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डाउनलोड करेंवाराणसी में काशी उत्सव का दूसरा दिन साहित्य, संगीत और संस्कृति के नाम रहा। बिहार की लोक गायिका मैथिली ठाकुर अपनी टीम के साथ सूफी, भजन और छठ के गीत गाकर दर्शकों को भक्ति भाव से भर दिया। डिमिक-डिमिक डमरु कर बाजे, दमादम मस्त कलंदर, पिया रे, अरे अंगना तुलसी के गछिया भूईयवे लोटे हो डाढ़, जुग-जुग जिया हो ललनवा, आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया, चारो दुलहा में बड़का कमाल सखिया आदि गानों पर काशी वासी झूम उठे। इस दौरान हॉल पूरी तरह खचाखच भरा रहा।
कबीर-रैदास के काल में आ गए भगवान के मीडिएटर
साहित्यिक सम्मेलन के दौरान ‘लोकराग एवं लोकरंग के उद्घोषक कबीर और रैदास’ विषय पर कांफ्रेंस आयोजित हुआ। इसमें बीएचयू के हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि संत कबीर और संत रैदास के भीतर एक पूरा लोक है और उस लोक के भीतर ये दोनों विभूतियां हैं। इनका अद्भुत मेल है। प्रो. शाही ने कहा कि कबीर-रैदास का काल ऐसा था जब भगवान और भक्त के बीच तमाम मीडिएटर आ गए थे। अपनी आवश्यकता के अनुसार भगवान की परिभाषा दी जाने लगी। रैदास जिस बेगमपुरा को बसाना चाहते हैं कबीर अपना घर जला कर उसी बेगमपुरा की नींव रखने की बात करते थे।
तार है तुलसी के राम और उसकी बिजली कबीर के राम
कबीर गायक पद्मश्री भारती बंधु ने कहा कि एक दिन बालिका ने उनसे पूछा, कबीर और तुलसी के राम में क्या फर्क है। भारती बंधु बोले कि तत्काल कोई उत्तर नहीं सूझा। तभी सामने एक बिजली का तार देखा। मैंने लड़की से पूछा वह क्या है। उसने बताया तार।उसके अंदर क्या है। उसने कहा बिजली। फिर मैं बोला बिजली का तार तुलसी के राम हैं, जो कि साक्षात हैं। वहीं उस तार के अंदर की एनर्जी कबीर के राम हैं। सत्र के अंत में हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष डाॅ. यूपी. सिंह ने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा कथन बाबा गोरखनाथ की है। वह रैदास से 400 साल पहले ही धरती पर आए थे। कबीर और रैदास रामानंदाचार्य से संस्कृत और हिंदी की शिक्षा लेते थे।
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