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डाउनलोड करेंकोरोना के संदिग्ध मरीजों को क्वारैंटाइन और आइसोलेशन में रखा जा रहा है। पहली और दूसरी लहर में अस्थायी जेल बनाए गए, जहां नए बंदियों को रखा जा रहा था। शायद बहुत कम लोगों को मालूम है कि उत्तर प्रदेश सहित देश की जेलों में यह परंपरा कोरोना में नहीं बल्कि 115 वर्षों से चली आ रही है। जी हां, 115 साल से जेल में कैदियों को क्वारैंटाइन और आइसोलेट किया जा रहा है।
गोरखपुर जेल में आने वाले नए बंदियों को पहले 15 दिन तक अलग रखा जाता है। इस दौरान जेल के डॉक्टर उनकी जांच करते हैं। ताकि उन्हें अगर कोई बीमारी हो तो अन्य बंदियों को संक्रमित होने से बचाया जा सके। रिपोर्ट के बाद सब ठीक होने पर उन्हें अन्य बंदियों के साथ रखा जाता है।
नेहरू बैरक में रखा जाता है
गोरखपुर की बात की जाए तो यहां बंदियों को जेल जाने पर नेहरू बैरक में रखा जाता है। इस बैरक में रखने से पहले इन्हें 5 कमरे वाले एक अस्थायी बैरक में 5 दिन रखा जाता है। फिर दस दिन के लिए नेहरू बैरक में लाया जाता है। अंत में इन्हें अन्य बंदियों के साथ बैरकों में रखा जाता है।
अस्थायी जेल हुई बंद
पहली और दूसरी लहर में नए बंदियों को क्वारैंटाइन रखने के लिए डेयरी कॉलोनी में अस्थायी जेल बनाई गई थी। वहीं, जेल के बाहर भी आम लोगों को आइसोलेट रखने के लिए सेंटर बने थे। जेलों में यह व्यवस्था 1907 से ही है। अब तीसरी लहर में अस्थायी जेल को बंद कर दिया गया है। अब जेल में ही उन्हें पुरानी व्यवस्था के तहत अलग रख कर आइसोलेट किया जा रहा है।
आजादी के पहले के बनाए गए हैं नियम
जेल के नियम 1894 में बनाए गए हैं। इस जेल मैनुअल में क्वारैंटाइन और आईसोलेशन शब्द का जिक्र है और इसकी जेल में व्यवस्था है। इसके तहत नए बंदियों को अलग रखने के साथ ही खाने आदि के बारे में विस्तृत जिक्र है, लेकिन यह शब्द और व्यवस्था चलन में कोरोना के दौरान आया।
एक बंदी मिला है संक्रमित
वर्तमान में गोरखपुर जेल में करीब 2300 बंदी हैं। इसमें एक बंदी दो दिन पहले ही संक्रमित मिला है। उसे अलग कमरे में रखा गया है। वहीं, जेल की बैरकों में साफ सफाई की गई और सैनिटाइजेशन कराया गया। बंदियों की कोविड जांच भी लगातार हो रही है। साथ ही पहली, दूसरी और बूस्टर डोज भी दी जा रही है। मुलाकात भी बंद कर दी गई है। केवल इंटरकॉम से बात हो रही है और सामान भी सैनिटाइज कर बंदियों तक पहुंचाया जा रहा है।
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