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एन. रघुरामन का कॉलम:5 वर्ष की उम्र तक, आपके बच्चे के लिए दिन में कम से कम तीन घंटे की शारीरिक गतिविधि और अच्छी नींद बेहद ज़रूरी है

एक वर्ष पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Money Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

वो मां एक हाथ से अपने चार वर्षीय बच्चे को खींच रही थी, दूसरे हाथ में सामान था, प्लेन का बोर्डिंग पास उंगलियों के बीच था, उसकी आंखें पास पर लिखे सीट नंबर को खोज रही थी। वहीं बच्चे को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि वो कहां जा रहा है। उसमें प्लेन में बैठने को लेकर कोई उत्साह नहीं था। उसे इससे भी मतलब नहीं था कि आसपास हमउम्र बच्चे हैं या नहीं।

वो मोबाइल में व्यस्त था, जो उसके दूसरे हाथ में था। कार्टून किरदार उसके चेहरे पर मुस्कान ला रहे थे। मां को सीट मिल गई तो उसने चलना बंद कर दिया और बच्चे का हाथ छोड़कर सीट के ऊपर बने कंपार्टमेंट में सामान भरने लगी। लेकिन बच्चा चलता रहा और एक हाथ ऐसे ऊपर किए रहा, जैसे उसे कोई पकड़े हुए हो। उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि वो कहां जा रहा है।

उसकी नज़रें मोबाइल स्क्रीन से चिपकी थीं। वो जाकर एक एयर होस्टेस से टकरा गया जो किसी यात्री की मदद कर रही थी। तब बच्चे को अहसास हुआ कि यह उसकी मां नहीं है। वो थोड़ा डर गया। तब होस्टेस ने उसका हाथ पकड़ा और उसे उस सीट पर ले गई जहां उसकी मां थी।

बच्चा फिर स्क्रीन देखने में जुट गया। उसने अपनी मां को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि नज़रें तो मोबाइल पर कार्टून फ़िल्म में डूबी हुई थीं। जब मां ने कहा, ‘तुम देखकर नहीं चल सकते?’, बच्चा सिर्फ यही बोला, ‘मुझे परेशान मत करो’।

शनिवार को ये दृश्य, चेन्नई की मेरी हवाईयात्रा से था। मैंने यात्रा के दौरान मां से बात करने का फैसला लिया। बीस मिनट की बातचीत में बच्चे ने मुझे तीन बार भी नहीं देखा होगा, कुलमिलाकर एक मिनट भी नहीं। स्वाभाविक है कि मैं कार्टून किरदार से ज्यादा रोचक नहीं था। जबकि मैंने उसे कहानियों और गिफ़्ट से लुभाने की बहुत कोशिश की।

दरअसल, 2020 में पूरे देश ने एक नए वायरस और उसके कारण लगे लॉकडाउन को झेला। इस दौरान यह आईटी एक्सपर्ट मां, वर्चुअल मीटिंग, घर के काम और सबसे ज़रूरी, दो साल के बेहद एक्टिव बेटे को व्यस्त रखने में संघर्ष करती रही। परेशान हो चुके बाकी माता-पिता की तरह ही, उसे भी एक ही समाधान दिखा- स्मार्टफोन।

अब दो साल बाद, ज़िंदगी पटरी पर लौटी है। लेकिन मां के सामने नई समस्या है- बच्चे की स्क्रीन की लत। नतीजाः 2-4 साल के बच्चे, ज़्यादा स्क्रीन देखने के कारण न्यूरोलॉजिकल बीमारी, चश्मे के बढ़ते नंबर और वास्तविक दुनिया से सामंजस्य बैठाने में परेशानी जैसी समस्याओं का शिकार हैं। संक्षेप में वे अब ‘स्क्रीन जंकी’ हैं।

मुझे लगा कि बच्चे में कमज़ोर सामाजिक सोच-समझ के साथ ही, भावनात्मक विकास, संवाद के प्रति संवेदनशीलता और भाषा के महत्व को जानने से जुड़ी कमज़ोरियां भी हैं। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने, 2021 में माता-पिता के लिए स्क्रीन से जुड़े निर्देश जारी किए थे, जिसमें उल्लेख है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह की स्क्रीन नहीं दिखानी चाहिए।

दो से पांच वर्ष के बच्चों का स्क्रीन टाइम, अधिकतम एक घंटा प्रतिदिन होना चाहिए। सात वर्ष की उम्र तक खाना खाते हुए स्क्रीन नहीं दिखाना चाहिए। यह शायद इसलिए ज़रूरी है कि बच्चों को परिवार के लोगों के चेहरे के हावभाव देखना चाहिए, जिससे बच्चों का मानसिक विकास होता है।

फंडा यह है कि पांच वर्ष की उम्र तक, आपके बच्चे के लिए दिन में कम से कम तीन घंटे की शारीरिक गतिविधि और 10-14 घंटे की अच्छी नींद बेहद ज़रूरी है। गाइडलाइंस के मुताबिक, ऐसा करना बच्चे को स्क्रीन जंकी बनने से बचाएगा।