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Jun 17,2019 12:29:00 PM ISTनई दिल्ली। रियल एस्टेट कंपनियों के शीर्ष संगठन रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) ने बजट से पहले अपनी मांगें सरकार के सामने रखी हैं। क्रेडाई ने सरकार को सुझाव दिया है कि किफायती घरों के लिए जमीन खरीदने के लिए बैंकों को डवलपर्स को धन मुहैया कराना चाहिए। साथ ही क्रेडाई ने सभी कानूनों में किफायती घर की परिभाषा समान रखने की मांग की है।
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प्रोजेक्ट में जमीन की हिस्सेदारी 40 फीसदी
क्रेडाई की ओर से सरकार को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि किसी भी हाउसिंग प्रोजेक्ट की कुल लागत में 40 फीसदी हिस्सेदारी जमीन की होती है। रेरा आने के बाद रियल एस्टेट कंपनियों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं। अब कोई भी डवलपर सभी मंजूरियां लेने से पहले आवासों की बिक्री नहीं कर सकता है। इस कारण डवलपर्स को अन्य स्रोतों से धन का इंतजाम करना पड़ता है। क्रेडाई का कहना है कि अभी तक डवलपर्स एनबीएफसी या निजी इक्विटी से धन का इंतजाम करते हैं। इसकी लागत 25 फीसदी अधिक होती है। क्रेडाई ने इस खाई को पाटने के लिए बैंकों से मदद करने की मांग की है। क्रेडाई का कहना है कि रिजर्व बैंक से 2008 तक वाणिज्यिक बैंक की ओर से जमीन के वित्त पोषण की मंजूरी थी। अब एसोसिएशन ने किफायती आवास बनाने के लिए इस नीति को दोबारा से लागू करने की मांग की है।
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अलग-अलग है किफायती आवास की परिभाषा
क्रेडाई के अनुसार, अभी आयकर एक्ट की धारा 180 आईबीए, जीएसटी एक्ट, 14 नवंबर 2017 के डीईए नोटिफिकेशन, हाउसिंग और अर्बन मामलों के मंत्रालय की सीएलएसएस और आरबीआई के अनुसार, किफायती घरों की परिभाषा अलग-अलग है। क्रेडाई ने सुझाव दिया है कि क्रेडिट लिंक सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) में दी गई किफायती घरों की परिभाषा को सभी सरकारी एजेंसियों के लिए समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। सीएलएसएस के तहत चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई में 60 वर्ग मीटर वाले घरों को किफायती घर माना गया है। अन्य शहरों के लिए यह सीमा 120 वर्गमीटर है। साथ ही क्रेडाई ने होम लोन पर मूलधन और ब्याज के भुगतान के लिए आयकर छूट को बढ़ाने की मांग की है।