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डाउनलोड करेंकोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण पर जोर दिया जा रहा है। आगरा में टीकाकरण की शुरुआत को आज एक साल हो गई। एक साल पहले वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में बहुत सवाल थे। इसमें एक सवाल आज भी है कि वैक्सीन से कितने दिनों तक एंटीबॉडी बनेंगी। इसको लेकर आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज की रिसर्च में जो नतीजे आए हैं, वो उत्साहित करने वाले हैं। कोविड वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके लोगों में 300 दिन बाद भी एंटीबॉडी बनी हुई हैं।
एक साल पहले शुरू हुआ था शोध
आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में वैक्सीन की प्रभावशीलता परखने और कितने दिनों तक एंटीबॉडी बनेगी, इसके लिए एक साल पहले ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डा. नीतू चौहान ने रिसर्च शुरू किया। डा. नीतू चौहान ने बताया कि इस रिसर्च में 134 डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल किया गया। इन सभी को कोवीशील्ड वैक्सीन की डोज दी गई।
ऐसे की गई एंटीबॉडी की मॉनिटरिंग
डा. नीतू चौहान ने बताया कि रिसर्च में शामिल स्वास्थ्य कर्मियों का वैक्सीन लगवाने के पहले दिन ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडी जांची गई। इसके बाद इन लोगों को फिर 28वें दिन वैक्सीन की दूसरी डोज लगी, तब इनकी एंटीबॉडी देखी गई। इसके बाद फिर 56वें दिन, 180वें दिन और वैक्सीन लगने के बाद 300वें दिन पर एंटीबॉडी जांची गई।
56वें दिन सबसे ज्यादा एंटीबॉडी मिली
डा. नीतू चौहान ने बताया कि रिसर्च में जो डाटा सामने आया है, उसमें वैक्सीन की दोनों डोज लेने के 56वें दिन पर सबसे ज्यादा 25 हजार तक एंटीबॉडी पाई गई थीं। इसके बाद 180वें दिन एंटीबॉडी कम हुई और 300वें दिन और कम हो गई। मगर, 300वें दिन भी वैक्सीन लेने वालों में एंटीबॉडी मिली हैं। उन्होंने बताया कि जो लोग कोरोना संक्रमित नहीं हुए उनमें वैक्सीन लेने वालों के मुकाबले कम एंटीबॉडी पाई गई। संक्रमित न होने वालों में वैक्सीन लगवाने के बाद 300वें दिन 20 से 200 यू/एमएल स्पाइक एंटीबॉडी मिली हैं। वहीं 56वें दिन इनकी एंटीबॉडी दो हजार तक थीं। वहीं, जो लोग कोरोना संक्रमित हुए थे उनमें दोनों डोज लेने के बाद अधिकतम 25 हजार यू/एमएल एंटीबॉडी तक बने, जो 300वें दिन जांच कराने पर 700 से 5000 यू/एमएल तक मिलीं।
संक्रमण से लड़ने के लिए पर्याप्त
300वें दिन जितनी एंटीबॉडी मिली हैं, वो कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए पर्याप्त है। इसके अलावा एंटीबॉडी कम होने पर परेशान होने वाली बात नहीं है। संक्रमण से बचाने के लिए बी और टी सेल जरूरी होती हैं। वैक्सीनेशन से हमारे शरीर में यह दोनों सेल और ज्यादा विकसित हो जाती हैं। यह विशेष कोशिकाएं है जो हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता तय करती हैं।
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