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डाउनलोड करेंऔरैया में सात समंदर पार से आई थाईलैंड जामुन की बागवानी की जा रही है। नर्सरी में हाइब्रिड नस्ल के जामुन को थाईलैंड से मंगाकर कर देसी पौधे में कलम तकनीक से उगाने का सपना सच कर दिखाया। नर्सरी में थाईलैंड जामुन की बागवानी चर्चा का विषय बन गई है।
जिले में मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे पर स्थित कुशवाहा नर्सरी के मालिक शिवकुमार बताते हैं कि उन्होंने इंटरनेट पर थाईलैंड के प्रसिद्ध जामुन के बारे में गहराई से जानकारी की। कलकत्ता के एक नर्सरी व्यापारी से सम्पर्क कर इसकी पौध मंगवाने में सफल साबित हुए। छोटे पौधे में ही लाल जामुन के आकार के फल लगे हुए थे।
3 पौधे ही बचे
उन्होंने बताया कि मंगाए गए पौधों में मात्र 3 पौधों को ही बचा पाने में कामयाब रहे। मगर लगन और मेहनत के बल पर बुलन्द इरादों ने अमरुद की इस विदेशी किस्म को विकसित करने के लिए आम की प्रचलित भेंट कलम तकनीक के बल पर देशी जामुन के पौधे में तैयार कर पाना संभव हो पाया। प्रगतशील किसान शिवकुमार का दावा है कि यह किस्म किसी भी जलवायु और ऊसर अथवा क्षारीय अथवा अम्लीय मिट्टियों को छोड़कर कहीं भी उगाई जा सकती है।
शिव कुमार ने बताया पौधा अपनी निश्चित आयु 50 दिन के अंदर फल देने शुरू कर देता है। विकसित फल के लिए पौधे का विकास वर्ष में 1 से 2 ग्राम का फल लाल गूदेदार होता है। खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। जिसका टेस्ट कुछ कुछ तरबूज से मिलता जुलता होता है।
बताया कि यह पूर्ण विकसित होकर साल में दो बार शरद और वर्षा ऋतु में और औसतन एक पेड़ 800 से 900 फल देता है। जबकि आम तौर देसी जामुन के पेड़ में यह सम्भव नहीं है। इस लिहाज से किसान आय के मामले में भी भरपूर फायदा उठा सकते हैं।
पक्षियों से नहीं होता नुकसान
दावा किया जा रहा है कि इस प्रजाति के जामुन पशु पक्षी, बन्दर, तोता और गिलहरी आदि को नुकसान नहीं पहुंचाती है। साथ ही बाजार में ऊंची कीमतों में इसका क्रय विक्रय किया जाता है।
ऐसे तैयार होता है पौधा
देशी जामुन के पौधे को पॉलिथिन में करके सावधानी से जड़ को तने से अलग कर पैने ब्लेड अथवा कैंची से थाईलैंड से आयातित पौधे के अग्रिम भाग को काटकर उसे उसी जगह जैविक खाद और गोबर को लेकर कटे हुए भाग से जोड़ दिया जाता है। साथ ही साथ नियमित रूप से पानी और कीटनाशक का छिड़काव लगातार 15 से 20 दिन करने के बाद पौधे की शंकर किस्म के तौर पर यह प्रजाति तैयार हो जाती है। जिसे रोपित करने के 50 दिन बाद छोटे से आकार में फल प्राप्त होने लगते है।
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