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नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और मोदी सरकार के बीच टकराव की खबरें आती रही हैं। लेकिन पिछले 19 नवंबर को आरबीआई की सरकार के साथ बैठक के बाद लगा कि चीजें सुलझ गई हैं। लेकिन अब आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद मोदी सरकार और आरबाई के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया है। हालांकि उर्जित पटेल ने इस्तीफे के पीछे व्यक्तिगत कारण बताए हैं। पटले से पहले भी आरबीआई के कई गवर्नर इस्तीफा दे चुके हैं।
आरबीआई और सरकार के टकराव का रहा है लंबा इतिहास
वैसे आरबीआई गवर्नर का सरकार के साथ टकराव और इस्तीफे का सिलसिला नया नहीं है। इतिहास में ऐसे तमाम मौके आएं है, जब दोनों एक दूसरे के सामने आ गए हैं। नरसिंहा राव और अटल बिहारी वाजपेयी, जवाहर लाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी और मनमोहन सरकार का आरबीआई के साथ टकराव होता रहा है।
Sir Osborne smith
वर्ष-1935
यह आजादी के पहले का दौर था, उस वक्त Osborne Smith भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पहले गवर्नर बनें।लेकिन स्मिथ के सरकार के साथ रिश्ते ठीक नहीं रहे। वो एक्सचेंज रेट को लेकर सरकार के फैसले से खुश नहीं थे। दोनों के बीच टकराव इस हद तक बढ़ा कि उन्होंने आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया। साथ ही किसी भी बैंक नोट पर साइन करने से मना कर दिया था।
Benegal Rama Rao
वर्ष-1947-57
अब तक भारत को आजादी मिल चुकी थी और Bengal Rama Rao को आरबीआई गवर्नर बनाया गया। कुछ वक्त के कार्यकाल के बाद रामा राव और सरकार के बीच टकराव बढ़ गया। उस वक्त तत्कालीन वित्त मंत्री टी. टी कृष्णामचारी पर आरबीआई के कार्यक्षेत्र में दखल का ओर लगा। इससे सरकार और आरबीआई के बीच टकराव हुआ। राव ने मामले को लेकर पीएम जवाहर लाल नेहरु को पत्र लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया। इस विवाद के कुछ दिनों बाद राव ने 7 जनवरी 1957 को इस्तीफा दे दिया।
K. K Puri
वर्ष-1977
भारत में वर्ष 1977 में सत्ता में आई, जो कि पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। लेकिन उसके भी रिश्ते आरबीआई गवर्नर के साथ तल्ख रहे। सत्ता में आने के बाद पीएम मोरारजी देसाई और वित्त मंत्री हीरुभाई पटेल ने पुरी पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया। इसके बाद राव ने 1977 में सरकार को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
एस जगन्नाथ
वर्ष- 1975
भारत सरकार और तत्कालीन आरबीआई गवर्नर के बीच क्रेडिट लिमिट को बढ़ाने को लेकर टकराव देखने को मिला था। केंद्रीय बैंक ने क्रेडिट लिमिट को बढ़ाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद केंद्रीय बैंक के गवर्नर एस जगन्नाथ को इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने 19 मई 1975 को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
मनमोहन सिंह
वर्ष-1982-1985
मनमोहन सिंह से प्रणव मुखर्जी के वित्त मंत्री होने के दौरान इस्तीफा देने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन इंदिरा गांधी की कहने पर उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। लेकिन राजीव गांधी ने उन्हें प्लानिंग कमीशन भेज दिया था।
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राम नारायण मल्होत्रा
वर्ष-1985
राम नारायण राव ने मनमोहन सिंह की जगह ली थी। लेकिन बढ़े डिविडेंट पेआउट की वजह से उनका भी सरकार के साथ टकराव हुआ। ऐसे में उन्होंने भी 1990 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उस वक्त वित्त मंत्री यशवंत सिंहा थे.
वाई वी रेड्डी
वर्ष-2003-2004
रे़ड्डी ने प्राइवेट बैंक में एफडीआई लिमिट को कंट्रोल करने चाहते थे। लेकिन केंद्र सरकार ने उसे अपना अधिकार क्षेत्र बताया था। साथ ही इंटरेस्ट रेट को लेकर उनकी तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के साथ मतभेद रहा था।
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डी सुब्बाराव
वर्ष- 2008-2013
डी सुबाराव के केंद्र सरकार के साथ रिश्ते कभी भी सामान्य नहीं रहे। उन्होंने कई मुद्दों को लेकर सरकार से अपना विरोध दर्ज कराया। उनकी सरकार के साथ पहला टकराव FSDC बनाने को लेकर हुई थी। साथ ही इंटरेस्ट रेट को लेकर वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के साथ साथ मतभेद रहा।
रघुराम राजन
वर्ष-2013-2016
रघुराम राजन का ब्याज दरों में कटौती समेत कई मुद्दों पर सरकार के साथ मतभेद रहा। वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से ब्याज दरों मे कटौती को लेकर दबाव बनाया गया।
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