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नई दिल्ली। छोटे-छोटे बैग बनाकर 25 पैसा का प्रॉफिट लेकर कोई व्यक्ति 200 करोड़ की कंपनी खड़ी कर सकता है। ये सुनने में असंभव लगता है। लेकिन पूरे देश भर में फेमस स्टीलबर्ड हेलमेट के फाउंडर सुभाष कपूर ने ऐसा कर दिखाया है। 74 साल के सुभाष कपूर के स्ट्रगल की शुरूआत 1956 में हुई थी जब उन्होंने बैग बनाने का काम शुरू किया।
परिवार को पालने के लिए सिलते थे बैग
स्टीलबर्ड के चेयरमैन सुभाष कपूर ने स्टीलबर्ड की नींव रखी थी। स्टीलबर्ड हाई टेक इंडिया एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी है जो हेलमेट बनाती है। अब कंपनी का सालाना टर्नओवर 200 करोड़ रुपए है। सुभाष कपूर ने एक समय कपड़े के बैग सिलने से लेकर ऑयल फिल्टर बनाने का काम बचपन में किया है। उन्होंने फाइबर ग्लास प्रोटेक्शन गेयर बनाने का बिजनेस भी किया है। उनके स्कूल में हमेशा सिर्फ पासिंग मार्क्स ही आते थे। परिवार को चलाने के लिए वह अपनी पढ़ाई भी जारी नहीं रख पाए।
कभी कपूर परिवार पाकिस्तान मे थी रईस फैमिली
वह और उनका परिवार पाकिस्तान के झेलम डिस्ट्रिक में रहता था। उनका परिवार विभाजन के बाद इंडिया आया। पाकिस्तान में उनके परिवार के 26 बिजनेस थे इसमें यूटेंसिल्स, क्लोथ, ज्वैलरी और एग्रीकल्चर बिजनेस था। उनके 13 कुएं थे जिनसे वह 30 एकड़ जमीन की सिंचाई करते थे। उनके परिवार ने कश्मीर में पहला पेट्रोल पंप खोला था। विभाजन ने परिवार को अमीर से गरीब बना दिया।
विभाजन के समय पाकिस्तान से आए इंडिया
साल 1947 में उनकी मां लीलावंती अपने चार बेटों छरज, जगदीश, कैलाश और डेढ़ साल के सुभाष के साथ हरिद्वार में थे जब विभाजन की घोषणा हुई। तब उनके पास परिवार के साथ वापिस जाने का ऑप्शन ही नहीं था इसलिए वह इंडिया में रूक गई जबकि उनके पिता तिलक राज कपूर पाकिस्तान में थे। विभाजन के समय पाकिस्तान से इंडिया आने में उनपर बीच रास्ते में उन पर अटैक हो गया लेकिन वह बच गए लेकिन उनके पास कुछ नहीं बचा। लेकिन परिवार फिर एक हो गया और वह सरवाइवल के लिए छोटे मोटे काम करने लगे।
परेशानी में बीता शुरूआती समय
उनका परिवार हरिद्वार से दिल्ली 4 साल बाद आया लेकिन वह वक्त काफी परेशानी भरा था। उनकी ये स्ट्रगल 1956 तक चलती रही। एक दिन उनके पिता ने फैसला किया कि वह बिजनेस करेंगे क्योंकि यह उनके जींस में था। उन्होंने अपनी वाइफ की ज्वैलरी बेची और एक छोटा बिजनेस शुरू कर दिया। वह नमक के लिए कपड़े के पैकेजिंग बैग बनाने लगे। उन्होंने कंपनी का नाम कपूर थाली हाउस रखा। वह 100 पाउच 4 रुपए में बेचते थे। उनका ये छोटा बिजनेस चल निकला।
आगे पढ़ें - कब बनाई स्टीलबर्ड
सभी तरह के कारोबार में किया ट्राई
सुभाष कपूर का काम कपड़े को काटने का होता था और बाकी भाई उसे सिलते और पैक करते थे। वह तब मैट्रिक में थे और तब वह एग्जाम देने जाते लेकिन पहले कपड़ा काटकर जाते। काम में हाथ बंटाने के लिए मैट्रिक के बाद पढ़ाई नहीं कर पाए। पाउच बनाने वाले कारोबार के अलावा उनकी फैमिली ने ऑयल फिल्टर का कारोबार किया।
1963 में बनाई स्टीलबर्ड
13 मार्च 1963 को उन्होंने स्टीलबर्ड इंडस्ट्री की नींव रखी। उनकी ये पार्टनरशीप दिल्ली में नवाबगंज में थी। इसके बाद उन्हें कभी वापिस नहीं मुड़ना पड़ा। अगले दो साल में वह ट्रैक्टर के लिए 280 तरह के ऑयल फिल्टर बनाने लगे। उनके दोस्त भी अब उनसे सलाह लेने आने लगे। तब वह किसी दोस्त को हेलमेट बनाने की सलाह दे रहे थे क्योंकि तब सरकार हेलमेट को अनिवार्य करने जा रही थी। एक दिन वाशरूम में दिमाग में आया कि दूसरे को सलाह देने की जगह वह स्वयं हेलमेंट क्यों नहीं बनाते। साल 1976 में उन्होंने हेलमेट बनाने का प्लान किया।
दिल्ली में हेलमेट बन गया अनिवार्य
70 के दशक से पहले हेलमेट पहनना अनिवार्य नहीं था। तब देश में ज्यादातर हेलमेट इंपोर्ट होते थे। साल 1976 में दिल्ली सरकार ने हेलमेट अनिवार्य कर दिया। वह फाइबर ग्लास कपंनी पिलकिंगटन लिमिटेड के लोगों को जानते थे जिन्होंने उन्हें हेलमेट बनाने की जानकारी दी। वह हेलमेट बनाने लगे। वह दिल्ली की कुछ दुकानों में हेलमेट बेचने लगे। उन्होंने इसकी कीमत 65 रुपए तय कि लेकिन दुकानदार 60 रुपए करना चाहते थे। सुभाष के मुताबिक वह दुकानदारों के दबाव में नहीं आए क्योंकि उनको पता था कि उनके पास कोई ऑप्शन नहीं है। जब हेलमेट की डिमांड बढ़ी तो दुकानदार उनसे हेलमेट मांगने लगे। उन्होंने एक दिन 2.5 लाख रुपए मार्केट से कलेक्ट करे।
विज्ञापन से मिला फायदा
उन्होंने यह पैसा न्यूजपेपर और दूरदर्शन पर विज्ञापन पर खर्च किया। इसका फायदा उन्हें मिला और हेलमेट की डिमांड कई गुना बढ़ गई। उन्होंने इसकी कीमत 65 रुपए से बढ़ाकर 70 रुपए कर दी। उनका बिजनेस दौड़ने लगा था और फिर उन्होंने साल 1980 में मायापुरी में अपना प्लांट खोला। अब सुभाष कपूर के दो बच्चें बेटा राजीव और बेटी अनामिका है। अब सुभाष कपूर के बेटे राजीव कपूर स्टीलबर्ड हेलमेट के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
आगे पढ़ें - कितना बड़ा हो चुका है कारोबार
अब हैं 8 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट
अब स्टीलबर्ड के पास दिल्ली ऑफिस में 1,700 से अधिक कर्मचारी हैं। बीते 4 दशक में उन्होंने हेलमेट बनाने वाली करीब 8 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई है। उनके तीन प्लांट हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले, दिल्ली और नोएडा में 2 यूनिट है। उनकी कंपनी रोजाना 9,000 से 10,000 हेलमेट और एक्सेसरी पीस रोजाना बनाती है। इनकी रेन्ज करीब 900 रुपए से 15,000 रुपए तक है। कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ रुपए है।
इटली की कंपनी के साथ किया टाईअप
उन्होंने इटली की सबसे बड़ी हेलमेट बनाने वाली कंपनी बिफे के साथ भी टाईअप किया है। वह करीब 4,000 वैराइटी के हेलमेट बनाते हैं। स्टीलबर्ड श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, ब्राजील, मॉरिशियस और इटली में हेलमेट और एक्सेसरी एक्सपोर्ट करते हैं।
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