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डाउनलोड करेंऔरैया के बिधूना ब्लॉक के ढोंडापुर गांव निवासी शिशुपाल (44) 2016 में टीबी की चपेट में आ गए थे। बताया कि सांस लेने में दिक्कत थी और अक्सर बुखार भी रहता था। वजन कम हो रहा था, सीने में दर्द की भी शिकायत रहती थी। एक दिन खांसने पर खून निकला तो जिला अस्पताल में बलगम की जांच कराई। रिपोर्ट आने पर डॉक्टर ने टीबी की पुष्टि की। चिकित्सक की सलाह के मुताबिक नियमित इलाज कराया। लगातार दवा का सेवन किया। ऐसा करने से छह माह में ही क्षय रोग से पूरी तरह मुक्त हो गया।
लोगों को टीबी के प्रति जागरूक कर रहे हैं
उन्होंने सरकारी अस्पताल में दिखाया तो क्षय रोग कार्यालय व जिला अस्पताल के डॉक्टर ने उन्हें दवाएं देते हुए कुछ खाने-पीने का परहेज भी बताया। डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने दवा का सेवन शुरू कर दिया। बीच में कोई अंतराल नहीं किया। इसका परिणाम रहा कि छह माह बाद जब जांच कराई तो डॉक्टर ने बताया कि वह टीबी से मुक्त हो चुके हैं। वह अब दूसरे लोगों को टीबी के प्रति जागरूक कर रहे हैं। उनकी सेवा देखकर क्षय रोग विभाग ने उन्हें टीबी चैम्पियन घोषित किया है। वह गांव व आस-पास के 20 से अधिक टीबी मरीजों के इलाज में सहयोग कर चुके हैं।
टीबी का इलाज बीच में नहीं छोड़ना चाहिए
शिशुपाल ने बताया कि वह सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान (एसीएफ) में विभाग का सहयोग करते हैं। वह अब लोगों को बता रहे हैं कि रोग को छिपाएं नहीं, जांच कराकर दवा का कोर्स पूरा करें। खुद स्वस्थ होकर परिवार को सुरक्षित करें। टीबी का इलाज बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा करने से बीमारी की जटिलताएं बढ़ जाती हैं। अपने गांव के अलावा पड़ोसी गांवों में भी जाकर जागरूकता फैला रहे हैं। वह चाहते हैं कि वर्ष 2025 तक देश से टीबी के खात्मे के अभियान में वह भी भागीदार बनें।
टीबी मरीजों को निःशुल्क दवा दी जाती है
सरकारी इलाज लेने में ही समझदारी जिला क्षय रोग समन्वयक श्याम कुमार ने बताया कि जनपद में जिला अस्पताल, क्षय रोग केंद्र सहित समस्त स्वास्थ्य केंद्रों पर निःशुल्क टीबी जांच की सुविधा है। इसके साथ ही इन सभी स्थानों पर टीबी मरीजों को निःशुल्क दवा वितरण की व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि बिना सोचे समझे व बिना सही जांच के बाहर के महंगे इलाज के चक्कर में न पड़ें।
कहा कि महंगे इलाज से टीबी मरीज, परिवारीजनों की आर्थिक स्थिति तो खराब होती ही है, साथ में रोग भी गंभीर हो जाता है। ऐसे हालात में विकल्पहीनता में सरकारी इलाज लेना मजबूरी बन जाती है। जनपद के कई मरीजों ने सरकारी इलाज लेना तब शुरू किया, जब उनकी स्थिति ज्यादा बिगड़ गई। इसलिए शुरूआत से सरकारी इलाज लेने में ही समझदारी है।
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