पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंभाजपा ने अपनी पहली ही सूची के साथ यह घोषणा कर चौंका दिया है कि सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर से चुनाव लड़ेंगे। चौंकने की वजह ये कि अब तक यह लगभग तय माना जा रहा था कि वे अयोध्या से चुनावी रण में उतरेंगे। सूत्रों की मानें तो पार्टी हाईकमान की भी मंशा यही थी। योगी जैसा कट्टर हिंदुत्व का चेहरा अयोध्या से उतरता तो पूरे प्रदेश में वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद ज्यादा थी।
मगर खुद योगी अपने गढ़ गोरखपुर से उतरकर पहले अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे। दरअसल, अयोध्या ऐसी सीट है, जहां 93.23% आबादी हिंदू होने के बावजूद भाजपा की जीत तय नहीं रही है। 2012 में यह सीट सपा ने जीती थी, 2017 में मोदी-योगी लहर में भाजपा के हाथ आई। इस बार समीकरण क्या बनेंगे, अभी यह तय नहीं है।
वोट शेयर के गणित से समझिए, क्यों योगी के लिए असुरक्षित है अयोध्या...
2012 में सपा, भाजपा और बसपा के अलावा बाकी दलों को भी मिले थे करीब 28% वोट
2012 के चुनाव में सपा के पवन पांडे जीते थे। भाजपा के लल्लू सिंह और बसपा के टिकट पर लड़े वेदप्रकाश गुप्ता तीसरे स्थान पर थे। बाकी पार्टियों और निर्दलीयों का वोट शेयर भी ठीक-ठाक था।
2017 की मोदी-योगी लहर में सपा-बसपा को नुकसान कम, बाकी दलों का सूपड़ा साफ
2017 के चुनाव का वोट शेयर बताता है कि सपा का वोट बैंक ज्यादा नहीं खिसका। बसपा का वोट शेयर थोड़ा बढ़ा। लेकिन मोदी-योगी लहर में बाकी सभी पार्टियों और निर्दलीयों का सूपड़ा साफ हो गया। सिर्फ 5.92% वोट मिले। यानी 2012 के मुकाबले 22% वोट घटे जो सीधे भाजपा को गए।
इस बार सपा का दबदबा ज्यादा, बिगड़ सकते थे समीकरण
अयोध्या में योगी के लिए शुरू हो चुका था जनसंपर्क
अयोध्या सदर विधानसभा से योगी के चुनाव लड़ने के कयासों के बीच भाजपा कार्यकर्ता के साथ ही संत, साधु और मंदिर से जुड़े लोगों ने जनसंपर्क शुरू कर दिया था। 8 से 12 लोगों की टीम बना करके घर-घर संपर्क किया जा रहा था। साधु-संत मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से जहां योगी के पक्ष में वोट डालने की बात कह रहे थे।
व्यापारी भी लगातार योगी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। वार्ड स्तर पर भाजपा का स्थायी कार्यालय बनाया गया था। जहां से प्रत्येक वार्ड में रहने वाले लोगों को योगी के पक्ष में सहेजा जा सके।
योगी खुद चाहते थे गोरखपुर, वरना पूरा जिला ही हाथ निकलने का डर था
योगी आदित्यनाथ यदि गोरखपुर क्षेत्र से बाहर रहते तो, शहरी के साथ ही आसपास के 17 विधानसभा सीटों पर असर पड़ने के आसार थे। गोरखपुर ग्रामीण के साथ ही पिपराइच, चौरीचौरा की सीट भी फंसती हुई दिखाई दे रही थी। कुशीनगर में स्वामी प्रसाद मौर्या के अलग होने से पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर की सीट पर भी सपा का कब्जा होता दिख रहा था। क्योंकि, यहां पर कांग्रेस के साथ ही मौर्या का दबदबा है। संत कबीर नगर में तीन विधानसभा सीट में खलीलाबाद की सीट हाथ से निकलती दिखाई दे रही थी।
अयोध्या में जातीय गणित हमेशा काम नहीं आता, यही डर था
अयोध्या विधानसभा क्षेत्र का जातीय गणित हमेशा गड़बड़ होता रहा है। यहां कभी भी हार-जीत में जातीय समीकरण काम नहीं आया। ब्राह्मण बाहुल्य इस क्षेत्र में केवल तीन विधायक ब्राह्मण चुने गए और जब भी ब्राह्मण प्रत्याशी जीते, ब्राह्मण मतदाताओं का उनकी जीत में योगदान न के बराबर रहा। तीनों ही ब्राह्मण विधायक समाजवादी खेमे के रहे। सात बार ब्राह्मण प्रत्याशियों को यहां हार मिली, जिसमें से दो बार तो वे कम वोट बैंक वाले पंजाबी (खत्री) बिरादरी से हारे।
ब्राह्मणों की संख्या लगभग 70 हजार
अयोध्या सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय जनता पार्टी के लल्लू सिंह क्षत्रिय हैं। जबकि क्षत्रियों का मत कभी निर्णायक नहीं रहा, लेकिन एक तरफा स्वजातीय प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने से क्षत्रिय प्रत्याशियों को हमेशा लाभ हुआ। चुनाव में जीत दर्ज करने वाले पहले क्षत्रिय प्रत्याशी कांग्रेस के सुरेंद्र प्रताप सिंह थे।
तब ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था। 1985 के चुनाव में जब वह जीते थे, तब संवेदना लहर कांग्रेस के पक्ष में बड़ा निर्णायक कारक बनी। क्षत्रिय मतदाताओं की अनुमानित संख्या इस क्षेत्र में लगभग 28 हजार है, जबकि ब्राह्मणों की संख्या लगभग 70 हजार है।
बार-बार बिगड़ता रहा है जातीय समीकरण
पहली बार जब 1967 में वैश्य बिरादरी के बृजकिशोर अग्रवाल भारतीय जनसंघ से चुनाव जीते, तब वैश्यों की शहरी आबादी बहुत नहीं थी। उसके बाद विश्वनाथ कपूर ने बीकेडी के ब्राह्मण प्रत्याशी को हराया। 1974 के चुनाव में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल ने बीकेडी के ही संत श्री राम द्विवेदी को बहुत ही कम अंतर से हराया।
1977 में जयशंकर पांडेय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। वह समाजवादी खेमे के थे। ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक था। लेकिन जनता लहर में वह जातीय समीकरण के विपरीत होते हुए भी चुनाव जीत गए, लेकिन अगले ही चुनाव में उन्हें चंद परिवारों तक सीमित खत्री बिरादरी के निर्मल खत्री से शिकस्त मिली। फिर सुरेन्द्र प्रताप सिंह कांग्रेस से जीते। उन्होंने भाजपा के पिछड़ा वैश्य वर्ग से आने वाले जुझारू नेता भगवान जायसवाल को हराया।
दलितों के हैं 50 हजार मत
इस विधानसभा क्षेत्र का गणित 22000 वैश्य, 22000 कायस्थ और लगभग इतने ही निषाद तय करते हैं। यादवों के 40 हजार और मुस्लिम के लगभग 27 हजार वोट जरूर हैं, लेकिन एक दो चुनावों को छोड़ दें तो ये कभी खेल बिगाड़ नहीं पाए। यूं तो दलितों के 50 हजार मत हैं, लेकिन इनके सहारे किसी की नैया पार नहीं लगी, बल्कि कुर्मी के लगभग 18 हजार मत ज्यादा दबाव बनाते हैं।
लल्लू सिंह और अशोक तिवारी ने बिगाड़ा खेल
2007 के चुनाव में ब्राह्मण मतों के बूते जब इंद्र प्रताप तिवारी खब्बू चुनाव लड़े। उनके विरुद्ध लल्लू सिंह के साथ बसपा के अशोक तिवारी ने उनका खेल बिगाड़ दिया। वह 6000 मतों से हारे और सपा के आधार वोट पर ही सिमट गए। अगले चुनाव में उनकी बनाई जमीन पर सपा के पवन पांडेय ने फसल काटी। हालांकि, क्षत्रियों के वर्चस्व वाले मया बाजार के अयोध्या विधानसभा क्षेत्र से अलग होने से बदली परिस्थितियों ने उनकी राह आसान की और 1991 से चले आ रहे भाजपा के लल्लू सिंह का वर्चस्व तोड़ने में कामयाब रहे।
18 साल बाद UP में कोई CM विधायक का चुनाव लड़ेगा
CM योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है, यानी यहां 18 साल का एक रिकॉर्ड टूटने जा रहा है। दरअसल, यहां आखिरी बार मुलायम सिंह यादव गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर CM बने थे। उन्होंने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता साबित की थी। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में विधान परिषद सदस्य यानी MLC बनकर सीएम बनने की परिपाटी पर ब्रेक लग रहा है। पूरी खबर यहां पढ़ें...
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.