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डाउनलोड करें1 फरवरी को देश का आम बजट पेश होगा। इस बजट से सभी को उम्मीदें हैं। ऐसी ही एक उम्मीद प्रेग्नेंसी प्लान करने वाले कपल की भी है। जो नए साल में माता-पिता बनने की सोच रहे हैं। मगर, बीते पांच साल में मां बनना करीब डेढ़ गुना महंगा हो गया है। प्रेग्नेंसी से डिलीवरी तक का खर्चा इन पांच सालों में करीब 90 हजार से बढ़कर 1.5 लाख के पार जा पहुंचा है। ऊपर से GST (वस्तु एवं सेवा कर) का बोझ इतना ज्यादा है कि अस्पतालों का बेड होटल के बेड से महंगा हो गया है।
30 साल पहले तक भारत में 74 फीसदी प्रसव घर पर ही
नौ महीने की प्रेग्नेंसी आसान नहीं होती। 30 साल पहले तक भारत में 74% प्रसव घर पर ही होते थे। तब हेल्थ केयर सुविधाएं नहीं होने से 1000 बच्चों के जन्म पर 80 बच्चों की मौत हो जाती थी, जबकि एक लाख बच्चों के जन्म पर 437 महिलाएं दम तोड़ देतीं।
जैसे-जैसे हेल्थ केयर सुविधाएं बढ़ीं, लोगों में जागरूकता आई; अस्पतालों में बच्चों की जन्मदर बढ़ी। ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5’ के अनुसार, अब देश में 92% डिलीवरी अस्पतालों में हो रही है। इनमें से लगभग 40% डिलीवरी प्राइवेट अस्पतालों में होती है। देखना ये है कि पिछले पांच सालों में मां बनना कितना महंगा हो गया। बजट 2023-2024 में फैमिली शुरू करने या दूसरा बेबी प्लान करने के लिए दंपती को कितना कुछ सोचना पड़ेगा।
स्टोरी में आगे बढ़ने से पहले इस पोल पर अपनी राय साझा करते चलिए…
ऐसे में प्रेग्नेंसी से लेकर डिलीवरी तक का खर्च भी बढ़ गया है। पिछले पांच सालों में कितना खर्च बढ़ा, इसे दो केस स्टडी से समझ सकते हैं।
इन दो केस से समझ सकते हैं कि पांच साल पहले प्रेग्नेंसी और बेबी बर्थ पर जहां करीब एक लाख रुपए खर्च हुए, अब उस पर करीब 1.5 लाख रुपए के आसपास खर्च हो जाता है। यानी टियर-2 शहरों में पिछले पांच साल में सिजेरियन डिलीवरी का खर्च लगभग डेढ़ गुना बढ़ गया है।
देश में पहले जहां 74 फीसदी प्रसव घरों में ही होते थे, वहीं, अब 40 फीसदी तक डिलीवरी प्राइवेट अस्पतालों में हो रही है। इसके पीछे बड़ी वजह है कि सरकारी अस्पतालों पर से लोगों का भरोसा टूटने लगा है, वहीं प्राइवेट अस्पताल इसे कमाई का बड़ा जरिया बनाने में लग गए हैं।
40 प्रतिशत प्राइवेट हॉस्पिटल में हो रही डिलीवरी
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) की रिपोर्ट कहती है कि 2019-21 के दौरान 61.9 प्रतिशत डिलीवरी सरकारी अस्पतालों में हुई। शहरों में 52.6 प्रतिशत और गांवों में 65.3 प्रतिशत डिलीवरी सरकारी अस्पतालों में हुई। यानी शहरों में 48 प्रतिशत डिलीवरी प्राइवेट हॉस्पिटल्स में हो रही है। गांवों में भी 35 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट अस्पतालों में जन्म ले रहे हैं।
यही नहीं, प्राइवेट अस्पतालों में करीब आधी डिलीवरी सिजेरियन हो रही हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का डेटा कहता है कि किसी देश में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत 10-15% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
प्राइवेट अस्पतालों में 47% डिलीवरी सिजेरियन
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, पूरे देश में 21.5% डिलीवरी सिजेरियन हो रही है। हालांकि सरकारी अस्पतालों और प्राइवेट अस्पतालों में C-सेक्शन के आंकड़ों में काफी अंतर है।
सरकारी अस्पतालों में महज 14.3 फीसदी डिलीवरी सिजेरियन है। वहीं, प्राइवेट अस्पतालों में 47.4% डिलीवरी सिजेरियन है। 2015-16 के मुकाबले इसमें करीब 10% का इजाफा हुआ।
तीन चीजों पर निर्भर करता है डिलीवरी का खर्च
बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर हॉस्पिटल, दिल्ली की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. कृतिका बताती हैं कि प्रेग्नेंसी से डिलीवरी तक का खर्च तीन बातों पर निर्भर करता है-
गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. कृतिका बताती हैं कि सरकारी अस्पतालों में प्रेग्नेंसी की शुरुआत से ही सारी सुविधाएं नि:शुल्क होती हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदन योजना (PMMVY) के तहत सरकारी अस्पतालों में प्रेग्नेंट वुमन को पैसे भी दिए जाते हैं। आइए इसे ग्रैफिक के जरिए जानते हैं।
अवेयरनेस बढ़ने से बढ़ा खर्च: पहले एक, अब चार अल्ट्रासाउंड
डॉ. कृतिका बताती हैं कि अवेयरनेस बढ़ने से प्रेग्नेंट वुमन चेकअप के लिए रेगुलर आ रही हैं। पांच साल पहले प्रेग्नेंसी के दौरान एक अल्ट्रासाउंड होता था, लेकिन अब चार से पांच अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं। एक कलर डॉप्लर अल्ट्रासाउंड पर तीन से पांच हजार तक खर्च हो जाते हैं। यानी पूरी प्रेग्नेंसी में करीब 20 हजार रुपए तो अल्ट्रासाउंड पर ही खर्च हो जाते हैं।
पैथोलॉजिकल लैब्स दे रही हैं प्रेग्नेंसी टेस्ट के 2-2.5 हजार के पैकेज
कई पैथोलॉजिकल लैब्स प्रेग्नेंसी टेस्ट के पैकेज देते हैं। दिल्ली के एक बड़े पैथोलॉजिकल लैब में प्रेग्नेंसी टेस्ट का पैकेज 2000 रुपए में आता है जिसमें CBC, थॉयराइड, हीमोग्लोबीन, ब्लड ग्रुप, यूरिन टेस्ट, शुगर फास्ट, हेपेटाइटिस, HIV जैसे टेस्ट हैं। हालांकि इसका ट्रेंड कम है। सामान्य रूप से रूटीन चेकअप और डिलीवरी एक ही क्लिनिक में होती है।
अस्पतालों में ANC (एंटी नेटल केयर) प्रोफाइल बनाया जाता है। इसमें ब्लड टेस्ट, हीमोग्लोबीन, प्लेटलेट्स, ब्लड ग्रुप, यूरिन टेस्ट, वायरल मार्कर टेस्ट जिसमें HCV, हेपेटाइटिस B और HIV I, HIV II टेस्ट आते हैं। यह भी 2000 से 2500 रुपए का पैकेज होता है।
पिछले पांच साल में प्रेग्नेंसी किट भी महंगी हुई
अगर सिर्फ प्रेग्नेंसी किट की बात करें तो इस समय यह किट 51 रुपए से शुरू होकर 299 रुपए तक की है। यह किट वन टाइम यूज होती है। पटना स्थित एक मेडिकल स्टोर के संचालक ने बताया कि प्रेग्रेंसी किट HCG यूरिन टेस्ट किट होती है। कई फॉर्मास्यूटिकल कंपनियां प्रेग्रेंसी किट बना रही हैं। पिछले पांच वर्षों में किट की कीमत में 60 से 70% की वृद्धि हुई है। जो किट पहले 30 रुपए में आती थी वह अब 50 से 55 रुपए में मिल रही है।
प्रेग्नेंसी पैकेज 30 हजार से शुरू होकर 1.50 लाख तक
कई अस्पताल प्रेग्नेंसी पैकेज देने लगे हैं। नॉर्मल डिलीवरी से लेकर C-सेक्शन डिलीवरी के अलग-अलग पैकेज होते हैं। छोटे शहरों में जहां नॉर्मल डिलीवरी का पैकेज 30 से 50 हजार रुपए में होता है वहीं सिजेरियन डिलीवरी का पैकेज 1 लाख से डेढ़ लाख तक होता है।
रांची की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे राज शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने एक अस्पताल से 1 लाख का प्रेग्नेंसी पैकेज लिया था। हालांंकि C-सेक्शन डिलीवरी के बाद इसमें नॉन मेडिकल आइटम्स का बिल भी जोड़ा गया जिससे खर्च करीब डेढ़ लाख पहुंच गया। इसमें डाइटीशियन, फिजियो, एक्यूप्रेशर का भी बिल शामिल है।
मैटरनिटी इंश्योरेंस का भी बढ़ा ट्रेंड, 50 हजार से 2 लाख तक खर्च कवर
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी प्लम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि टियर 1 शहरों और मेट्रो के प्राइवेट अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी पर 45 से 55 हजार तक खर्च आता है। जबकि C सेक्शन डिलीवरी पर 70 हजार से 2 लाख तक का खर्च आ सकता है। कंपनी के अनुसार, उसके 66% कस्टमर्स ने 50 हजार तक का मैटरनिटी कवर लिया है। जबकि 15% ने ही 1 लाख से सवा लाख तक का कवर लिया है।
इंश्योरेंस के लिए 2 से 3 साल का होता है वेटिंग पीरियड
रांची स्थित स्टार हेल्थ के रिप्रजेंटेटिव प्रमोद कुमार बताते हैं कि मैटरनिटी कवर हेल्थ इंश्योरेंस के अंदर ही कवर होता है। इसे ऐसे समझें-
A को मैटरनिटी इंश्योरेंस चाहिए
तो जरूरत क्या होगी: 1. पति-पति दोनों को इंश्योरेंस के लिए साथ में आना होगा।
2. दो साल का वेटिंग पीरियड होगा। यानी प्रेग्रेंसी प्लान करने से दो साल पहले आपको इंश्योरेंस लेना होगा।
मैटरनिटी कवर कितने का होगा: 1. पांच लाख तक का। इस पर प्रीमियम एक साल में 8 हजार रुपए लगेंगे।
2. 10 लाख तक का। इस पर 11,500 रुपए हर वर्ष देने होंगे।
प्रमोद बताते हैं कि प्रेग्रेंसी से डिलीवरी तक कोई बीमारी होती है या किसी तरह का कॉम्प्लिकेशंस होता है तो उसका खर्च बीमा कंपनी उठाती है।
GST के चलते होटल के बेड से महंगा प्राइवेट अस्पतालों का बेड
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह बताते हैं कि एक्सरे, अल्ट्रासाउंड पर 12 प्रतिशत तक जीएसटी है। वहीं हॉस्पिटल बेड, ऑपरेटिंग टेबल, सर्जिकल फर्नीचर पर जीएसटी 18 प्रतिशत तक है। हॉस्पिटल बेड पर 18% GST लगने का मतलब है बेड चार्ज बढ़ जाएगा। यह चार्ज किसी होटल से भी अधिक है। होटल रूम या बेड पर GST 12 से 18% है।
सहजानंद कहते हैं कि टियर 1 शहरों में हॉस्पिटल में 5000 रुपए से ऊपर का कमरा लेने पर अतिरिक्त 5 प्रतिशत जीएसटी देना होता है। ये खर्च भी मैटरनिटी में जुड़ जाता है। हमने कई बार सरकार से मांग की है कि इसे खत्म किया जाए।
GST आने से कुछ दवाइयां सस्ती हुईं लेकिन अस्पतालों का खर्च बढ़ा
दिल्ली में जेपी फार्मास्यूटिकल्स के हेड रामवीर सिंह बताते हैं कि जब वैट लागू था तो मैटरनिटी खर्च अलग-अलग होता था। लेकिन GST लगने के बाद टैक्स सामान्य रूप से 12 प्रतिशत हो गया है। कुछ दवाओं के रेट में कमी आई है। लेकिन अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर कॉस्ट को देखें तो उसमें GST अधिक कर दिया गया है।
जब महिला ‘उम्मीद’ से होती है तो पूरे घर में खुशी का माहौल होता है। ऐसे में महिलाएं सरकार से उम्मीद करती हैं कि जब वे ‘उम्मीद से हों’ तो उनकी खुशियों पर GST और महंगाई का और बोझ न डाला जाए। 2023-24 का बजट एक मां की उम्मीदों पर खरा उतरे।
ग्राफिक्स: सत्यम परिडा
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