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डाउनलोड करेंबिसंडा के ओरन नगर के प्रसिद्ध तिलहर माता मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथावाचक आचार्य शशिकांत त्रिपाठी ने सुदामा चरित्र का वर्णन किया। कथा के बाद हवन में भक्तों ने आहुति दी। इसके बाद भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में पहुंचकर भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।
प्रवचन में कहा कि सुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण थे जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा ली थी। दरिद्रता तो जैसे सुदामा की चिरसंगिनी ही थी। एक टूटी झोपड़ी, दो-चार पात्र और लज्जा ढकने के लिये कुछ मैले और चिथड़े वस्त्र, सुदामा की कुल इतनी ही गृहस्थी थी। दरिद्रता के कारण अपार कष्ट पा रहे थे। पत्नी के आग्रह को स्वीकार कर कृष्ण दर्शन की लालसा मन में संजोये हुए सुदामा कई दिनों की यात्रा करके द्वारका पहुंचे।
सुदामा का नाम सुनकर नंगे पांव दौड़ पड़े भगवान
द्वारपाल के मुख से सुदामा शब्द सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण ने जैसे अपनी सुधबुध खो दी और वह नंगे पांव ही द्वार की ओर दौड़ पड़े। दोनों बाहें फैलाकर उन्होंने सुदामा को हृदय से लगा लिया। भगवान श्रीकृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गये। उन्होंने बचपन के प्रिय सखा को अपने पलंग पर बैठाकर उनका चरण धोया। कृष्ण के नेत्रों की वर्षा से ही मित्र के पैर धुल गये l सुदामा खाली हाथ अपने गांव की और लोट पड़े और मन ही मन सोचने लगे कृष्ण ने बिना कुछ दिए ही मुझे वापस आने दे दिया।
तमाम ऐश्वर्य पाकर भी कृष्ण भक्ति में लीन रहे सुदामा
सुदामा जब गांव पहुंचे तो देखा झोपड़ी के स्थान पर विशाल महल है यह देखकर सुदामा जी आश्चर्यचकित हो गए। पाठ वाचक ने बताया की कृष्ण ने बताए बिना तमाम ऐश्वर्य सुदामा के घर भेज दिया। अब सुदामा जी साधारण ग़रीब ब्राह्मण नहीं रहे। उनके अनजान में ही भगवान ने उन्हें अतुल ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया। लेकिन सुदामा ऐश्वर्य पाकर भी अनासक्त मन से भगवान के भजन में लगे रहे। वहीं, कथा के उपरांत हवन भंडारा का आयोजन हुआ, जिसमें सैकड़ों लोगों ने पहुचकर प्रसाद ग्रहण किया। इस मौके पर कथा के मुख्य यजमान दरबारी लाल कुशवाहा, पं रामनरेश आचार्य, साकेत बिहारी, आशू शिवहरे, रामहित कुशवाहा, राम औतार, चुन्नू कुशवाहा सहित सैकड़ों भक्तगण मौजूद रहे।
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