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डाउनलोड करेंखाप पंचायतों के तुगलकी फरमान और ऑनर किलिंग के लिए चर्चा में रहने वाले पश्चिमी यूपी में अब बेटियों को लेकर सोच बदलने लगी है। यहां अब गांवों में घरों की पहचान बेटियों के नाम से हो रही है। मेरठ जिले के दौराला, मटौर गांवों में अब बेटियों के नाम की तख्ती घरों के बाहर लटकाई जा रही है। इस बदली सोच का स्वागत बेटियों के साथ खुद मां-बाप कर रहे हैं। इसके पीछे दौराला स्थित मल्हू सिंह कन्या इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. नीरा तोमर की सोच है। जो उन्हें अलग बनाती है।
डॉ.नीरा तोमर कहती हैं मैं एक ग्रामीण इलाके में लड़कियों के इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल हूं। मेरी अपनी पृष्ठभूमि ग्रामीण है। बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव और पिछड़ी सोच को मैंने खुद देखा है। बचपन में झेला भी है। बदलाव लाने में समय तो लगेगा, मगर शुरुआत हो चुकी है। मेरे स्कूल में 1200 लड़कियां पढ़ती हैं। मैंने ठान लिया है कि सबके घर पर उनके नाम की प्लेट लगवाऊंगी। अभी 700 प्लेट लगवा चुकी हैं, बाकी काम चालू है। लड़कियों को फ्री तख्ती देती हूं।
सबसे पहले लड़की, फिर समाज को मनाया
बेटियों के लिए सोच बदलने के इस इनिशिएटिव को नीरा ने लिया, मगर किसी के घर पर उसका नाम बदलना आसान नहीं था। वे कहती हैं कि पहली लड़ाई इन लड़कियों की सोच से थी, जो अपने लिए सोचने की हिम्मत नहीं करती। छात्राओं को जागरूक किया। पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में और इनके घरों पर जाकर इनके मम्मी-पापा को मनाया। उन्हें बताया कि लड़की को पढ़ना, आगे बढ़ना जरूरी है। बेटे के बराबर लड़की भी है।
लड़की के मां-बाप तैयार हुए, मगर समाज के डर के कारण कोई खुलकर सामने नहीं आया। इसलिए गांव के मुखिया और पंचों को समझाना जरूरी था। गांव के लोगों ने यह बात समझी और हमारा काम शुरू हो गया। पहले हम खुद जाकर नाम वाली तख्ती टांगते थे, अब मां-बाप खुद नेम प्लेट लगाते हैं और मिठाई देकर हमें बधाई देने आते हैं। पितृ सत्तात्मक समाज की रूढ़िवादी परंपराएं खुद आदमी बदल रहे हैं। यह देखकर अच्छा लगता है।
एक से शुरू हुआ कारवां, अब 20 गांवों से ऑर्डर
मटौर के सरकारी स्कूल की छात्राओं के घर पर उनके नाम की तख्ती लटकती देखकर अब दूसरे गांवों, स्कूलों के लोग भी इस बदलाव को अपनाना चाहते हैं। नीरा 12 रुपए में एक नेम प्लेट तैयार कराती हैं, लेकिन कारीगर उन्हें 10 रुपए में एक तख्ती दे रहा है। स्कूल में लड़कियों को तख्ती दी जाती है जो घर जाकर पिता, भाई से लगवा लेती हैं।
नीरा कहती हैं आज मेरे पास 3000 लड़कियों के नाम आ चुके हैं, जिनके परिजन बेटी के नाम की तख्ती लगवाना चाहते हैं। मिशन शक्ति अभियान से जोड़कर इस पहल को आगे बढ़ा रहे हैं।
अच्छा लगता है बेटी का नाम देखकर
8वीं कक्षा में पढ़ने वाली पिंकी की मां सुनीता कहती हैं कि अच्छा लगता है जब बेटी का नाम घर के बाहर लिखा देखती हूं। ऐसा लगता है कि समाज में औरतों की भी इज्जत है। औरतें भी इंसान हैं, वरना बचपन से आज तक मायका हो या ससुराल हम महिलाओं को डांट ही मिली है।
बेटी के पिता रमेश कहते हैं कि समाज ने हमेशा बेटियों को कम आंका है, वक्त बदल रहा है तो सोच भी बदलनी होगी। बेटी का नाम घर के बाहर देखकर गर्व महसूस होता है। बेटी को खूब पढ़ाऊंगा। 9वीं की छात्रा रेशमा कहती हैं कि हमारे गांव में लड़कियों को शहर जाकर पढ़ने को नहीं मिलता। बहुत कम लड़कियां बाहर निकलती हैं। बस मैडम के स्कूल में पढ़ लेते हैं। गांव में हमेशा भाई, दादा के नाम लिखे देखे, पहली बार अपना नाम लिखा देखकर अच्छा लगता है।
बेटियों को पढ़ाई का अच्छा माहौल मिले
सीडीओ शशांक चौधरी कहते हैं कि दोराला के मल्हू सिंह इंटर कॉलेज की छात्राओं के जरिए गांव में बेटियों के नाम की नेम प्लेट घरों पर लगना शुरू हुई है। इस अभियान को मिशन शक्ति से जोड़ते हुए आगे बढ़ाया है। दूसरे गांवों में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है। बेटियों को पढ़ाई का अच्छा माहौल मिले, वो आगे बढ़ें इसलिए यह शुरुआत की है।
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