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डाउनलोड करेंमहंगाई के दौर में उनके सामने अपने बच्चों का पेट भरने की ऐसी मजबूरी थी कि उन्होंने 1500 रुपए में रसोईया का काम स्वीकार किया। लेकिन बीते 10 माह से उन्हें पगार ही नहीं मिली है। इस हालात में वह बदहाली से गुजर रही हैं। भले ही वो नियमित विद्यालय आकर दूसरे सैकड़ों बच्चों के लिए खाना पकाती हैं, लेकिन उनके अपने बच्चे भूखे हैं।
बीते 10 माह से नहीं मिला वेतन
दरअसल, महोली क्षेत्र के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों के लिए मिड-डे-मील पकाने वाली रसोइयों को बीते 10 माह से वेतन नहीं मिला है। वेतन न मिलने से उनके सामने आर्थिक संकट गहरा गया है। तमाम शिकायतों के बावजूद भी जिम्मेदार मौन हैं।
'दैनिक भास्कर' ने जब रसोईयों से बात की तो उनका 'सिस्टम की संवेदनहीनता' का दर्द छलक उठा। रसोईया सोहन लाल ने बताया कि उन्हें बीते 10 माह से वेतन नहीं मिला है। परिवार का पेट पालना मुश्किल है। पहले पंद्रह सौ प्रतिमाह मिलते थे। फिर आदेश हुआ कि अब दो हजार रुपए मिलेंगे। कब से मिलेंगे यह भी अभी तय नहीं हुआ। दो हजार रुपए मिलना तो दूर जो 1500 सौ रुपए मिलते थे, वह भी नहीं मिले। धीरे-धीरे 10 माह बीत गए।
आर्थिक तंगी और बेबसी की कहानी बयां की
मंजू देवी, निर्मला, कृष्णा देवी, गोमती देवी, सावित्री देवी के चेहरे की उदासी उनकी आर्थिक तंगी और बेबसी की कहानी बयां कर रही थी। इन्होंने बताया कि हम लोग अपने घरेलू काम छोड़कर स्कूल जाते हैं और नियमित खाना बनाते हैं। जब हमारा मानदेय नहीं मिलेगा, तो हमारा घर कैसे चलेगा। 10 माह बीत गए। पहले हम बीआरसी पर गए तो वहां से टरका दिया गया। फिर हम लोग बीएसए के यहां पहुंचे तब भी सुनवाई नहीं हुई।
166 विद्यालयों में 390 रसोईयां
महोली में 114 प्राथमिक विद्यालय, 23 उच्च प्राथमिक विद्यालय और 29 कम्पोजिट विद्यालय हैं। इस सभी विद्यालयों में कुल 390 रसोईया कार्यरत हैं। खंड शिक्षा अधिकारी प्रभाष कुंवर श्रीवास्तव ने बताया कि जिले से ही ग्रांट जारी नहीं हुई है। बैंकों के बदलाव सहित कई मामलों के चलते रसोईयों के मानदेय का भुगतान नहीं हो पा रहा है।
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