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डाउनलोड करेंहाल ही में प्रयागराज में मोबाइल को लेकर ऐसी घटना सामने आई जो किसी भी पेरेंट को सोचने पर मजबूर कर देगी। 9वीं कक्षा की छात्रा को जब मोबाइल पर गेम खेलते देखा तो पिता ने डांट दिया। ऐसे में बेटी ने रात होते ही अपने कमरे में जाकर फांसी लगा ली।
यह ऐसा कोई पहला मामला नहीं है। देश के हर कोने से ऐसे मामले अक्सर सुर्खियों में आते रहते हैं। यूपी के संतकबीर नगर का मामला तो बिल्कुल हाल ही का है, जहां 10वीं की छात्रा ने नदी में कूद कर इसलिए जान दे दी क्योंकि परिवार वालों ने उसे मोबाइल नहीं दिलाया था।
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बच्चों में मानसिक समस्याओं की ऐसी तमाम घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। सवाल है कि आखिर बच्चों में ऐसी मानसिक बीमारियां क्यों पनप रही हैं जो उनको सुसाइड तक करने जैसा कदम उठाने को मजबूर कर देती हैं।
33 प्रतिशत पेरेंट नहीं जानते अपने बच्चों की मानसिक बीमारियां
एक अनुमान के मुताबिक, आजकल 10 प्रतिशत बच्चों में किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारियां पाई जाती हैं। सबसे गंभीर बात तो यह है कि 33 प्रतिशत पेरेंट्स को बच्चों की इन बीमारियों के बारे में पता ही नहीं होता है।
मानसिक रोग विशेषज्ञों की मानें तो मोबाइल पर गेम खेलने की लत एक तरह की बीमारी है जिसे पैथोलॉजिकल गेमिंग कहते हैं। कोविड के खतरनाक दौर में इस तरह की बीमारी से ग्रस्त बच्चों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी।
डॉ. विश्वजीत कुमार मंडल के मुताबिक, आजकल मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन की तरफ ले जा रहा है। इस तरह के एडिक्शन से मानसिक बीमारियां पैदा होती हैं और ऐसे में बच्चे कोई न कोई गलत कदम उठा लेते हैं। मानसिक बीमारी को मेडिसिन से दूर करना संभव नहीं है। पेरेंट्स को बच्चों की ऐसी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और समय रहते उनकी ऐसी आदत को पॉजेटिव तरीके से दूर करना चाहिए।
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