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डाउनलोड करेंएक मजदूर पिता ने अपने बेटे के लिए सरकारी नौकरी का सपना देखा। उसे जैसे-तैसे जयपुर भेजा। कमरा दिलाया और कुछ साल खर्च उठाया। बेटे ने रीट परीक्षा दी, लेकिन पेपर आउट हो गया। बेटे का सपना पूरा होने से पहले पिता चल बसे। अब परिवार की जिम्मेदारी उस बेटे पर थी जो जयपुर में रहकर तैयारी कर रहा था। ऐसे ही एक किसान ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रिश्तेदारों से ब्याज पर पैसे लिए, लेकिन पेपर धांधली की खबर ने उसे अंदर तक तोड़कर कर रख दिया। उसे तैयारी के लिए और चार महीने शहर में रुकना होगा।
एक तरफ शहर में रहने का खर्च देते-देते आर्थिक रूप से टूटते परिवार की परेशानी, तो दूसरी ओर उम्र की सीमा पार न हो जाने की चिंता। ये स्टूडेंट्स आर्थिक ही नहीं, मानसिक और सामाजिक तौर पर भी टूट जाते हैं। ये बेरोजगारी की वो मार है जो असल में गरीब परिवारों पर पड़ रही है। रीट, एसआई से लेकर हर बड़ी भर्ती में धांधली की खबर युवाओं के सपनों को ऐसे ही तोड़ रही है। उन परिवारों को झकझोर रही है, जो एक उम्मीद में लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। भास्कर ऐसे परिवारों से मिला जिनके घरों में फर्श तक कच्चे हैं, छत जर्जर है और 45 डिग्री की गर्मी दूर करने के लिए घर में कूलर तक नहीं। यह जानने की कोशिश की कैसे एक सरकार की नाकामी का सिस्टम युवाओं की जान ले रहा है और उन्हें गहरे दलदल में झोंक रहा है....
केस. 1 बेटे का सपना पूरा होने से पहले पिता की मौत
जयपुर से 70 किलोमीटर दूर गोपाल जाट के पिता सुरजकरण चौधरी मजदूरी कर अपना परिवार चला रहे थे। बेटे गोपाल को जयपुर तैयारी के लिए भेजा। जैसे तैसे मकान किराया, स्टडी मैटेरियल, खान-पान के लिए पैसे भेजे, लेकिन वे संघर्ष करते करते अपने बेटे की नौकरी लगने से पहले ही चल बसे। गोपाल ने बताया कि रीट की तैयारी करने के लिए थोड़ा कर्जा लिया था। लेकिन पेपर आउट हो गया। ऐसे लगा जैसे हिम्मत टूट गई। परिवार का बोझ भी उनके कंधों पर आ गया है। ऐसे में पढ़ाई के लिए जितना वक्त देना चाहिए नहीं दे पा रहे। तीन बीघा का छोटा खेत है, जहां पानी की कमी है। बड़ी ही मुश्किल से 5 हजार रुपए का इंतजाम हो पाता है। एक साथ मिले दो बड़े सदमों ने बहुत निराश कर दिया था। गोपाल एक बार फिर से एक उम्मीद के साथ रीट की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन जयपुर में नहीं, बल्कि अपने गांव में।
केस. 2 दो साल कोरोना की मार, अब पेपर लीक
जयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर धवली, चौमूं गांव निवासी सुरेश कुमार गौरा के पिता गंगाराम गोरा किसान हैं। सुरेश बताते हैं पहले कोरोना के कारण प्रतियोगी परीक्षा हो नहीं रही थीं। पढ़ाई में भी लंबा गैप आ गया था। अब होने लगी हैं, तो पेपर आउट हो रहे हैं। हमारे आर्थिक हालात और खराब होते जा रहे हैं। किसान क्रेडिट कार्ड से लोन लिया हुआ है। पेपर आउट का सबसे अधिक असर हम जैसे गरीबों पर ही पड़ता है। परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल है। पिताजी की इच्छा है कि मैं सरकारी नौकरी पर लगूं। लेकिन महीने में बमुश्किल 7- 8 हजार रुपए की आमदनी है। अब जयपुर छोड़ गांव में रह कर ही परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं। ये अकेले मेरी बात नहीं है, बल्कि लाखों युवा परेशान हैं।
कॉन्स्टेबल-रीट जैसे पेपर आउट मामलों की इन्वेस्टिगेशन राजस्थान की एसओजी एवं पुलिस कर रही है। लेकिन भास्कर टीम ने वो इन्वेस्टिगेशन किया जो हैरान करने वाला है। भास्कर ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करवाने वाले एक्सपर्ट, मनोचिकित्सक, समाजशास्त्री से बात कर वो हिसाब किताब जोड़ा जिसके नुकसान की भरपाई शायद सरकार भी न कर पाए। साल में दो-तीन के पेपर आउट होने का मतलब है 35 लाख बेरोजगारों का करोड़ों का नुकसान। 35 लाख अभ्यर्थियों ने एक साल में 766.5 करोड़ घंटे एग्जाम की तैयारी के लिए दिए, जो बेकार हो गए। इस गणित को इस तरह समझ सकते हैं कि 1 अभ्यर्थी रोज 6 घंटे पढ़ाई कर करता है, यानी 35 लाख अभ्यर्थी गुणा 6 घंटे रोज तैयारी गुणा 365 = 766.5 करोड़ घंटे। यानी 8 लाख 75 हजार साल।
स्थगित होने वाली परीक्षा वापस आयोजित करने में कम से कम तीन-चार महीने लगते हैं। 3 महीने को आधार मानें तो अभ्यर्थियों को औसतन 189 करोड़ घंटे ज्यादा पढ़ना पड़ेगा और 8 हजार 750 करोड़ ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे।
राजस्थान में देश की सबसे अधिक बेरोजगारी दर
राजस्थान में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक बेरोजगारी दर रही है। सीएमआईई (Centre for Monitoring Indian Economy) की जनवरी से लेकर अप्रैल, 2022 की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 27 फीसदी बेरोजगारी दर रही। खास बात यह है कि प्रदेश में स्नातक और इससे अधिक पढ़े हुए युवाओं में 54 प्रतिशत तक बेरोजगारी है।
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