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डाउनलोड करेंआवश्यकता ही आविष्कार की जननी है...इस कहावत को सच कर दिखया है मिर्जापुर के राजबली मौर्य ने। वह पेशे से मजदूर हैं। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। दूसरे नंबर का बेटा आर्यन (18) दिव्यांग है। राजबली मौर्य ने बताया कि वह दूसरों बच्चों को साइकिल चलाकर देखने पर अक्सर उससे साइकिल की जिद करता था। आर्यन शारीरिक रूप से असमर्थ है, ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
इसी बीच करीब छह महीने पहले उसे आइडिया सूझा। उसने दुकान से साइकिल का रिम, टायर, फ्रेम आदि खरीदा। इसके लिए उसे करीब 5 हजार खर्च करने पड़े। छह महीने की मेहनत के बाद उसने बिना गद्दी, पैडल और ब्रेक एक ट्राइ साइकिल बना दी।
बेटे को खुश देखकर परिवार को मिलती खुशी
राजबली ने जब यह साइकिल अपने बेटे आर्यन को दी तो वह खुशी से झूम उठा। जुगाड़ वाली साइकिल अब वह मोहल्ले में ही इधर-उधर साइकिल घुमाता है। जिसे देखकर पिता समेत पूरे परिवार को खुशी मिलती है।
देहात कोतवाली क्षेत्र के हनुमान पड़रा में राजबली का घर है। मजदूर होने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसका कहना है कि सरकार उसे बच्चे की मदद करे। बस उसे इतना ही चाहिए। उधर, जिला दिव्यांग जन कल्याण अधिकारी राजेश कुमार सोनकर ने दिव्यांग आर्यन के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।
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