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डाउनलोड करेंहमारे इसी समाज में महिलाओं और पुरुषों के साथ थर्ड जेंडर भी मौजूद रहता है। थर्ड जेंडर यानी ट्रांसजेंडर। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें समाज में थर्ड जेंडर के नाम से पहचान दी।
संविधान ने उन्हें 'सम्मान के साथ जीवन जीने' का हक दिया। नतीजतन अब ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के विकास का जिम्मा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के पास है।
2022-23 के बजट में इस मंत्रालय को 13,134 करोड़ मिले जो पिछले साल मिले फंड के मुकाबले 12% ज्यादा था।
बता दें, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, दिव्यांगों, एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी और नशे का शिकार हुए पीड़तों के कल्याण, उत्थान और सशक्तीकरण का काम करता है। यह मिनिस्ट्री ऑफ वेलफेयर का हिस्सा है।
12 फरवरी 2022 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के डेवलपमेंट के लिए SMILE नाम की स्कीम शुरू की जिसके लिए मंत्रालय ने 2021-22 से 2025-26 तक के लिए 365 करोड़ रुपए अलॉट किए। लेकिन इस स्कीम के तहत न ही ट्रांसजेंडर्स के तेजी से आईडी कार्ड बन रहे हैं, 10 महीने से गरिमा-गृह को फंड नहीं मिला है और न ही अब तक मेडिकल कार्ड की सुविधा मिल पाई है।
हर ट्रांसजेंडर के पास मात्र 7 रुपए!
2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में 48 लाख ट्रांसजेंडर हैं। 2022 में मिले 365 करोड़ रुपए को अगर 48 लाख ट्रांसजेंडर में बांटा जाए तो हर ट्रांसजेंडर के हिस्से में आते हैं करीब 12.67 रुपए हर महीने। जबकि 2011 से 2022 तक ट्रांसजेंडर्स की आबादी देश में जरूर बढ़ी होगी।
ऐसे में यह राशि और कम होगी जिसमें आटा, चावल तो दूर लॉलीपॉप भी नहीं आएगा। ऐसे में विकास क्या, जिंदगी जीना इस लोगों के लिए कितना कष्टकर होगा।
बजट के बारे में बात करने से पहले SMILE यानी “Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise” के बारे में जान लेते हैं और ये भी कहा कि इसके तहत ट्रांसजेंडर्स को क्या-क्या मिलता है लेकिन उससे पहले ग्राफिक्स से जानिए कौन होते हैं ट्रांसजेंडर:
ट्रांसजेंडर सर्टिफिकेट और आइडेंटिटी कार्ड: इसके लिए एक नेशनल पोर्टल बनाया गया है जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऑनलाइन अपने डॉक्यूमेंट अपलोड करके अपना पहचान पत्र ऑनलाइन हासिल कर सकता है। सर्टिफिकेट और आइडेंटिटी कार्ड मिलने के बाद ही ट्रांसजेंडर्स को SMILE स्कीम का फायदा मिल सकता है।
पोर्टल के अनुसार अब तक कुल 10540 ट्रांसजेंडर्स का सर्टिफिकेट और 10531 का पहचान पत्र बन चुका है। इसमें 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ट्रांसजेंडर शामिल हैं।
स्किल डेवलपमेंट एंड ट्रेनिंग: इसमें 2 तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम होते हैं। शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम में 6 महीने तक 200 से 600 घंटे की ट्रेनिंग होती है।
लॉन्ग टर्म कोर्स 1 साल तक होता है। इसमें कंप्यूटर ऑपरेटर, सिलाई, कढ़ाई, जूट वर्क, हैंडीक्राफ्ट समेत कई काम सिखाए जाते हैं।
स्कॉलरशिप: कक्षा 9 से 12, डिप्लोमा, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए ट्रांसजेंडर्स को स्कॉलरशिप मुहैया कराई जाती है। यह राशि 13,500 रुपए तक होती है।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत जेंडर इन्क्लूसिव फंड का प्रावधान है जो लड़कियों के साथ-साथ ट्रांसजेंडर बच्चों की पढ़ाई के लिए मुहैया कराया जाता है। यह फंड हर राज्य में मौजूद है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत भी ट्रांसजेंडर बच्चों की पढ़ाई पर फोकस किया जाता है।
मेडिकल इंश्योरेंस: इसमें ट्रांसजेंडर्स को आयुष्मान भारत टीजी प्लस के रूप में मेडिकल इंश्योरेंस दिय़ा जाता है। इसकी राशि 5 लाख रुपए तक है। स्कीम के अनुसार इसमें हाॅर्मोन थेरेपी, सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी भी शामिल है।
बता दें, सेक्स रीअसाइनमेंट ऑपरेशन में जेंडर बदलवाया जाता है। यानी अगर कोई लड़का लड़की बनना चाहता है या लड़की लड़का बनना चाहती है तो वह सेक्स रीअसाइनमेंट ऑपरेशन करा सकते हैं। इसके कई चरण होते हैं। पहले मनोचिकित्सक उनकी काउंसलिंग करते हैं और अगर उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति अपने जन्म के जेंडर से मेल नहीं खाता तो वह सर्जरी की क्लीयरेंस देते हैं। इस सिचुएशन को जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है।
इसके बाद हाॅर्मोन थेरेपी शुरू होती है जिससे शरीर में बदलाव आने लगते हैं। जैसे लड़की बनने के प्रोसेस में मूछ-दाड़ी आना बंद होना, आवाज का भारीपन दूर होना। यह बदलाव 3 महीने से 1 साल के अंदर आने लगते हैं। इसके बाद लिंग बदलने की सर्जरी, ब्रेस्ट सर्जरी या फेशियल फेमिनिन सर्जरी होती है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह कैसे अपने शरीर पर बदलाव चाहता है।
लेकिन जो व्यक्ति ट्रांसमैन या ट्रांसवुमन बनते हैं उन्हें जिंदगी भर तक हॉर्मोन इंजेक्शन लेने पड़ते हैं ताकि उनके शरीर के बदलाव लगातार जारी रहें। जैसे अगर लड़की ट्रांसमैन बनी है तो उसकी दाढ़ी-मूछ आती रही। इसे हाॅर्मोन थेरेपी कहते हैं।
गरिमा गृह शेल्टर होम: ट्रांसजेंडर्स के लिए गरिमा गृह नाम से शेल्टर होम की भी सुविधा है। यहां रहने वालों को खाने, मेडिकल केयर और स्किल डेवलपमेंट की भी सुविधा दी जाती है। भारत में अभी 12 गरिमा गृह हैं।
सेक्शन 12(3) ट्रांसजेंडर एक्ट 2019 में लिखा है कि अगर कोई पेरेंट्स ट्रांसजेंडर बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है तो कोर्ट ऐसे व्यक्ति को रिहैबिलेशन सेंटर में रहने के आदेश दे सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए SMILE में गरिमा गृह शेल्टर होम की सुविधा रखी गई।
रोजगार: SMILE स्कीम के तहत ट्रांसजेंडर्स को रोजगार हासिल करने का भी मौका मिलता है। इसके लिए SWAYAM पोर्टल पर ऑनलाइन कोर्स करना होता है जिसके बाद रोजगार के दरवाजे खुलते हैं।
365 करोड़ रुपए 5 साल के लिए हैं, जो बहुत कम हैं
फाइनेंशियल एक्सपर्ट गौरव शर्मा कहते हैं कि सरकार ने मंत्रालय को और मंत्रालय ने जो SMILE स्कीम के तहत ट्रांसजेंडर्स के डेवलपमेंट के लिए जो 365 करोड़ रुपए दिए हैं वो 5 साल के लिए हैं। यह राशि बहुत कम है। यह राशि 1 साल की भी होती तब भी कम ही थी। 5 साल की जगह 1 साल की राशि अलॉट होनी चाहिए।
48 लाख ट्रांसजेंडर के हिसाब से यह राशि उनके विकास के लिए काफी नहीं है।
वहीं, जो राशि ट्रांसजेंडर्स के लिए अलॉट हुई है, वह कहां कितनी लगाई गई है, कहीं इसका लेखा-जोखा नहीं मिलता।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को अपनी वेबसाइट पर यह साफ करना चाहिए कि कितना पैसा ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी पर खर्च हुआ? किस-किस क्षेत्र में लगा? कितना बचा है और कितने ट्रांसजेंडर्स को इसका फायदा मिला?
सरकार को चाहिए कि ट्रांसजेंडर्स के लिए योजनाओं इस तरह से प्लान किया जाए जिससे समाज में उन्हें सम्मान और पहचान मिले और वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
10 महीने से नहीं मिला है गरिमा गृह को फंड
नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन की रीजनल रिप्रेजेंटेटिव मीरा परिडा कहती हैं कि जब ‘गरिमा गृह’ बने तो हमें खुशी हुई थी कि ये अब हमारी गरिमा बनेंगे लेकिन पिछले 10 महीने से गरिमा गृह के लिए कोई फंड नहीं मिला है।
मंत्रालय हमें यह भी बता नहीं पा रहा कि गरिमा गृह के लिए फंड क्यों नहीं मिल रहा। जो ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी गरिमा गृह से जुड़ी हैं वह बुरे हाल में हैं। ये शेल्टर होम हर राज्य में खुलने थे जो जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है।
शुरुआती दौर में जो फंड मिला था तब स्किल डेवलपमेंट के लिए गरिमा गृह में पहला बैच बना था जिसे ट्रेनिंग दी गई थी। यहां से निकलने के बाद वे टाटा जैसी नामी कंपनी में काम कर रहे हैं। लेकिन अब ट्रेनिंग देनी मुश्किल हो गई है। जबकि ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी को सरकार की तरफ से केवल SMILE के तहत ही पहली बार बजट अलॉट हुआ था।
आईडी कार्ड के लिए महीनों करना पड़ता है इंतजार
नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन के एक्सपर्ट मेंबर आर्यन पाशा ने बताया कि ट्रांसजेंडर्स कार्ड के लिए जो नेशनल पोर्टल बनाया गया है, उसमें डॉक्टूमेंट्स अपलोड करने में दिक्कत आती है।
जो सर्टिफिकेट और आईडी कार्ड के लिए अप्लाई करते हैं, उनकी फाइल कई महीनों तक पेंडिंग रहती है और बिना आईडी के ट्रांसजेंडर स्माइल स्कीम का लाभ नहीं उठा सकते।
आयुष्मान भारत टीजी प्लस पर नहीं शुरू हुआ काम
आर्यन पाशा और मीरा परिडा के अनुसार आयुष्मान भारत योजना के तहत अभी तक ट्रांसजेंडर्स को कोई फायदा नहीं मिला है। इस पर ग्राउंड लेवल पर काम करना बाकी है।
मीरा कहती हैं कि पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे कई राज्यों में यह योजना काम ही नहीं कर रही है। ऐसे में जो ट्रांसजेंडर वहां रह रहे हैं वो कैसे इस मेडिकल सुविधा का लाभ उठाएंगे? सेक्स चेंज सर्जरी, हार्मोन थेरेपी कराने के लिए सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही।
आधार कार्ड बनवाने के लिए भी ट्रांसजेंडर्स आईडी या सर्टिफिकेट की पड़ती है जरूरत
आधार कार्ड, पैनकार्ड और पासपोर्ट बनवाने के लिए अब एप्लिकेशन फॉर्म में महिला, पुरुष और थर्ड जेंडर का ऑप्शन मौजूद है। जो ट्रांसजेंडर इन डॉक्यूमेंट्स के लिए अप्लाई करते हैं उन्हें अपना जन्म प्रमाणपत्र, घर के एड्रेस का प्रूफ, फोटो और ट्रांसजेंडर होने का एफेडेविड या मेडिकल आईडी या सर्टिफिकेट जमा करना होता है। लेकिन दिक्कत तब आती है जब ट्रांसजेंडर्स का मेडिकल आईडी या सर्टिफिकेट नहीं बना हो।
वहीं, जिनका आधार कार्ड पहले बना हुआ है और उन्होंने अपना लिंग बदलवाया हो तब उन्हें अखबार में यह सूचना छपवानी होती है। उसके बाद डॉक्यूमेंट में बदलाव के अप्लाई किया जा सकता है।
सेम सेक्स शादी मान्य नहीं
अगर कोई ट्रांसमैन या ट्रांसवुमन है और वह अपोजिट सेक्स से शादी करते हैं तो उनकी शादी हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 5 के तहत लीगल मानी जाती है लेकिन अगर सेम सेक्स कपल यानी लेस्बियन या ग्रे कपल समलैंगिक शादी करते हैं तो उनकी शादी मान्य नहीं है।
स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की इजाजत देता है, लेकिन सब-सेक्शन (C) के तहत सिर्फ पुरुष और महिला ही शादी के लिए आवेदन कर सकते हैं। यानी अगर वे रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी कर भी लें, तो उसे कानूनी तौर पर रजिस्टर्ड नहीं करवा सकते।
ग्रैफिक्स: प्रेरणा झा/सत्यम परिडा
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