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डाउनलोड करेंउत्तर भारत की सबसे प्राचीन रामलीलाओं में से एक परेड रामलीला इस बार 146वां मंचन कर रहा है। यह साल 1873 में शुरू हो गई थी। 1877 में इसे भव्य रूप से मनाया जाने लगा। तब पात्रों को सोने के मुकुट पहनाए जाते थे। रामलीला सोसाइटी के प्रधानमंत्री कमल किशोर अग्रवाल बताते है कि चांदी के तार से बंधे सोने के मुकुट अब धरोहर के रूप में संभाल कर रखे हुए हैं। रामलीला की शुरुआत से पहले मुकुट पूजन किया जाता है। प्रमुख छह पात्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन, सीता और हनुमान का भी मुकुट के साथ चंदन-वंदन कर पूजन किया जाता है।
आज भी सोने के मुकुट है धरोहर
श्रीरामलीला सोसाइटी परेड की स्थापना 1873 में महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने की थी। मुकुल तिवारी और अनुभव तिवारी ने बताया कि उस समय मुकुट पूजन की प्रथा भी शुरू हुई थी। जो अभी तक जारी है। प्रमुख 6 पात्रों राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता और हनुमान का मुकुट चंदन-वंदन कर पूजन किया जाता है। अब तिवारी परिवार ही इस प्रथा को आगे बढ़ा रहा है। इस बार यह रामलीला अपना 146वां विजयदशमी मना रही है। अब इस सोसाइटी के अध्यक्ष महेंद्र मोहन हैं, जो पूरी टीम के साथ हर साल इसका संचालन करते हैं।
परेड ग्राउंड तक निकाली जाती है सवारी
सोसाइटी के उपाध्यक्ष मुरलीधर ब्राजोरिया रामलीला ने बताया, "लीला शुरू होने के बाद अगले 10 दिन तक सवारी निकलती है। जो परेड ग्राउंड तक जाती है। जहां रामलीला का मंचन भव्य रूप से किया जाता है। कार्यालय प्रभारी सुरेश चंद्र ब्राजोरियाने बताया, "शरद पूर्णिमा वाले दिन रामलीला मंचन में भगवान राम और अन्य सभी पात्रों को चांदी के मुकुट सहित सफेद कपड़े पहनाए जाते हैं।
उन्हें खीर का भोग लगाया जाता है। हर दिन सवारी यात्रा निकाली जाती है। रथों पर अलग-अलग पात्रों को बैठाकर आसपास के इलाकों में घुमाया जाता है। इसके बाद इस यात्रा का समापन परेड ग्राउंड में होता है। इसमें हर दिन अलग-अलग स्कूलों के बच्चों को बुलाया जाता है। इसके बाद 6 चरणों में इनका मेकअप होता है।
पहली बार अयोध्या की तर्ज पर होगा लेजर शो
झांकी संयोजक और निर्देशक अशोक अग्रवाल और महेश ने बताया, "परेड रामलीला की अपनी एक अलग ही उपयोगिता है। यहां दशहरे के 4 दिन पहले आतिशबाजी शुरू की जाती है। इसे देखने के लिए शहर ही नहीं, आसपास के इलाकों से भी हुजूम पहुंचता है।
इस साल पहली बार यहां लेजर लाइट शो हो रहा है। इसमें रामयण की अलग-अलग घटनाओं का प्रदर्शन लेजर शो से किया जाएगा। जैसे- सीता स्वयंबर, प्रभु राम का वनवास, भरत मिलाप, हनुमान मिलन और रावण वध आदि होता है। इस लेजर शो को लेकर सोसाइटी के पदाधिकारियों का कहना है कि इसे देखकर ऐसा प्रतीत होगा कि रामायण के पात्र हकीकत में सामने आ गए हों।
दूसरी ऐतिहासिक रामलीला होती है शिवली में
इसके बाद 1873 में महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने परेड रामलीला की नींव रखी। पहले यह अनवरगंज में छोटी रामलीला हुआ करती थी, बाद में महाराज प्रयाग नारायण तिवारी, राय बहादुर विशंभरनाथ अग्रवाल, बाबू विक्रमाजीत सिंह आदि ने 1877 में परेड रामलीला सोसाइटी गठित कर परेड रामलीला मैदान पर इसका मंचन शुरू कराया।
शिवली के रामशाला मंदिर में दूसरी रामलीला शुरू हुई
कानपुर की दूसरी ऐतिहासिक रामलीला शिवली ग्राम के रामशाला मंदिर में शुरू हुई। एक अन्य रामलीला कैलाश मंदिर के संस्थापक गुरु प्रसाद शुक्ल ने उसी मंदिर में 1880 में शुरू की। इसकी खासियत है कि रामलीला के लिए रामयश दर्पण नाटक के नाम से तीन भागों में पुस्तक लिखी गई।
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