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डाउनलोड करेंउत्तर प्रदेश के गाेंडा स्थित गांव कोंडर विश्व में योग का डंका पीटने वाले महर्षि पतंजलि का माना गया है। लेकिन यह गांव में उपेक्षाओं का शिकार है, वहीं महर्षि की जन्मस्थलि के नाम पर मात्र एक चबूतरे का निर्माण करवाया गया है। यह गांव जिले के वजीरगंज विकासखंड में पड़ता है, जिसका साक्ष्य धर्मग्रंथों में भी मौजूद है।
इस बात का प्रमाण पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में मिलता है, जिसमें पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है, जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला। गोण्डा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है, कि जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था।
महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से शिष्यों को शिक्षा देते थे
एक जनश्रुति के अनुसार, महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर अपने शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे। किसी ने ऋषि का मुख नहीं देखा था। एक दिन एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा तो वह सर्पाकार रूप में गायब हो गये। लोगों का मत है कि वह काेंडर झील होते हुए विलुप्त हुए। यही कारण है कि आज भी झील का आकार सर्पाकार है। योग विद्या जिसको आज अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है, फिर भी योग के प्रेरणा स्त्रोत पतंजलि की जन्मस्थली गुमनाम है।
बताया जाता है कि जन्मस्थली के नाम पर सिर्फ एक चबूतरा विद्यमान है। महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यों के लिए आज भी विख्यात हैं। व्याकरण की पुस्तक महाभाष्य, पाणिनि अष्टाध्यायी व योगशास्त्र कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य की रचना काशी में नागकुआँ नामक स्थान पर की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुंए के पास अनेक विद्वान व विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ है, परंतु इसमें साहित्य धर्म भूगोल समाज रहन सहन से संबंधित तथ्य मिलते हैं।
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