पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंजमीन अब जानलेवा बनती जा रही है। शहरीकरण के फैलाव से भाव बढ़ने और कोरोनाकाल में पलायन कर घर लौटने की वजह से झगड़े ज्यादा बढ़े हैं। सीमाज्ञान, बंटवारे, पत्थरगढ़ी और अवैध कब्जों को लेकर हालात ये बन गए हैं कि अब लोग पड़ोसी, परिचित और रिश्तेदारों की जान लेने से भी नहीं चूक रहे। पुलिस के आंकड़े मानें तो टॉप-10 जिलों में पिछले साल ही 676 हत्याएं यानि रोजाना 2 मर्डर हो रहे हैं, जबकि इससे पिछले साल 2019 में 645 हत्याएं हुई थीं।
इनमें हत्या का कारण जमीन विवाद और कातिल निकट के रिश्तेदार अथवा पड़ोसी ही निकले हैं। इस तरह के मामलों में भरतपुर टॉप पर है क्योंकि यहां हत्या के मामले 17 प्रतिशत से ज्यादा बढ़े हैं । जिन जिलों में पिछले 2 साल के दौरान जमीन विवाद के कारण ज्यादा हत्याएं हुई हैं, उनमें उदयपुर में 166, गंगानगर में 140, अलवर में 254, सीकर में 122, बीकानेर में 118, नागौर में 115, झुंझुनूं में 114, हनुमानगढ़ में 105, जयपुर ग्रामीण में 102 और अजमेर में 101 हत्याएं हुई हैं।
इधर, रेवेन्यू बोर्ड अजमेर के आंकड़ों को मानें तो राजस्व अदालतों की इतनी बुरी स्थिति है कि प्रदेश में रोजाना औसतन 950 मामले कोर्ट में नए दर्ज हो रहे हैं। इस समय 5 लाख 48,187 मामले पेंडिंग हैं। इस पेंडेंसी से अनेक जगहों पर लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की नौबत आ रही है। कुछ साल पहले भरतपुर के गोपालगढ़ में दो समुदायों के बीच हुआ गोलीकांड इसी का नतीजा रहा।
जमीन संबंधी मामलों की क्या स्थिति है यह प्रशासन गांव के संग अभियान में सुलझ रहे मामलों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है। किसी को 50 साल बाद खातेदारी अधिकार मिल रहा है तो किसी को राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन में ही 20-25 साल लग गए।
बहनें भी अब मांग रहीं पैतृक संपत्ति में हक, कई मामलों में बड़ा कारण यह भी
रेवेन्यू मामलों के एक्सपर्ट्स के मुताबिक जमीनें महंगी होने के कारण अब बहनें अपना हक मांगने लगी हैं। वे भाइयों और जमीन क्रेताओं के खिलाफ मुकदमे कर रही हैं। एसडीएम, एसीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार के कोर्ट में नहीं बैठने से छोटे-छोटे मामलों के फैसले भी समय पर नहीं हो रहे हैं, जबकि हाईकोर्ट का पुराना आदेश है कि वे सप्ताह में कम से कम 3 दिन कोर्ट में बैठेंगे।
एसडीएम, एसीएम की ट्रेनिंग और रिफ्रेशर कोर्स नियमित नहीं हो पा रहे हैं। फर्जी तामील होने से लिटिगेशन बढ़ रहा है। कलेक्टर्स और संभागीय आयुक्तों का इस ओर ध्यान ही नहीं है, क्योंकि उनकी परफॉरमेंस प्रशासन गांव के संग, प्रशासन शहरों के संग, स्कूलों में नामांकन, कभी कोरोना तो कभी डेंगू रोग का प्रबंधन, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों की प्रगति से देखी जा रही है। इसलिए वे एसडीएम, एसीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार को प्रोटोकॉल और फील्ड में दौड़ाए रहते हैं।
3 मामले; जो बताते हैं सरकारी सिस्टम की लेटलतीफी
केस-1. राजस्व रिकॉर्ड में नाम ठीक कराने में ही लग गए 50 साल सीकरी तहसील के बूड़ली निवासी दीनू मेव को राजस्व रिकॉर्ड में उसके दादा का नाम गलती से अल्लाबक्स दर्ज हो गया। वास्तविक नाम मामला मेव था। इसकी वजह से जमीन का उसके पिता सुफेदा के नाम दाखिला खारिज नहीं हो पाया। राजस्व अधिकारियों के चक्कर काटते-काटते 50 साल हो गए थे। अब विधायक की मदद से नाम दुरुस्त हुआ।
केस-2. खातेदारी हक लेने के लिए 40 साल तक करना पड़ा संघर्ष बीकानेर में महाजन के शेरपुरा निवासी मामराज की पत्नी मीरा को खातेदारी अधिकार के लिए 40 साल तक संघर्ष करना पड़ा। वह और उसके परिजन राजस्व अधिकारियों को चक्कर लगाकर थक गए। नियमानुसार 10 साल के कब्जे के आधार पर उसे जमीन का खातेदारी अधिकार 30 साल पहले ही मिल जाना चाहिए था। अभियान में अधिकार मिला।
केस-3. 50 साल बाद जमीन का बंटवारा, 25 लोगों को मिला मालिकाना हक : जैसलमेर में फलेड़ी के गेमर खान फकीर के परिवार की जमीन खातेदारी में थी। इसमें 3 पीढ़ियों के 25 लोग हिस्सेदार हो गए। विभाजन नहीं होने से तय नहीं हो पा रहा था कि कौन सा सदस्य जमीन के किस हिस्से में खेती करे। अब बंटवारा होने से 3 पीढ़ियों की परेशानी खत्म हो गई है।
केस लंबा चलने से बढ़ता है तनाव, होती हैं वारदात
एक्सपर्ट व्यू : सोनीराम शर्मा, सीनियर एडवोकेट
पिछले 30 साल से रेवेन्यू मामलों की वकालत करते आ रहे सीनियर एडवोकेट सोनीराम शर्मा बताते हैं कि राजस्व मुकदमों में ज्यादातर पक्षकार रिश्तेदार या पड़ोसी होते हैं। इनका कई मौकों पर आमना-सामना होता है। केस लंबा चलने की वजह से उनमें आपसी तनाव बढ़ता जाता है। इसलिए हत्या जैसी घटनाएं होती हैं।
फैसलों में देरी के लिए राजस्व कोर्ट में नियमित सुनवाई न होना, अधिकारियों के पद खाली रहना और भ्रष्टाचार प्रमुख कारण हैं। उदाहरण के तौर पर बंटवारे के मामले में कानूनन तहसीलदार को ही मौके पर जाना होता है, लेकिन वे जाते ही नहीं हैं। इसलिए रेवेन्यू मुकदमे लंबे चलते हैं। इन मामलों के लंबे खिंचने से तनाव बढ़ता है और हत्या और झगड़े जैसी घटनाएं होती हैं।
अधिकारियों को नियमित सुनवाई के निर्देश दिए हैंः राजेश्वर सिंह
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.