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देश में कोरोना का दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन सामने आया है। अभी तक इससे संक्रमित 187 लोगों की पुष्टि हो चुकी है। चिंता की बात है कि दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन, ब्रिटेन में मिले नए स्ट्रेन से एकदम अलग है। अफ्रीकी वैरिएंट पर अभी स्टडी की जा रही है। अभी तक की स्टडी में अफ्रीकी वैरिएंट ज्यादा संक्रामक लग रहा है। इसमें 3 नए एलिमेंट पाए गए हैं, जिसके चलते यह ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी किसी भी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।
आइए 5 सवालों और उनके जवाबों के जरिए अफ्रीकी स्ट्रेन को समझते हैं-
क्या है अफ्रीकी स्ट्रेन?
कोरोनावायरस समेत सभी वायरस हमेशा एक नए स्ट्रेन के तौर पर उभरते रहते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह उनका नेचर भी है। वायरस की संरचना में थोड़ा-बहुत अनुवांशिक बदलाव हो जाता है, जिसके बाद उनकी ढेरों कापियां तैयार हो जाती हैं। इनमें से कुछ काफी खतरनाक, जबकि कुछ हल्के स्ट्रेन होते हैं। कोरोना के भी अब तक कई स्ट्रेन आ चुके हैं, इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक अफ्रीकी स्ट्रेन है। इसे 501.V2 या B.1.351 भी कहते हैं।
क्या अफ्रीकी स्ट्रेन ज्यादा खतरनाक है?
अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि कोरोना का अफ्रीकी वैरिएंट कितना खतरनाक है, लेकिन इसमें कुछ ऐसी चीजें पाई गई हैं जिससे पता चल रहा है कि यह पुराने वैरिएंट की तुलना में ज्यादा तेजी से फैल सकता है।
क्या साउथ अफ्रीकी वैरिएंट पर वैक्सीन काम करेगी?
वैज्ञानिकों ने कई तरह की वैक्सीन को अफ्रीकी स्ट्रेन पर टेस्ट किया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने पीड़ित के ब्लड सैंपल का सहारा लिया, जिसके जरिए अफ्रीकी वैरिएंट में पाए जाने वाले N501Y और E484k पर स्टडी की गई, लेकिन वैज्ञानिक अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं।
नए स्ट्रेन पर ICMR की पड़ताल?
कोरोना के अफ्रीकी स्ट्रेन पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की नजर बनी हुई है। ICMR के डायरेक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि देश में नए कोरोना वैरिएंट के कुल 187 मरीज सामने आ चुके हैं। सभी को क्वारैंटाइन करने के साथ इलाज चल रहा है। उनके लक्षणों पर भी निगाह रखी जा रही है। ICMR-NIV मिलकर SARS-CoV-2 के दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट को आइसोलेट और कल्चर करने की कोशिश कर रही है।
नए स्ट्रेन की रोकथाम के क्या तरीके हैं?
एक्सपर्ट के मुताबिक यह कोरोना का ही नया वैरिएंट है, इसलिए कोरोना की रोकथाम में हम जो कर रहे हैं, उसी को जारी रखना है। इसकी रोकथाम के लिए अभी तक दुनिया के किसी हेल्थ एजेंसी ने कोई अलग गाइडलाइन तो जारी नहीं की है।
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