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डाउनलोड करेंराम इंतजार करते रहे, योगी गोरखपुर चले गए। दरअसल, योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ने जा रहे थे लेकिन बाद में उनकी टिकट गोरखपुर शहर सीट फाइनल कर दी गई। कहा जाता है कि बात चुनाव की हो तो गोरखपुर मतलब योगी नगरी। भरोसे की बात करें तो लोगों ने कभी सवाल नहीं उठाए। अगर गोरखनाथ मंदिर से फरमान जारी हुआ है, कि दिवाली या होली एक दिन पहले होगी, तो लोगों ने यही माना कि यह महंत योगी का फरमान है। इसे मानना ही होगा। यही वजह है कि 33 साल यहां भगवा और 23 साल से ज्यादा समय से यहां योगी की चल रही है।
अब टिकट फाइनल होने के बाद दैनिक भास्कर ने जाना कि क्या कहता है योगी के बारे में गोरखपुर और अयोध्या
सबसे पहले बात गोरखपुर की...
गोरखनाथ मंदिर, भगवा रंग और योगी का चेहरा
विधानसभा सीट है गोरखपुर, तो सीएम आदित्यनाथ की जीत पक्की मानी जा रही है। ये इसलिए संभव है कि, जिस मंदिर के कहने के बाद गोरखपुर में होली, दीपावली, दशहरा सहित अन्य उत्सवों के मनाने की तारीख बदल दी जाती है, वहां के पीठासीन मंहत योगी आदित्यनाथ की ही चलेगी। योगी की जीत हमेशा एक तरफा रही है।
सपा बोली पहले जैसी बात नहीं, भाजपा ने कहा रिकॉर्ड जीत होगी
सपा प्रवक्ता कीर्तिनिधि पांडेय का कहना है कि योगी को न तो राम पर भरोसा है और न कृष्ण पर भरोसा है। विजय बहादुर यादव का कहना है कि, पहले वाली स्थिति अब नहीं रही है। गोरखपुर के सभी विधानसभा सीटों पर सपा की स्थिति काफी मजबूत है। ऐसे में योगी की राह आसान नहीं है। जबकि, भाजपा के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सतेंद्र सिन्हा का कहना है कि योगी के जीत का रास्ता आसान है। अब मतों का अंतर देखना है। योगी जी रिकार्ड मतों से जीतेंगे।
पंचायत से लेकर संसदीय चुनाव में मंदिर की दखलअंदाजी
पंचायत से लेकर संसदीय चुनाव तक गोरखनाथ मंदिर और योगी आदित्यनाथ की दखलाअंदाजी रहती है। जिसे चाहा सत्ता के गलियारे में पहुंचा दिया और जिसे चाहा सड़क पर खड़ा कर दिया। गोरखपुर की राजनीति में प्रथम और अंतिम निर्णय गोरखनाथ मंदिर और उससे जुड़े पीठासीन मंहतों का रहा है। गोरखपुर में शिव प्रताप शुक्ला, जमुना निषाद, अंजू चौधरी, अमरमणि त्रिपाठी सहित दर्जनों ऐसे नेता रहे, जिनका मंदिर से अलग होने के बाद उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया। हालांकि, शिव प्रताप शुक्ला को लगभग 15 साल बाद सत्ता में आने का मौका मिला। मंदिर का वर्चस्व गोरखपुर और आसपास के सात जिलों में 33 सालों से रहा है।
अब बात अयोध्या की…
सपा बोली हार के डर से भागे योगी
राम के नाम पर अयोध्या में खूब वोट लिए गए। राम जन्मभूमि से जुड़े लोग ही सत्ता के नजदीक पहुंचा करते हैं। हालांकि, अयोध्या सदर से सपा के संभावित प्रत्याशी और पूर्व मंत्री पवन पांडेय का कहना है कि, योगी ने हार के डर से गोरखपुर वापसी कर ली है। भष्टाचार, मंहगाई, निजीकरण ही भाजपा के लिए घातक साबित होगा।
बीजेपी से बगावत कर उतरे थे प्रत्याशी
हिंदू युवा वाहिनी का पूर्वाचल के विभिन्न जिलों में लगातार प्रभाव बनता जा रहा है। जिसका नतीजा रहा कि, 2002 में योगी ने बीजेपी से बगावत करके गोरखपुर सदर विधायक रहे शिव प्रताप शुक्ला के सामने मंदिर समर्थित और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रत्याशी डॉ. राधे मोहन अग्रवाल को उतार दिया। नतीजा, 1989 से 2002 तक विधायक और सरकार में कई अहम विभाग में मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला को हार का सामना करना पड़ा।
किन्नर ने दी थी योगी को चुनौती
योगी आदित्यनाथ और मंदिर को चुनौती 2001 में मेयर के चुनाव किन्नर गुरु आशा देवी ने दी थी। आशा देवी ने चूड़ी चुनाव चिन्ह पर सपा के अंजू चौधरी को 60 हजार वोटों से हराया था। योगी आदित्यनाथ के समर्थित प्रत्याशी विद्यावती भारती तीसरे नंबर पर थी। उस वक्त भाजपा की सरकार थी और राजनाथ सिंह सीएम थे। जिसके बाद अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए योगी आदित्यनाथ 2002 में हिंदू युवा वाहिनी का प्रदेश के सभी जिले में वार्ड स्तर पर गठन किया। जिसके परिणाम से मेयर के साथ ही पंचायत चुनाव में मंदिर का दबदबा रहा है। उसी तरह 2012 में अयोध्या में तत्कालिक विधायक लल्लू सिंह को किन्नर गुलशन बिंदु की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा।
33 वर्षों से गोरखपुर में भगवा
अयोध्या विधानसभा 1964 में वजूद में आई
1991 से 2012 तक बीजेपी का दबदबा रहा है। पांच बार लल्लू सिंह विधायक बने। हालांकि, 2012 में ये सीट सपा के पवन पांडेय विधायक बने। लेकिन, 2017 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार वेद प्रकाश गुप्ता फिर से विधायक बने। इससे पहले भी 1967 में जनसंघ के बृज किशोर अग्रवाल और 1974 में वेद प्रकाश अग्रवाल विधायक बने थे।
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