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डाउनलोड करें26 सितंबर से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो रहे हैं। मेरठ के सबसे प्राचीन दुर्गा पंडाल में इस साल शिरडी साईंधाम की तरह प्रसाद वितरण किया जाएगा। 215 सालों में पहली बार मेरठ के सदर दुर्गाबाड़ी में सजने वाले दुर्गापंडाल में भक्तों को ट्रॉली से प्रसाद बांटा जाएगा। बंगाली समाज द्वारा 1807 में स्थापित यह दुर्गा पंडाल शहर का सबसे प्राचीन दुर्गा पूजन स्थल है।
आइए दैनिक भास्कर में पढ़िए सदर दुर्गाबाड़ी में इस बार कैसा होगा नवरात्र उत्सव...
1807 में स्थापित हुआ था दुर्गा पंडाल
दुर्गा पूजो समिति के कार्यकारिणी सदस्य अजय मुखर्जी ने बताया कि यहां 26 सितंबर को घट स्थापना होगी। कहते हैं 1807 में इस पंडाल में दुर्गापूजन प्रारंभ हुआ था। दुर्गाबाड़ी का देवी पूजन सबसे पुराना है। यहां पर देवी की मूर्ति लगभग तैयार है। 26 सितंबर को घट स्थापना होगी। यहां पर आयोजन कमेटी का विधिवत गठन 96 वर्ष पहले हो गया था। इस बार अध्यक्ष महिला पापिया सान्याल पर आयोजन की जिम्मेदारी है। पंचमी को प्राण प्रतिष्ठा से विधिवत पूजन आरंभ होगा। यहां पर देवी के श्रृंगार और पूजन की सामग्री भी कोलकाता से मंगाई जाती है। पुरोहित भी पश्चिम बंगाल से आते हैं। प्रधान सचिव अभय मुखर्जी और पूजा सचिव सत्यजीत मुखर्जी हैं।
इस बार मां का गज पर आगमन, नौका पर प्रस्थान
योग के अनुसार इस बार नवरात्रि में माता का आगमन गज पर होगा, प्रस्थान नौका पर है। कोरोना के बाद लगभग 2 सालों बाद बड़े स्तर पर दोबारा दुर्गा उत्सव समारोह मनाया जा रहा है। उत्सव के दौरान सांस्कृतिक आयोजन, मां की झांकी सज्जा, नृत्य, गायन, वादन, नाटक मंचन होगा। साथ ही महिलाओं, बच्चों की लिए खेल और प्रतियोगिताएं होती हैं।
पहले जानें कैसे बनती है मां की विशेष मूर्ति
बंगाली दुर्गाबाड़ी में मां की मूर्ति निर्माण जन्माष्टमी से प्रारंभ हो जाता है। हर साल कोलकाता से विशेष रूप से मूर्तिकार, पेंटर बुलाकर दुर्गा मूर्ति तैयार कराई जाती है। मूर्ति को मिट्टी, रेत, फूस, कागज से मिलाकर बनाया जाता है। बाद में इस मूर्ति को रंगों से सजाते हैं। अंत में वस्त्राभूषण, केश, नयन सज्जा की जाती है। उत्सव के दौरान भक्त जो सामग्री, श्रृंगार मां को अर्पण करते हैं उसे भक्तों में वितरित कर दिया जाता है। बंगाली बाड़ी में मां की जो मूर्ति स्थापित होती है उसमें मां दुर्गा का पूरा परिवार साथ होता है।
मां मायके आई हैं... स्वागत में करते धुनूची नृत्य
षष्ठी पर मुख्यत: हम मां का पूजन प्रारंभ करते हैं। दशहरे तक विधिवत पूजन, प्रसाद वितरण होता है। कहते हैं नवरात्र में मां मायके आती हैं और दशहरे पर ससुराल लौटती हैं। दशहरे पर भव्य विसर्जन समारोह करते हैं। इसमें बैंड-बाजों, नाच-गाने के साथ मूर्ति को नानू की नहर में अर्पण करते हैं। मां को बुलाते हैं कि अगले साल जल्दी मायके आएं। इस दौरान बंगाली महिलाएं सिंदूरखेला और सिंदूरदान करती हैं। हमारे बंगाली में मानते हैं कि सिंदूरदान से पति की उम्र बढ़ती है। इसलिए ये रस्म निभाते हैं। इस पूरे आयोजन में धुनूची डांस भी होता है। इसमें धुनों पर एक प्रकार की सुगंध डालकर मां की पूजा होती है। मां के आगमन में वातावरण को शुद्ध करके महकाने का रिवाज यह धुनूची नृत्य है। महिलाएं, पुरुष, युवा सब इसे करते हैं।
निर्जल व्रत रखकर बनाते हैं प्रसाद
पूजो समिति के सदस्यों के अनुसार इस साल शिरडी साईधाम में ट्राली से प्रसाद बंटता है उसी तरह हम यहां प्रसाद वितरण व्यवस्था रखेंगे। ताकि हर भक्त को मां का आशीर्वाद मिले। जो प्रसाद-भंडारा बनता है उसे हमारी समिति के सदस्य देसी घी में तैयार करते हैं। प्रसाद की विशेषता है कि जो लोग प्रसाद बनाते हैं वो दिनभर निर्जल व्रत रखते हैं। पानी पीने वाला व्यक्ति प्रसाद निर्माण नहीं कर सकता। प्रसाद में खिचड़ी, पंचभाजा, सब्जी, खीर बनाकर वितरित होता है।
जानिए मेरठ में कहां-कहां सजेंगे दुर्गा पंडाल
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