोगों को इतना भा जाता है कि वो कुछ भी लिखने के लिए केवल उसी पेन का इस्तेमाल करते हैं। इसकी वजह पेन की निब में छिपी है। कई लेखक तो अपने पसंदीदा पेन को अपनी उंगुलियों में फंसाए बिना अपने दिमाग में तैरते शब्दों को कागज पर नहीं उतार पाते।

कई बार पेन की मोटाई और उसके पकड़कर लिखने की सुविधा भी उनकी चॉइस को मजबूती देती है। हर कंपनी का निब साइज और टाइप अलग होता है। अलग-अलग मौकों पर इस्तेमाल किए जाने वाले पेन के निब और साइज अलग-अलग होते हैं। लेकिन इन्हें मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है; पहला ‘ब्रॉड निब’ और दूसरा ‘पॉइंटेड निब’।

ब्रॉड निब से लिखाई की लकीरें चौड़ी उभरती हैं। चौड़े किनारे वाली इस निब के इस डिजाइन को सबसे पुराना माना जाता है। इसका किनारा फ्लैट और हार्ड होता है। सदियों से ब्रॉड निब के जरिए कई राइटिंग स्टाइल डेवलप हुए हैं। जिसमें मिडीवल यूनिकल, ब्लैकलेटर, कैरोलिंगियन माइनसक्यूल्स स्क्रिप्ट शामिल हैं।

शब्दों को तिरछा लिखने यानी ‘इटैलिक हैंड राइटिंग’ में भी बदलाव आया और जो कि इसी का हिस्सा है। 20वीं सदी की शुरुआत में एडवर्ड जॉन्सटन ने कैलिग्राफी को एक आयाम दिया जिन्हें आज की मॉर्डन इटैलिक कैलिग्राफी का जन्मदाता कहा जाता है।

पॉइंटेड निब यानी नुकीली निब की बात करें तो इसका किनारा लचीला और नुकीला होता है। इससे लिखते समय प्रेशर के जरिए लिखावट को पतला या मोटा बनाया जा सकता है। पॉइंटेड निब का इस्तेमाल मुख्यतः आर्टिस्ट, ड्राफ्टर स्केचिंग, मैपिंग और टेक्निकल ड्रॉइंग के लिए किया जाता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि अपने लिए निब कैसे चुनें, आइए हम आपको बताते हैं।

अगर आपकी लिखावट छोटी है तो एक्सट्रा फाइन (EF) और फाइन (F) निब आपके लिए परपेक्ट होगी। लिखते समय जहां एक्स्ट्रा फाइन की लाइन की चौड़ाई 0.4 मि.मी. होती है, वहीं फाइन निब की 0.6 मि.मी. होती है। मीडियम निब की लाइन चौड़ाई 0.8 मिमी होती है। ये एवरेज साइज हैंडराइटिंग के लिए बेहतरीन है। ब्रॉड और बोल्ड (B) निब की लाइन की चौड़ाई लगभग 1.0 मि.मी. होती है और ये सिग्नेचर या बड़ी हैंडराइटिंग वालों के लिए परपेक्ट है। अनफंगर (A) निब लिखने का अभ्यास करने के लिए अच्छी मानी जाती है।

यूज एंड थ्रो पेन इन्वायरमेंट के लिए खतरा

पेन मार्केट वैल्यू को लेकर स्टेटिस्टा डॉट कॉम की रिसर्च की मानें तो 2017 में वर्ल्डवाइड पेन मार्केट की वैल्यू लगभग 1500 करोड़ रुपए थी। जो कि साल 2025 तक 1900 करोड़ रुपए हो जाएगी। दुनिया भर में भले ही पेन को लेकर बड़े और महंगे ब्रांड मौजूद हैं। लेकिन आम आदमी जिस पेन का यूज करता है, वो प्लास्टिक पेन ही होते हैं। हर साल 160 से 240 करोड़ प्लास्टिक पेन मार्केट में आते हैं। इनमें से 90 फीसदी रिसाइकल नहीं होते हैं। ‘यूज एंड थ्रो’ जैसे पेन सिंगल यूज प्लास्टिक में आते हैं। इनकी स्याही एकबार खत्म हो गई तो ये बस प्लास्टिक वेस्ट होते हैं। ‘सिंगल यूज प्लास्टिक द लास्ट स्ट्रॉ स्टडी’ के अनुसार सिर्फ केरल के ही स्टूडेंट एक महीने में 1.5 करोड़ पेन को फेंके देते हैं।

भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में यूज होने वाला पेन है खास

साल 2017 से भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक खास पेन के जरिए होता है। सांसद और विधायकों को उस पेन का इस्तेमाल करके ही देश के लिए राष्ट्रपति चुनाव में वोट देना होता है। हर पेन से 1 हजार बार वोट देना संभव होता है। इस विशेष पेन को कर्नाटक की फर्म ‘मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड’ बनाती है। ये कंपनी ही 1962 से देश के हर चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही भी बनाती है, जो वोट देने के बाद आपकी उंगली पर लगाई जाती है।

1962 में इलेक्शन कमीशन, मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस, नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी और नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट ने इसे लेकर एग्रीमेंट किया था। इस कंपनी को 1937 में मैसूर के महाराजा नलवाड़ी कृष्णराजा वाडियार ने बनाया था।

जब आधी रात की गिरफ्तारी में भी जेब में मजबूती से लटका रहा पेन

एम करुणानिधि, राजनीति की दुनिया का बड़ा नाम थे। जो नेता बनने के पहले लेखक, कवि रह चुके थे। पेन को लेकर उनका लगाव जगजाहिर था। कहा जाता है कि वो हर सुबह उठकर सबसे पहले अपना फाउनटेन पेन ढूंढते। और ऐसा वो 1942 से कर रहे थे। जब से उन्होंने ‘मुरासोली’ न्यूजपेपर की स्थापना की।

साल 2001 के जून में आधी रात को करुणानिधि को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उस वक्त जयललिता ने दूसरी बार बतौर मुख्यमंत्री राज्य की सत्ता संभाली थी। गिरफ्तारी के वक्त जब करुणानिधि को पुलिस घसीट रही थी, उनके कपड़े अस्त-व्यस्त हो गए थे लेकिन तब भी उनका पेन मजबूती से पॉकेट में टिका रहा। ये फोटो अगले दिन देश के सभी अखबारों में छपा था। चेन्नई के नेताजी सुभाष चंद्र बोस रोड स्थित ‘जेम एंड कंपनी’ पेन को लेकर करुणानिधि की पसंदीदा दुकान थी। वहां से वो लंबे समय तक अपना फेवरेट पेन 'वैलिटी 69' खरीदते रहे।

ग्राफिक्स- प्रेरणा झा/ सत्यम परिडा

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