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जावेद अख्तर बोले- वह लड़की आज भी याद:बचपन को याद करते हुए बताया- कैसे दोस्त से लिखवाया था लव लेटर

जयपुर4 महीने पहले
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जयपुर की सर्द शाम और शब्दों के जादूगर जावेद अख्तर का साथ। दैनिक भास्कर की ओर से आयोजित कार्यक्रम में जावेद अख्तर को जिसने सुना, सुनता ही रहा और उनके जीवन की कहानियों में डूबता चला गया। मौका था उन पर लिखी गई अरविंद मंडलोई की किताब 'जादूनामा, जावेद अख्तर, एक सफर' के विमोचन का।

जावेद अख्तर ने अपने जीवन के बारे में क्या कहा, पढ़िए.....

यह किताब 4 साल की मेहनत के बाद लिखी गई है। कई चीजों के बारे में मुझे याद ही नहीं था। वहीं कुछ तस्वीरें तो मैंने ऐसी देखीं ,जो मेरे दिल के बहुत करीब थी, लेकिन वो मेरे पास थी ही नहीं। मैं कोर्स की किताब के अलावा हर तरह की किताब पढ़ा करता था। भोपाल की लाइब्रेरी में हर दिन सुबह 4 से लेकर 6 बजे तक किताबें ही पढ़ा करता था।

शोले फिल्म को लेकर लोग तारीफ करते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि आपने डायलॉग लिखा- कितने आदमी थे। वाह क्या डायलॉग है, लेकिन मुझे शर्मिंदगी महसूस होती है कि आखिर इतनी ज्यादा तारीफ कोई कैसे कर सकता है।

शोले में सांभा का कैरेक्टर नहीं था, लेकिन बाद में लगा बड़े आदमी अपनी तारीफ के लिए कुछ लोगों को अपने आसपास रखते हैं। इसलिए सांभा के कैरेक्टर को डेवलप किया। फिल्म में भी गब्बर सांभा से पूछता है- बताओ सांभा, सरकार कितने रुपए का इनाम रखी है हम पर।

जिंदगी में घमंड नहीं करना चाहिए। जिंदगी में जितने दुख और धोखे मिले, उसे मेडल समझ दिल से लगा लेना चाहिए। दुख हर इंसान के हिस्से में आता है। सबका एक पैकेज है, जिसमें गम, खुशियां सभी शामिल हैं।

15 साल का था, तब पहली बार लव लेटर अपने दोस्त से लिखवाया था। क्योंकि मेरी राइटिंग अच्छी नहीं थी। लेटर में क्या लिखा यह तो मुझे याद नहीं, लेकिन वह लड़की याद है, जिसके लिए मैंने लेटर लिखा था। तब मैं 15 का और लड़की 14 साल की थी।

एक इंटरव्यू के दौरान शबाना से एक रिपोर्टर ने पूछा- जावेद साहब इतनी रोमांटिक बातें लिखते हैं, असल जिंदगी में भी काफी रोमांटिक होंगे। शबाना ने उनसे कहा था- इनके शरीर की एक हड्डी में भी रोमांस नहीं है। इसके बाद मैंने रिपोर्टर को समझाया कि जो इंसान सर्कस में उल्टा लटकता है, जरूरी नहीं घर पर जाकर भी वह उल्टा ही लटके।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी से मेरे संबंध को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। जब मैं और शबाना उनके घर जाते थे, तब हमारी सिक्योरिटी चेक भी नहीं होती थी। अटल जी ने सिक्योरिटी वालों को बोल रखा था कि जावेद मेरा गुरुभाई है।

वीर जारा में पहले से ही धुन तैयार थी। मैंने उसी धुन के आधार पर लिरिक्स लिखे थे। उन पर लिरिक्स लिखना काफी मुश्किल होता था। काफी कवि आए, लेकिन वे धुन पर लिरिक्स नहीं लिख पाए।

गीतकार साहिर लुधियानवी साहब मेरे मामा और पिता के दोस्त थे। मेरी और उनकी उम्र में 30 से 35 साल का गैप था, फिर भी मेरी उनसे दोस्ती हो गई। मैं जहां भी रहा, वहां से उन्हें फोन जरूर करता था। जब भी वह फ्री होते थे, तो मुझे बुला लेते थे। मैं अकेला रहता था, तब उनके साथ उनकी व्हिस्की पीता था। वह मुझे जवान बोलते थे।

उस वक्त मैंने साहिर साहब से काम मांगा तो उन्होंने बहुत सोचकर मेरे टेबल पर 200 रुपए रखकर दिए थे। वह मुझे हाथ से पैसे देने में सहज नहीं थे।

कुछ साल बाद उनको हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया, जब मैं उनके घर गया। तब एक व्यक्ति आया और उसने मुझसे कहा कि मुझे ₹200 दीजिए। मैंने इनकी कब्र खोदी है, तब मैंने उसे ₹200 दिए। तब मुझे याद आया की साहिर साहब का उधार इस तरह चुका।

भोपाल में मेरा एक दोस्त थे, यह बात उस दौर की है, जब मेरे पास रहने का ठिकाना नहीं था, खाना खाने को लेकर भी तंगाई थी। उस समय मुश्ताक ने मेरा साथ दिया, उन्होंने रहने के लिए मुझे अपना कमरा दिया, खाने का बिल भी उनके नाम ही जुड़ता था। यहां तक कि सिगरेट के लिए भी वे मेरे लिए पैसे रख दिया करता था।

कुछ समय बाद वह किसी और देश के लिए निकल गया और मैं मुम्बई के लिए चला गया। 2018 में मुझे लंदन जाने का मौका मिला, वहां बीबीसी ने मुझे इंटरव्यू के लिए स्टूडियो में बुलाया। वहां एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि मैं भी कविताएं लिखता हूं और बुक थमा दी। कुछ कविताएं पढ़ने के बाद मैं बुक की शुरुआत की तरफ गया, वहां प्राक्कथन लिखा था। उसे पढ़ने लगा और उस पर नाम मुश्ताक सिंह लिखा था।

मैंने कवि से पूछा ​कि जिन्होंने आपका प्राक्कथन लिखा है कि क्या वे भोपाल से हैं, उन्होंने कहा कि वे अक्सर भोपाल का जिक्र किया करते थे। मैंने उनसे मुश्ताक का नम्बर मांगा, तो उन्होंने कहा कि बुक आए चार साल हो गए हैं, उनके नम्बर नहीं हैं। तब मैंने उन्हें अपना नम्बर देकर कहा कि जब आपको मिल जाए तो मुझे बता दीजिएगा। शाम को ही उन्हीं सज्जन का कॉल आ गया और उन्होंने मुश्ताक के नम्बर दे दिए।

मैंने मुश्ताक से बात की और मिलने के लिए बुला लिया। यहां हम खूब रोए, पुराने दिन याद किए। मैंने कहा कि भाई हम अलग जरूर हुए, लेकिन तुम्हारे हाथ का कड़ा आज भी मेरे हाथ पर लगा हुआ है और मेरे साथ तुम्हारा यह साथ हमेशा चलता है। उस समय मुश्ताक ने बताया कि जब तुम भोपाल वाला कमरा खाली करके गए थे, तब एक लिफाफा छोड़ गए थे, वह तब से मेरे पास है। मैं जल्दी ही भिजवाता हूं।

मैं अगले दिन निकलने वाला था, तो मैंने कहा कि मेरी एक दोस्त 15 दिन बाद लंदन से मुम्बई आएगी, तुम उनके साथ वह भिजवा देना। जब वह लिफाफा मेरे पास आया तो उसमें ऑटोग्राफ बुक थी, जो मैं 10 साल की उम्र से बनाया करता था। उसमें देश के नामचीन कलाकारों, साहित्यकारों के ऑटोग्राफ थे। एक कागज था, जिस पर कुछ लेख लिखा था, जो मेरी दूसरी डिबेट का था। यह कागज और यह बुक 54 साल बाद मिली थी।

उस ऑटोग्राफ बुक में मैं निम्मी जी का भी ऑटोग्राफ लेना चाहता था, जो कि उस समय मिल नहीं पाया था। निम्मी जी ने फिल्मफेयर अवॉर्ड के वक्त कहा था कि अभी मुझे कहीं जाना है, तुम्हें एक दिन ऑटोग्राफ जरूर दूंगी। जब यह मेरे पास बुक आई, तो कुछ दिन बाद निम्मी का कॉल आया और उन्होंने मिलने बुलाया, वे किसी परिचित से मिलवाना चाहती थीं, जब हमारी मुलाकात हो गई तो मैंने अपनी ऑटोग्राफ वाली बात उन्हें बताई और उस पर ऑटोग्राफ लिए। इसके कुछ दिन बाद उनकी डेथ हो गई थी।

मैं जिस रास्ते से जाता था, वहां एक कब्रिस्तान हुआ करता था। वहां बाहर लिखा था कि यहां पर औरतों का आना मना है। एक दिन मैं वहां रुका और मौलाना साहब से कहा कि इसे ठीक कीजिए। कब्रिस्तान में जिंदा औरतों का आना मना है।

जिंदगी उतनी ही इंटरेस्टिंग है, जितना कि आप इंटरेस्टेड हैं। दो ही लम्हे जिंदगी में मेरे गुजरे हैं कठिन, एक तेरे आने से पहले और एक तेरे जाने के बाद।

दैनिक भास्कर के साथ मेरा रिश्ता बहुत पुराना है, कॉलेज के दिनों से इनसे जुड़ाव रहा है, जब इनके दो एडिशन थे। तब मेरे दोस्त यहां काम करते थे। मैंने सबसे पहले प्रिंटिंग प्रेस इन्हीं की देखी है। तब से यहां से रिश्ता बना हुआ है, अब यह मेरी एक्सटेंडेड फैमिली की तरह है।

राज्यपाल कलराज मिश्र ने गुरुवार देर शाम जादूनामा पुस्तक का विमोचन किया। मंच पर मौजूद किताब की ट्रांसलेटर रक्षंदा जलील (बाएं से), किताब के लेखक अरविंद मंडलोई, गीतकार जावेद अख्तर, राज्यपाल कलराज मिश्र, दैनिक भास्कर से जगदीश शर्मा, नवनीत गुर्जर, एलपी पंत।
राज्यपाल कलराज मिश्र ने गुरुवार देर शाम जादूनामा पुस्तक का विमोचन किया। मंच पर मौजूद किताब की ट्रांसलेटर रक्षंदा जलील (बाएं से), किताब के लेखक अरविंद मंडलोई, गीतकार जावेद अख्तर, राज्यपाल कलराज मिश्र, दैनिक भास्कर से जगदीश शर्मा, नवनीत गुर्जर, एलपी पंत।

जावेद अख्तर ने शराब नहीं, जिंदगी सुनी
राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि जावेद अख्तर ने 30 साल पहले शराब नहीं जिंदगी चुनी। जावेद साहब को मैं बहुत पहले से जानता हूं और उनका काफी सम्मान भी करता हूं। जावेद साहब जब भी मिलते हैं, मुझे लगता है कि मेरे परिवार का कोई सदस्य मुझसे मिल रहा है। जावेद साहब का स्वभाव और व्यवहार इतना अच्छा है कि जिससे भी वह मिलते हैं, उसे कुछ ही मिनटों में अपना बना लेते हैं। इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद लेखिका रक्षंदा जलील ने किया है।

दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर मुकेश माथुर ने 'जादूनामा' किताब के लेखक अरविंद मंडलोई का स्वागत किया।
दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर मुकेश माथुर ने 'जादूनामा' किताब के लेखक अरविंद मंडलोई का स्वागत किया।

'मेरे घर में सिर्फ जावेद अख्तर की तस्वीर'
किताब के लेखक अरविंद मंडलोई ने कहा कि जावेद अख्तर से मिलने के बाद मेरी जिंदगी काफी बदल गई। मेरे जीवन में सुख-समृद्धि भी इनसे मिलने के बाद ही आई है। मेरे घर में किसी और इंसान की नहीं, सिर्फ जावेद अख्तर की तस्वीर है। मैं सुबह उठते ही उस तस्वीर को देखता हूं। वह मुझे मोटिवेट करती है। जावेद साहब राइटर नहीं होते, तो आज अच्छे वकील होते।

दैनिक भास्कर डिजिटल के स्टेट एडिटर किरण राज पुरोहित ने किताब की ट्रांसलेटर रक्षंदा जलील का स्वागत किया।
दैनिक भास्कर डिजिटल के स्टेट एडिटर किरण राज पुरोहित ने किताब की ट्रांसलेटर रक्षंदा जलील का स्वागत किया।

पढ़िए, जादूनामा किताब से जावेद अख्तर की जिंदगी के रोचक किस्से...

क्लैपर बॉय से ऐसे बने डायलॉग राइटर
महाराणा प्रताप सभागार में गुरुवार देर शाम आयोजित इस कार्यक्रम में जावेद अख्तर ने जादू से जावेद बनने की कहानी को साझा किया। जावेद अख्तर का बचपन का नाम जादू रहा है। किताब में जावेद अख्तर को 1965 में डायरेक्टर एसएम सागर के यहां नौकरी मिलने और फिल्म में सीन लिखने का किस्सा साझा किया है।

असल में वे अदाकार शेख मुख्तार को लेकर फिल्म बना रहे थे, जिसमें सलीम खान भी एक रोमांटिक रोल में थे। एसएम सागर को कोई डायलॉग-राइटर नहीं मिल रहा था। तब जावेद साहब ने उनसे पूछा- क्या मैं कुछ सीन लिखकर दे दूं? और उन्होंने दो तीन सीन लिखकर भी दिखाए। उनको वो सीन अच्छे लगे और बोले- तुम डायलॉग लिखो। इस तरह जावेद साहब क्लैपर बॉय के अलावा डायलॉग राइटर भी बने।

जावेद अख्तर को सुनने के लिए महाराणा प्रताप सभागार में जुटी प्रशंसकों की भीड़।
जावेद अख्तर को सुनने के लिए महाराणा प्रताप सभागार में जुटी प्रशंसकों की भीड़।

मां को शादी में नज्म सुनाई थी, उसी से नाम रखा 'जादू'
बात 17 जनवरी 1945 की है। ग्वालियर के कमला अस्पताल में जावेद अख्तर के पिता ने अपने हाथ में कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो ले रखा था। वे दोस्तों से बोले- हम इसके कान में यही पढ़ देते हैं। किसी ने पिता को याद दिलाया कि जब उन्होंने मेरी मां सफिया से शादी की थी तो उन्होंने एक नज्म कही थी, जिसमें एक लाइन यह भी थी ‘लम्हा लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’, तो इसका नाम जादू क्यों न रख दें? तो वहीं मेरा नाम काफी समय तक ‘जादू’ पड़ा... ऐसे कई किस्से-कहानियां जावेद अख्तर की ‘जादूनामा’ किताब में पढ़ने को मिलेंगे।

वीडियो-फोटो क्रेडिट : ऋषभ सैनी

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