On The First Day Of Shardiya Navratri, A Dip Of Faith At The Meeting Place Of Vindhya Mountain And Mother Ganga
शारदीय नवरात्र का पहला दिन...मां विंध्यवासिनी के दर्शन:मिर्जापुर में हर दिन चार स्वरूपों में दर्शन देती हैं मां, विंध्य पर्वत और मां गंगा के मिलन स्थल पर लगा आस्था का मेला
मिर्जापुर2 वर्ष पहले
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आज से शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया। 9 दिन दैनिक भास्कर आपके साथ मां दुर्गा के 9 मंदिरों की कहानी साझा करेगा। पहले दिन मिर्जापुर स्थित मां विंध्यवासिनी के दरबार चलते हैं।यहां सुबह से आस्था का संगम देखने को मिल रहा है। विंध्य पर्वत और मां गंगा के मिलन स्थल पर बने इस धाम में मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु आने शुरू हो गए हैं। सुबह की मंगला आरती के साथ नवरात्र मेले की भी शुरुआत हो गई है। श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है। दरअसल, कोरोनाकाल में नवरात्र में दर्शन पूजन प्रतिबंधित होने के बाद पहली बार शारदीय नवरात्र में भक्त मां के दिव्य धाम का दर्शन कर पा रहे हैं।
चारों आरतियों में बदलता है मां का स्वरूप
माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रत्येक दिन चार रूपों में दर्शन देती हैं। जीवन के चारों पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के चार (अवस्था) रूपों में चार आरती होती हैं। प्रत्येक अवस्था में मां का स्वरूप बदल जाता है।
मां के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़।
कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र एवं जिलाधिकारी प्रवीण लक्षकार ने कोविड-19 गाइडलाइंस के तहत सभी के लिए मेला क्षेत्र में मास्क, सैनेटाइजर व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की हिदायत दी है। इसके साथ ही, बिना मास्क के मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं दिए जाने के निर्देश दिए हैं।
माता रानी के दरबार में जाने के लिए चारों तरफ से सीढ़ियां बनी हैं।
पश्चिम दिशा में स्थित गणेश द्वार से प्रवेश करने वाले भक्त मां की अद्भुत छवि का दर्शन पूजन कर दक्षिण द्वार से निकल आते हैं, जबकि पूर्व में स्थित द्वार से प्रवेश करने से भक्त मां के दर्शन कर दूसरे पूर्वी द्वार से बाहर निकलते हैं।
किसी वीआईपी के आगमन पर उन्हें आम भक्तों को रोककर गणेश द्वार से गर्भ गृह में प्रवेश कराया जाता है।
नवरात्र में लाखों की संख्या में प्रतिदिन आने वाले भक्तों की सुविधा के लिए सभी प्रकार के वाहनों को क़रीब आधा किलोमीटर दूर ही रोक दिया जाता है। वहां से दर्शनार्थी पैदल ही माता के धाम में पहुंचते हैं।
नवरात्र में सिद्धपीठ विंध्याचल में तन्त्र, मंत्र के साधक नवरात्रि पर्व पर दिन रात रुककर आदिशक्ति की साधना करते हैं।
माता रानी के दरबार में देश के कोने कोने से भक्त अपनी मन्नत लेकर आते हैं और मां के दरबार से उन्हें निराश नहीं होना पड़ता ।
अत्यधिक भीड़ के बीच स्थानीय भक्त माता विंध्यवासिनी के ठीक सामने स्थित झांकी से ही मां का दर्शन कर प्रार्थना कर विभोर हो जाते हैं।
प्रति दिन माता विंध्यवासिनी की होने वाली चार आरती में मंदिर के सभी पट बंद होने से भक्तों का प्रवेश गर्भ गृह में वर्जित रहता है। इस दौरान आरती का दर्शन इसी झांकी से मिलता है।
माता विंध्यवासिनी।
मां अष्टभुजा।
मां महाकाली।
मंदिर में आरती के समय पट रहेगा बंद
श्रद्धालु आरती समय काल में मंदिर में दर्शन नहीं कर सकेंगे। इस समय मां की आरती व श्रृंगार होने के कारण मंदिर का कपाट बंद रहता है।
आरती का समय
सुबह 3 बजे से 4 बजे तक मंगला आरती
दोपहर 12 बजे से 01 बजे तक राजश्री आरती
शाम 7 बजे से 8 बजे तक दीपदान आरती
रात्रि 9: 30 बजे से 10:30 बजे तक बड़ी आरती
नवरात्रि के मौके पर मंदिर को सजाया गया।
हर कोण से पताका दर्शन
माता विंध्यवासिनी के दरबार में अब तक पताका दर्शन से वंचित भक्तों को इस बार धाम के नीचे से किसी भी कोण पर खड़े होने पर पताका दर्शन मिलेगा।
बदल गया है धाम का रास्ता
माता विंध्यवासिनी के धाम में आने वाले आठ रास्तों में से चार का नजारा बदल गया है। चार छह फीट की गलियों की जगह अब क़रीब 35 फीट चौड़ा रास्ता मिलेगा। मंदिर के पास विंध्य कॉरिडोर के तहत अब 50 फीट चौड़ा घेरा नजर आएगा। पहली बार माता के धाम से ही पतित पावनी मां गंगा का दर्शन भक्त कर पाएंगे।
कोरोना के समय बंद रहा धाम
कोरोना के पहले चरण में 100 दिन तो दूसरी लहर में 51 दिन माता के धाम में दर्शन पूजन पर रोक लगा दिया गया था। उस दौरान मां का चारों समय आरती पूजन श्रृंगारिया कर रहे थे। आम ही नहीं खास लोगों के लिए भी मन्दिर बंद था।
चारों आरतियों में आखिर क्यों बदलता है मां का स्वरूप
माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रत्येक दिन चार रूपों में दर्शन देती हैं। जीवन के चारों पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के चार (अवस्था) रूपों में चार आरती होती हैं। प्रत्येक अवस्था में मां का स्वरूप बदल जाता है।
मंगला आरती
प्रात: काल आदिशक्ति की बाल्यावस्था का श्रृंगार और आरती की जाती है। प्रात: काल की जाने वाली मंगला आरती के बारे में कहा जाता है कि "जो करे मंगला - कभी न रहे कंगला"। यह जीवन के चार पुरुषार्थ में धर्म माना गया है। जीवन के चारों पुरुषार्थ सन्देश देने के लिए मां का स्वरूप बदलता रहता है।
दूसरी आरती दोपहर में युवावस्था की है जिसके दर्शन करने से धन धान्य मिलता है। इसमें मां का स्वरूप युवावस्था का होता है। यह अवस्था अर्थ को प्रदान करने वाली है।
तीसरी आरती सायंकाल प्रौढ़ावस्था की है। मां का दिव्य फूल और आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है। इस स्वरूप का दर्शन करने से वंश वृद्धि और सदमार्ग पर चलने का आशीर्वाद मिलता है।
चौथी आरती रात में वृद्धावस्था की है जिसके दर्शन से सहजता से लक्ष्य की प्राप्ति होती है। चार आरती चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं।
प्रधान श्रृंगारिया पण्डित शिवजी मिश्र ने बताया कि भक्तों का कल्याण करने वाली माता विंध्यवासिनी विभिन्न अवस्था में दर्शन देकर अपने भक्तों की सारी मनोकामना अवश्य पूरी करती है। मां विंध्यवासिनी की आरती के मात्र दर्शन कर लेने से हज़ारों अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
इस बार भक्तों को कोई असुविधा न हो और वह प्रसाद के नाम पर न लूटे जाएं इसके लिए प्रसाद का जिला प्रशासन ने रेट तय किया है। जिसका वितरण मेला क्षेत्र में किया गया।
विंध्य कॉरिडोर निर्माण के बाद मंदिर इस स्वरूप में होगा। नगर विधायक पंडित रत्नाकर मिश्र ने बताया कि विंध्य कॉरिडोर के लिए 330 करोड़ स्वीकृत किया गया है। इसके अलावा इसके सौंदर्यीकरण और मार्गों के विस्तार को देखते हुए इसकी लागत 500 करोड़ तक हो सकती है। कॉरिडोर के शिलान्यास के मौक़े पर पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी ने कहा था कि विंध्य क्षेत्र को विश्व के नक्शे लाने के लिए तमाम कार्य किया जाएगा। इसमें धन की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। पर्याप्त बजट है।
मां विन्ध्यवासिनी की महत्ता
हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में ही आदिशक्ति विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव धाम काशी में प्रवेश करती है।
हजारों मील लम्बे विंध्य पर्वत एवं गंगा नदी का मिलन माता के धाम विंध्याचल में ही होता है। धाम से आगे जाकर गंगा उत्तर वाहिनी जाती है जबकि विंध्य पर्वत दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाता है।
अनादिकाल से सिद्धपीठ विन्ध्याचल धाम ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है। माता के धाम में त्रिकोण पथ पर संत देवरहा बाबा, नीम करौरी बाबा, गीता स्वामी, माता आनंदमयी, बाबा नरसिंह, अवधूत भगवान राम, पगला बाबा, बंगाली माता आदि अनेक सिद्ध साधकों की तपस्थली है। इनके आश्रम में आज भी भक्तों का तांता लगा रहता है।
माता विंध्यवासिनी विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते हैं तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली के दर्शन मिलते हैं।
पर्वत पर निवास करने वाली माता अष्टभुजा ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तों को दर्शन देती है।
माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचे भक्त माला-फूल, नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते हैं।
ऐसे पहुंचे मां के धाम
विंध्य पर्वत पर स्थित माता विंध्यवासिनी का धाम धर्म नगरी काशी और तीर्थराज प्रयागराज के बीच दिल्ली से कोलकाता रेल मार्ग के बीच में है।
धाम से नजदीकी रेलवे स्टेशन विंध्याचल महज तीन सौ मीटर की दूरी पर है, जबकि नजदीकी हवाई अड्डा बाबतपुर एयरपोर्ट वाराणसी महज 65 किलोमीटर दूर है।
बस स्टेशन विंध्याचल करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर है।
विंध्याचल धाम में ठहरने के लिए कई धर्मशाला, अतिथि भवन और होटल हैं। इसके अलावा तीर्थ पुरोहितों के आवास पर भी भक्त नवरात्रि के दौरान ठहरते हैं।