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फतेहपुर का 195वां स्थापना दिवस:समाजसेवी व संस्थाओं ने मनाया स्थापना दिवस, आजादी दिलाने में फतेहपुर का भी रहा योगदान

फतेहपुर2 वर्ष पहले
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195वां स्थापन दिवस 10 नवंबर को धूमधाम से समाजसेवी व संस्थाओं के लोगों ने केक काटकर व दीप जलाकर मनाया। - Money Bhaskar
195वां स्थापन दिवस 10 नवंबर को धूमधाम से समाजसेवी व संस्थाओं के लोगों ने केक काटकर व दीप जलाकर मनाया।

फतेहपुर का 195वां स्थापन दिवस 10 नवंबर को धूमधाम से समाजसेवी व संस्थाओं के लोगों ने केक काटकर व दीप जलाकर मनाया। फतेहपुर जिला का इतिहास किसी से कम नही है। जिले की धरती से आजादी दिलाने में वीर सपूतों को बढ़ा योगदान रहा। स्थापना दिवस 2016 में मानना शुरू हुआ, जो आज प्रशासनिक व्यवस्था की भेंट चढ़ गया। जिसको लेकर जिले के लोगों में नाराजगी जाहिर है।

भिटौरा गांव का बनाया गया था हेडक्वार्टर

फतेहपुर जिला का इतिहास वर्ष 1801 में लखनऊ के नवाब सिशजीहौला शाह आलम व ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई सीन्ध में इलाहाबाद सूवा जो अब प्रयागराज अंग्रेजों को सौंप दिया गया था।कड़ा व कोड़ा सरकार के चार-चार मोहल्ला तहसील मिलाकर जिले का खाका तैयार किया। वर्ष 1814 को गंगा के भिटौरा गांव का सर्वे कर हेड क्वार्टर बनाया गया। इसमें अंग्रेज मजिस्ट्रेट चार्स जान मेडालर्न व जिला जज मिस्टर जॉर्ज मुइनी ने कार्यभार संभाला। 12 साल बाद की कवायद के बाद फतेहपुर को मुख्यालय बनाकर 10 नवंबर 1826 को जनपद घोषित किया गया।

समाजसेवियों ने केक काटकर स्थापना दिवस मनाया।
समाजसेवियों ने केक काटकर स्थापना दिवस मनाया।

सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत

सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत के धनी दोआबा के एक छोर से पतित पावनी गंगा तो दूसरी छोर से यमुना कल कल प्रवाहमान है। महर्षि भृगु की तपोस्थली, अश्वनी कुमारों की नगरी, मीरा के गिरधर गोपाल जैसे पौराणिक स्थल मुकुट की तरह शोभायमान है। देश भक्ति में बावनी इमली, फासियाबाग, ठाकुर दरियाव सिंह स्मारक स्थल, जोधा सिंह अटौया, नोनारा जैसे स्थान मान बढ़ा रहे हैं।

कार्यक्रम के दौरान सेल्फी का भी क्रेज दिखा।
कार्यक्रम के दौरान सेल्फी का भी क्रेज दिखा।

इमली के पेड़ में 52 लोगों को फांसी दी थी

फतेहपुर जिले में 1857 में ठाकुर दरियाव सिंह व जोधा सिंह अटौया ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया और अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन अंग्रेजों ने इन वीर सपूतों को धोखे से पकड़कर एक इमली के पेड़ में 52 लोगों के साथ फांसी दी थी। जिस कारण इस स्थान को बावनी इमली के नाम से जाना जाता है।