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डाउनलोड करेंभारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने बहुत सारे जख्म दिए हैं। यह जख्म आजादी के 75 साल बाद भी उन लोगों को दर्द पहुंचाता है जिनके अपने उनसे 75 साल पहले बिछड़ गए। इसी दर्द की एक नई कहानी सामने आई है। पंजाब में पटियाला जिले के शुतराणा एरिया के गुरमीत सिंह जब पाकिस्तान के करतारपुर साहिब में अपनी बहन गज्जो से मिले तो दोनों की आंखों से आंसुओं के दरिया बह निकले। गज्जो अब पाकिस्तान की मुमताज बेगम है। यह नाम बंटवारे के बाद उसे पाकिस्तान में पालने वाले मुस्लिम परिवार ने दिया।
गुरमीत सिंह और गज्जो उर्फ मुमताज बेगम ने बताया कि 1947 से पहले वह सेखवां गांव में रहते थे। बंटवारे के दौरान सेखवां गांव पाकिस्तान में रह गया और वह दोनों बिछड़ गए। बंटवारे के दौरान मची मार-काट में कुछ लोगों ने उनकी मां का कत्ल कर दिया। उस समय गुरमीत सिंह किसी तरह भारत आ गए, जबकि गज्जो अपनी मां के शव के साथ सेखवां में रह गईं। माहौल कुछ शांत हुआ तो दोनों ने एक-दूसरे को ढूंढने की कोशिश की मगर कोई नहीं मिला। इस पर दोनों ने समझ लिया कि शायद मार-काट में कोई नहीं बचा।
गज्जो के अनुसार, जब वह सेखवां गांव में अपनी मां के शव पर बिलख रही थी तो मुबारक अली उर्फ मोहम्मद इकबाल नाम का शख्स उसके लिए फरिश्ता बनकर आया। मुबारक अली और उनकी बेगम अल्लाहरखी ने न सिर्फ उसकी जान बचाई, बल्कि उसे अपने साथ ले गए। उन्होंने शेखुपुरा इलाके में वरिका तियान गांव में उसे अपनी बेटी की तरह पाला-पोसा। मुबारक अली ने ही प्यार से उसका नाम गज्जो से बदलकर मुमताज बेगम रखा।
करतारपुर साहिब मिला रहा बिछड़ों को
सिखों के पहले गुरु, गुरु नानकदेव की अंतिम समय की तपोस्थली रहा करतापुर साहिब बंटवारे के समय बिछड़े लोगों को मिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है। बंटवारे के समय एक-दूसरे से अलग हो चुके कई परिवार करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुलने के बाद मिल चुके हैं। कुछ समय पहले दो भाई भी करतारपुर साहिब में ही मिले थे। गज्जो उर्फ मुमताज बेगम भी 75 साल बाद अपने भाई गुरमीत सिंह से करतारपुर साहिब में ही मिलीं। गुरमीत करतारपुर साहिब जाते समय अपनी बहन के लिए चांदी के कड़े और सोने की अंगूठी लेकर गए।
पटियाला आना चाहती है गज्जो
गुरमीत सिंह बताते हैं कि गज्जो अपने परिवार के सदस्यों को बहुत याद करती है। वह उनके पास पटियाला आना चाहती है, लेकिन बीच में दीवार बनकर सरहद खड़ी है। गुरमीत के अनुसार, गज्जो उर्फ मुमताज बेगम ने भारत आने के लिए पाकिस्तान में वीजा अप्लाई कर दिया है। उम्मीद है कि एक महीने में प्रोसेस पूरा हो जाने के बाद उनकी बहन बंटवारे के 75 साल बाद अपने घर में अपनों के बीच आकर बैठ सकेगी।
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