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डाउनलोड करेंसारा देश आजादी का 75वां महोत्सव मना रहा है, वहीं शहर में सर्किट हाऊस के पास अंग्रेजों के जमाने में बना हेड पोस्ट आॅफिस भारत-पाक विभाजन से पहले दिल्ली, मुंबई अौर लाहौर तक एक आने में चिट्ठी पहुंचाता था। पोस्ट आॅफिस से आने वाली रंग बिरंगी अौर फटी चिट्ठी देखकर लोग खुशी अौर गम का पैगाम समझते थे। एक-दूसरे को संदेश भेजने का जरिया तब डाक ही था। वहीं इस हेड पोस्ट आॅफिस की बिल्डिंग आज भी 1947 में देश के हुए बंटवारे की गवाह है। बिल्डिंग की दीवार पर लगी पटि्टका पर सारा विवरण दर्ज है।
पोस्टकार्डों पर लगाए जाते थे रंग ताकि देखने से ही खुशी-गम का पता लग जाए पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रोफेसर दरबारी लाल के अनुसार अंग्रेजों ने जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर लिखित मैसेज भेजने के लिए इंडियन पोस्टल सिस्टम शुरू किया तो दिल्ली, मुबंई से लेकर लाहौर तक एक आने में चिट्ठी भेजी जाती रही थी। लोगों को समझाने के लिए खुशी में चिट्टी पर हलदी अौर गमी में चिट्ठी थोड़ी फाड़कर भेजी जाती थी। हलदी लगी चिट्ठी देखकर लोग समझ जाते थे खुशी का पैगाम आया है। वह दूसरे गांवों में जाकर बाबुअों से चिट्ठी पढ़वा लेते थे। वहीं फटी चिट्ठी को देखकर रोने लगते थे।
दिसंबर 1925 को तैयार हुई हेड ऑफिस की नई बिल्डिंग बता दें कि अंग्रेजों ने 1894 में सब पोस्ट आॅफिस को अपग्रेड करके हेड पोस्ट ऑफिस बनाया था। वहीं वर्तमान बिल्डिंग दिसंबर 1925 को तैयार हुई और हेड पोस्ट आॅफिस काे मार्च 1926 में शिफ्ट किया गया। विभाजन के बाद एक जनवरी 1947 को एचके बासू बतौर सीनियर पोस्ट मास्टर पद पर तैनात हुए। वहीं 15 फरवरी 1993 को सरकार ने हेड पोस्ट ऑफिस की बिल्डिंग को हेरिटेज का दर्जा दे दिया।
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