- सरकार बैटरी निर्माता कंपनियों के लिए यूज्ड बैटरी के कलेक्शन और रिसाइकलिंग का कार्य अनिवार्य बना सकती है।
- सरकार की इस पहल से इलेक्ट्रिक कार की कीमतें कम हो सकती हैं।
Moneybhaskar.com
Oct 09,2019 02:05:11 PM ISTनई दिल्ली. केंद्र सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल की जाने वाली लीथियम ऑयन बैटरी को दोबारा से उपयोग में लाने के लिए एक पॉलिसी ला सकती है। सरकार एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) के तहत बैटरी बनाने वाली कंपनियों के लिए यूज्ड बैटरी (बैटरी लाइफ खत्म होने पर) को इकट्ठा करने और उसे दोबारा इस्तेमाल योग्य बनाने का नियम जारी कर सकती है। मतलब बैटरी निर्माता कंपनी की बैटरी की बिक्री के बाद भी अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुफ्त नहीं हो जाएंगी। इस नियम के तहत बैटरी निर्माता कंपनियों सरकार टैक्स छूट भी दे सकती है।
पॉलिसी बनाने का दिया प्रस्ताव
सूत्रों के मुताबिक अगर यह प्रस्तावित पॉलिसी लागू हो जाती है, तो बैटरी निर्माता कंपनियों को बैटरी को दोबारा इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए एक रीसाइक्लिंग फैसिलिटी लगानी होगी, जहां इस्तेमाल बैटरी को इकट्ठा करके उन्हें रिसाइकिल किया जाएगा। अधिकारियों के मुताबिक बैटरी और इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिए ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी पर अंतर-मंत्रालयीय संचालन समिति ने प्रस्ताव दिया है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक रिसाइकलिंग पॉलिसी बनाएं। साथ ही बैटरी निर्माताओं की जिम्मेदारी भी तय करे।
इलेक्ट्रिक वाहन के घट सकते हैं दाम
भारत को बैटरी में इस्तेमाल आने वाले लीथियम, कोबाल्ट, निकिल और एल्युमिनियम को बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है। ऐसे में सरकार यूज्ड बैटरी के जरिए इन प्रोडक्ट को दोबारा हासिल करने की योजना बनाई है। इससे बैटरी की कीमत कम हो जाएगी और इसका सीधा असर इलेक्ट्रिक वाहन की कीमत पर पड़ेगा। योजना को नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 तक तहत आगे बढ़ाया जाएगा। इस योजना के तहत सरकार ने साल 2020 तक भारतीय सड़क पर 60 से 70 लाख इलेक्ट्रिक व्हीकल को दौड़ाने का लक्ष्य तय किया है और साल 2030 तक कुल वाहनों में 30 फीसदी इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी करने की योजना है।
नियम में करना होगा बदलाव
सरकार को इसके लिए नियमों में बदलाव करना पड़ सकता है। दरअसल इंडियाज बैटरीज (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल 2001 के तहत लीथियम ऑयन बैटरी को दोबारा इस्तेमाल किए जाने योग्य किसी तरह का प्रावधान नहीं है। मौजूदा नियम के तहत इलेक्ट्रानिक्स में इस्तेमाल आने वाली केवल स्मॉल साइज लीथियम ऑयन बैटरी को ही ई-वेस्ट मैनेजमेंट रुल के तहत शामिल किया जाता है।
क्यों पड़ी पॉलिसी की जरूरत
जेएमके रिसर्च के मुताबिक लीथियम ऑयन बैटरी का कारोबार भारत में साल 2030 तक करीब एक हजार मिलिनय डॉलर का हो सकता है। दरअसल लीथियम ऑयन बैटरी के नियम न होने के चलते इसकी रीसाइकलिंग नहीं की जा सकती थी। इससे पर्यावरण को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचता था। बैटरी से उपयोगी तत्वों को नहीं इकट्ठा किया जा सकता था।