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डाउनलोड करेंबुंदेलखंड...यह शब्द सामने आते ही दिमाग में सूखा, गरीब और पलायन की तस्वीरें घूमने लगती हैं। अब इसी बुंदेलखंड पर सियासी कब्जे को लेकर रस्साकशी शुरू हो चुकी है। आज PM नरेंद्र मोदी महोबा में करीब 2594 करोड़ की लागत से 12 साल में बने अर्जुन डैम का लोकार्पण करेंगे तो झांसी में डिफेंस कॉरिडोर की शुरुआत करेंगे। साथ ही वह रानी लक्ष्मीबाई का जयंती पर्व भी मनाएंगे।
राजनीतिक जानकार इसे सियासी नजरिए से देख रहे हैं। दरअसल, ऐसा नहीं है कि सियासतदां पहली बार बुंदेलखंड पर सियासत कर रहे हैं। इससे पहले भी बड़े-बड़े पैकेज बुंदेलखंड के नाम पर जारी होते रहे हैं, लेकिन उसका असर बुंदेलखंड में दिखा नहीं। न ही पानी मिला और न ही रोजगार मिला। भाजपा बुंदेलखंड को ध्यान में रखकर पानी, रोजगार और राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार देगी।
आइए जानते हैं PM मोदी बुंदेलखंड क्यों आ रहे हैं?
बुंदेलखंड में पानी से जुड़े 2 किस्से
2009: इस साल लोकसभा चुनाव होने थे। केंद्र की मनमोहन सरकार ने 7,466 करोड़ रुपए बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर जारी किए। इन पैसों से बुंदेलखंड में कुआं, चेकडैम, बांध, नहर बनाना था। हालांकि, कांग्रेस को 2009 लोकसभा चुनाव में बुंदेलखंड में सिर्फ 1 सीट ही मिली। जबकि, 2 पर सपा और 1 पर बसपा ने कब्जा जमाया था। 2012 विधानसभा चुनावों में भी विपक्षी दलों ने इस पैकेज पर केंद्र सरकार को खूब घेरा था।
2016: यहां पानी पर सियासत बरसों पुरानी है। हालांकि, इसके बावजूद बुंदेलखंड का सूखा खत्म नहीं हुआ। गौरतलब है कि 2017 विधानसभा चुनावों से पहले 2016 में पानी पर सियासत इतनी तेज हुई कि भाजपा की केंद्र सरकार ने वाटर ट्रेन ही भिजवा दी। हालांकि, UP की तत्कालीन सरकार ने उसे महोबा पहुंचने ही नहीं दिया और यह कहकर लौटा दिया कि बुंदेलखंड में पानी की कमी नहीं है।
सियासी मायने
बुंदेलखंड से पलायन के 2 किस्से
2010: एक आंकड़े के मुताबिक, 2005 से 2010 के बीच बुंदेलखंड में 500 किसानों ने आत्महत्या की। यह वह समय था जब देश में मनरेगा के तहत 100 दिन का काम मजदूरों को दिया जा रहा था, लेकिन यह योजना और बुंदेलखंड पैकेज किसानों के काम न आया।
2020: कोरोना के चलते पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था, लेकिन सड़कों पर गरीब-मजलूम भूखे प्यासे मजदूर अपने परिवारों के साथ पैदल चलते दिखाई पड़ रहे थे। बुंदेलखंड लौटने वाले तकरीबन 20 फीसदी मजदूर थे। उन्हें आस थी कि घर पहुंच कर कोई न कोई काम मिल ही जाएगा। हालांकि, उनकी आस पूरी न हुई। बहुत से लोगों को मनरेगा में काम ही नहीं मिला।
सियासी मायने
प्रतीकों की राजनीति के 2 किस्से
2017: UP में भाजपा की बहुमत की सरकार बनते ही उसका फोकस अयोध्या पर बढ़ गया। सरकार ने वहां दीपोत्सव कार्यक्रम शुरू कर दिया। मां सीता, भगवान राम और लक्ष्मण के रुप में कलाकार हेलीकाप्टर से उतरने लगे। कहीं न कहीं प्रतीकों के सहारे भाजपा ने लोगों को उनकी आस्था से जोड़ा।
2021: झांसी में रानी लक्ष्मीबाई का किला जगमग जगमग कर रहा है। भाजपा बड़े स्तर पर रानी लक्ष्मी बाई की जयंती झांसी में मना रही है। PM मोदी भी रानी लक्ष्मीबाई के किले को देखने जाएंगे। वहां लेजर शो के जरिए वीरांगना की शौर्यगाथा को दिखाया जाएगा। PM नरेंद्र मोदी ऐसे पहले PM होंगे जो रानीलक्ष्मी बाई के किले में जाएंगे।
सियासी मायने
बुंदेलखंड में मजबूत है भाजपा, फिर क्यों रस्साकशी ?
रतनमणि लाल कहते हैं कि भाजपा का फोकस उन सभी विधानसभा सीटों पर है। जहां वह मजबूत स्थिति में है। दरअसल, इसके पीछे कारण हैं कि बीते 5 साल में जो महंगाई जैसे मुद्दों से जनता में जो गुस्सा है। उन तक पहुंच कर उसे खत्म किया जा सके। आप देखें भाजपा ने 2017 में पूरे बुंदेलखंड की सीटें जीती थीं। उसके बावजूद CM और PM वहां पहुंच रहे हैं। यही हाल पूर्वांचल का भी है। भाजपा की रणनीति है कि चुनाव तक विपक्ष को सुर्खियों से गायब रखें। हाल फिलहाल की स्थिति देख कर यही कहा जा सकता है कि भाजपा इसमें सफल है।
10 साल पहले बुंदेलखंड में भाजपा का नहीं खुला था खाता
बुंदेलखंड के 7 जिलों की 19 सीटों पर भाजपा अभी काबिज है। जबकि, 10 साल पहले भाजपा का बुंदेलखंड में खाता तक नहीं खुला था। 2007 में बुंदेलखंड के 7 जिलों में 21 विधानसभा सीटें थी।
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