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डाउनलोड करेंशुक्रवार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का रिजल्ट आने के बाद से ही यूपी के कई युवाओं के घर बधाइयों का तांता लगा हुआ है। UPSC में प्रदेश की तीन बेटियों ने भी अपना स्थान बनाया है। ऐसे में डॉटर्स डे के मौके पर दैनिक भास्कर आपको ऐसी ही तीन बेटियों की कहानी बताने जा रहा है, जिन्होंने अपने हौसलों से UPSC क्रैक किया है। पढ़िए डॉटर्स डे पर UP की 3 बेटियों की कहानी...
पहली कहानी: पिता 8वीं तो मां पांचवीं पास, बिना कोचिंग बेटी यूपीएससी में लाई 379 रैंक
जौनपुर के सुजानगंज की शालू सोनी के घर शुक्रवार से ही लोगों का आना जाना लगा हुआ है। कोई हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए हुए तो कोई मिठाई लिए चला आ रहा है। दरअसल, शालू सोनी ने यूपीएससी में 379 रैंक लाई हैं। इसके बाद से उनके घर में जश्न का माहौल है। शालू बताती हैं कि जब से रिजल्ट आया है तब से लगभग 500 से ज्यादा बधाइयों के कॉल वह अटेंड कर चुकी हैं। शालू की कामयाबी पर सबसे ज्यादा उसके माता पिता खुश हैं।
पिता राधेश्याम बताते हैं, 'मैं केवल आठवीं तक पढ़ा हूं जबकि मेरी पत्नी उषा पांचवीं तक पढ़ी हैं। हमेशा से मेरा सपना रहा है कि मेरी बेटी डीएम या एसपी बने। अब उसने मेरा सपना पूरा कर दिया। राधेश्याम बताते हैं कि मैं सर्राफा के व्यापार से जुड़ा हुआ हूं। छोटा मोटा कारोबार है। बहुत आमदनी नहीं है लेकिन इससे मेरी बेटी की पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने बिना कोचिंग के ही हमारा सपना पूरा कर दिया'।
शालू बताती हैं कि इससे पहले भी दो बार उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी है। दो असफल प्रयासों के बाद उन्होंने अपनी तैयारी को और तेज कर दिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई को और समय देना शुरू कर दिया। तैयारी के लिए रोजाना 11 से 12 घंटे पढ़ाई करती थी। इनमें से अधिकतर समय वह प्रश्नों को हल करने में देती थीं। अपनी तैयारियों को लेकर वह खुद को आश्वस्त करना चाहती थी। उन्होंने किसी कोचिंग का सहारा नहीं लिया। मैं कहती हैं कि कोर्स इतना बड़ा है कि ज्यादातर चीजें याद नहीं रहती थी। इसलिए वो रिविजन पर विशेष ध्यान देती थी। इतना ही नहीं बल्कि वह घर में अपने मां के काम में हाथ भी बटाती थीं। उन्होंने घर पर रहकर ही यूपीएससी की तैयारी की है।
नवोदय विद्यालय से हुई शुरुआती पढ़ाई
शालू की शुरुआती शिक्षा नवोदय विद्यालय जौनपुर से हुई है। इस दौरान वह हॉस्टल में रहकर नवोदय में पढ़ाई करती थी। घर से नवोदय विद्यालय दूर था। उस समय हॉस्टल में फोन रखने की भी सुविधा नहीं थी। ऐसे में महीनों तक घर वालों से बात और मुलाकात नहीं हो पाती थी। शालू बताती हैं कि पिताजी दुकान देखते थे। उन्हें बाइक चलाने भी नहीं आती थी। चूंकि दूकान बंद होने से आमदनी प्रभावित होती थी। इसलिए लंबे समय बाद ही परिजनों से शालू की मुलाकात हो पाती थी।
दूसरी कहानी: इंस्पेक्टर दादा का सपना था पोती आईपीएस बने, मौत के 4 साल बाद पूरा किया सपना
बिजनौर की काजल की यूपीएससी में 202 रैंक आई है। उनका आईपीएस बनना तय माना जा रहा है। पिता देवेंद्र सिंह किसान हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। काजल बताती हैं कि मेरे दादा पुलिस इंस्पेक्टर थे। वह हमेशा चाहते थे कि मैं आईएएस या आईपीएस बनूं। हालांकि, दादा की मौत 2017 में हो गई थी लेकिन मैं खुश हूं कि मैं उनका सपना पूरा कर सकी।
काजल ने सिर्फ यूपीएससी में ही सफलता नहीं पाई है। इससे पहले भी वह कई पहाड़ जैसी चुनौतियों को पार कर चुकी हैं। उन्होंने आईआईटी क्रैक किया हुआ है। बीते साल उन्होंने यूपी पीसीएस का एग्जाम भी क्लियर किया है। उनका चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हो चुका है। हालांकि, अभी जॉइनिंग नहीं हुई है।
काजल के पिता देवेंद्र सिंह बताते हैं, 'मेरी दो बेटियां हैं। मुझे इसका कतई अफ़सोस नहीं है कि मेरा कोई बेटा नहीं है। मेरी बेटी ही मेरा अभिमान हैं। उन्होंने बताया काजल पढने में शुरुआत से ही अच्छी थी। चौथी क्लास तक बिजनौर के सेंटमैरी से पढ़ाई की फिर आगे की पढ़ाई राजस्थान स्थित वनस्थली से हुई। वहां भी 10वीं में बेटी ने टॉप किया था। फिर वह कोटा चली गई कोचिंग के लिए। 2 साल की मेहनत के बाद आईआईटी क्रैक किया और दिल्ली आईआईटी से बीटेक कंप्लीट किया। फिर वह यूपीएससी की तैयारियों में जुटी। 2020 में यूपीपीसीएस भी दिया जिसमे उसका सिलेक्शन हो गया। अब उसने यूपीएससी भी पार कर लिया'।
तीसरी कहानी: लेखपाल की बेटी ने रोशन किया बुंदेलखंड का नाम, कोरोनाकाल में सेल्फ स्टडी से हिट किया गोल
यूपीएससी में 704वीं रैंक लाने वाली अनुराधा के पिता शिव भजन शाक्य लेखपाल हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद बेटी को उन्होंने पढ़ाया और अब उसने उनका नाम रोशन कर दिया है। शिव भजन बताते हैं कि उनका शुरू से सपना था कि बेटी प्रशासनिक सेवा में जाए। इसके लिए उन्होंने उसके बचपन से ही तैयारी की। उसका एडमिशन नवोदय में कराया। 12वीं तक उसने पढ़ाई की। जहां से उसका बेस मजबूत हो गया था। जिसके बाद वह लगातार आगे बढ़ती चली गई।
अनुराधा बताती है 12 वीं के बाद उसका चयन जेएनयू दिल्ली में हो गया। वहां से उसने ग्रेजुएशन किया और फिर वहीं से पीएचडी करने लगी। साथ ही साथ वह यूपीएससी की तैयारी भी कर रही थी। यह उसका यूपीएससी में अंतिम प्रयास था। चूंकि 2020 में कोरोनाकाल शुरू हो गया तो घर आ गई। यहां मैंने सेल्फ स्टडी पर फोकस किया। रोजाना 12 घंटे की पढ़ाई और रिविजन पर फोकस किया। अनुराधा बताती हैं कि घर पर रहकर पढ़ाई बहुत नहीं हो पाती है, लेकिन उनके मां-बाप ने मुझे हमेशा फोकस करना सिखाया। उन्होंने खुद के टेस्ट पेपर तैयार किये और उसी को हल करना शुरू किया और अब नतीजा सामने है।
अनुराधा ने बताया कि उनका इंटरव्यू 30 मिनट तक चला था। उनसे करीब 26 सवाल पूछे गए थे। यह सवाल उनकी पीएचडी के साथ परास्नातक के विषय भूगोल और इंटरनेशनल रिलेशन पर आधारित थे। अनुराधा शाक्य का कहना है कि उन्हें अच्छी पोस्ट मिलती है तो वह आगे की तैयारी नहीं करेंगी और यदि उन्हें अच्छी पोस्ट नहीं मिलती है तो भी वह ज्वाइन करेगी लेकिन उससे पहले वह अपनी पीएचडी को पूरा करना चाहेंगी, उनकी प्रथम प्राथमिकता डॉक्टरेट की उपाधि पूरी करना है और वह जो भी सर्विस मिलेगी उसको करते हुए पूरा करेंगी।
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