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डाउनलोड करेंबलिया में कबीर शोध संस्थान के निदेशक ब्रजकिशोर ‘अनुभव दास’ ने कहा कि आज जिस तरीके से सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है, धर्म व जाति के नाम पर लोगों के अंदर आपसी वैमनस्यता बढ़ती जा रही है, ऐसे में कबीर के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ गई है।
सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्था ‘संकल्प’ की ओर से कबीर जयंती पर मंगलवार को मिश्र नेउरी में आयोजित ‘वर्तमान परिवेश में कबीर की प्रासंगिकता’ विषयक गोष्ठी में उन्होंने उक्त बातें कहीं। कहा कि आपसी प्रेम भाईचारा व सौहार्द्र बना रहे, इसके लिए जरूरी है कबीर के विचारों को आत्मसात करना और उसे जन-जन तक पहुंचाना। बोले कबीर एक विद्रोही संत थे, कवि थे, जिन्होंने धर्म के बाह्य आडम्बर पर कुठाराघात करते हुए समाज को एकसूत्र में बांधने का प्रयास किया।
अपने विचारों से समाज को जगाया
वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डॉ. जनार्दन राय ने कहा कि कबीर आज पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं। कबीर ऐसे संत थे जिन्होंने कर्म करते हुए अपने विचारों से समाज को जगाया और चेताया भी। आज समय की मांग है कि बौद्धिक वर्ग आगे आए और कबीर के विचारों को जनता के बीच लेकर जाएं।
डॉ. रियाजुद्दीन अंसारी ने कहा कि छह सौ साल पहले कबीर ने जो दर्शन दिया, वह समय के साथ और प्रासंगिक हो गया है। शिवजी पांडे रसराज ने अपनी भक्ति रचना ‘रोज जगावे संत कबीर, देख नयन से जग के पीर’ व संकल्प के रंगकर्मियों ने कबीर भजन सुनाया।
इस मौके पर अशोक, रमाशंकर तिवारी, विवेक सिंह, नवचंद तिवारी, महेंद्र नाथ मिश्र, धर्मराज गुप्त, संजय गुप्त, शिवजी वर्मा, ट्विंकल गुप्ता, सुशील, ज्योति, कृष्ण कुमार मिश्र, अरविंद गुप्त, नम्रता द्विवेदी, सोनी पांडे, आनंद चौहान आदि थे। रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी ने आभार जताया।
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