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डाउनलोड करेंपंजाब सरकार के एक अजीबोगरीब फैसले से अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना घर चलाना मुश्किल हो गया है। कर्मचारी सुबह घर से खाना लाते हैं, सारा दिन नौकरी करते हैं और महीने बाद खाली हाथ घर को लौट जाते हैं। यह सच्ची दास्तां सिविल सर्जन ऑफिस जालंधर के तहत काम करने वाले करीब ढाई सौ अधिकारियों-कर्मचारियों की है। इनमें खुद सिविल सर्जन भी शामिल है। यह सभी पिछले दो महीनों से बिना वेतन के दिनरात अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
दरअसल, 1984-85 में किन्हीं कारणों के चलते काम से असंतुष्टि जताते हुए स्वास्थ्य विभाग ने एक डॉर को जबरी सेवामुक्त कर दिया था। इसके बाद डॉक्टर ने कोर्ट का रुख कर लिया। करीब दस साल बाद कोर्ट का फैसला डॉक्टर के हक में आया। कोर्ट ने डॉक्टर को दोबारा जॉइन करवाने के आदेश दिए।
डॉक्टर कोर्ट के ऑर्डर लेकर सिविल सर्जन ऑफिस में पहुंचा तो आगे से सिविल सर्जन और स्टाफ ने कहा कि नियमानुसार वह उनकी जॉइनिंग नहीं ले सकते। सर्विस रूल के अनुसार आप काफी लंबे समय से अनुपस्थित रहे हैं तो आपको कोर्ट के आदेश दिखाकर पहले स्वास्थ्य विभाग के सचिव से आज्ञा लेनी होगी, उसके बाद आपकी सिविल सर्जन ऑफिस में जॉइनिंग हो सकती है।
डॉक्टर ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव के पास जाने के बजाय फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन इस बार कोर्ट ने चिकित्सक को कहा कि आपको जॉइनिंग के लिए कोर्ट से आदेश दिए थे, लेकिन आप खुद ही जॉइनिंग करने में असफल रहे हैं। इसके बाद डॉक्टर ने निचली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट ने डॉक्टर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें पिछले सारे सालों का वेतन ब्याज सहित देने के आदेश दिए। साथ ही कोर्ट ने परेशान करने के लिए कॉस्ट भी लगाई। कोर्ट ने कुल 86 लाख के करीब पैसे विभाग को देने के आदेश दिए।
विभाग ने 86 लाख तो दे दिए साथ ही जांच भी बैठा दी
विभाग ने कोर्ट के आदेश पर 86 लाख रुपया तो डॉक्टर को दे दिया, लेकिन साथ ही सरकार ने जिम्मेदारी तय करने के लिए एक जांच भी बैठा दी। जांच विजिलेंस ब्यूरो को सौंपी गई। विजिलेंस ब्यूरों ने अपनी जांच मुकम्मल करके सरकार को भेजी तो उस पर फिर से ऑब्जेक्शन लग गया कि यह फेयर नहीं है। यह जांच जालंधर में विजिलेंस विभाग को फिर से सौंपी गई जिसकी रिपोर्ट पिछले कल सरकार को भेजी गई है।
2019 में लगाई थी सरकार ने रोक
सिविल सर्जन जालंधर डॉक्टर रणजीत सिंह बताया कि वैसे को सभी के साथ अन्याय ही हो रहा है। उन्होंने कहा कि जिन भी अधिकारियों और कर्मचारियों की सैलरी रोकी गई है उनका इसमें कोई कसूर नहीं है। उन्होंने बताया कि सरकार ने साल 2019 में जालंधर के सिविल सर्जन समेत जिले के समूह स्टाफ जिनमें दर्जा चार से लेकर ऊपर तक सारा स्टाफ आ जाता है के वेतन में रोक लगाई हुई है। लेकिन 2019 में सरकार से एक्सटेंशन मांगी गई थी। लेकिन अभी बीते 31 मार्च को एक्सटेंशन खत्म हो गई। जब दोबारा एक्सटेंशन के लिए लिखा तो वित्त विभाग ने उस पर ऑब्जेक्शन लगा दिया कि बार-बार एक्सटेंशन नहीं दी जा सकती। विभाग इसका हल निकाले।
इसके बाद से सभी की सैलरियां रुकी हुई हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों कर्मचारियों ने धरना भी लगाया था वह भी अन्याय के खिलाफ सांकेतिक तौर पर उसमें शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि अब कर्मचारियों के सब्र का प्याला भर चुका है। कड़ी मेहनत के बावजूद वेतन न मिलने से गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। पिछले दो महीने से स्वास्थ्य विभाग जालंधर में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की भी अब आर्थिक हालत खराब हो गई। सिविल सर्जन ने कहा कि सरकार जो जिम्मेदार हैं उनसे रिकवरी करे लेकिन जिनका कोई कसूर ही नहीं है उन्हें क्यों बेवजह परेशान किया जा रहा है।
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