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डाउनलोड करेंसतना जिले के प्रमुख धार्मिक स्थान चित्रकूट में सोमवार को सोमवती अमावस्या की शुरुआत होने पर जमकर भीड़ उमड़ी। श्रद्धालुओं ने मंदाकिनी में स्नान कर चित्रकूट के अधिनायक भगवान मतगजेंद्रनाथ शिव के दर्शन किए। इसके अलावा भगवान कामदगिरी की परिक्रमा कर मनोकामना पूरी करने की कामना की।
कुशग्रहनी सोमवती अमावस्या 6 सितंबर को और स्नान दान अमावस्या 7 सितंबर को मनाई जाएगी। भाद्रपद में पड़ने वाली इस अमावस्या का विशेष महत्व है। इसे पिठौरा अमावस्या के नाम से भी जाना जाता हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अमावस्या का समय 6 सितंबर शाम 7:40 बजे से 7 सितंबर शाम 6:23 बजे तक रहेगा। इसके कारण चित्रकूट में लाखों की संख्या में भक्त मौजूद हैं। भारी भीड़ के बावजूद जिला प्रशासन और मेला समिति के ऑफिस में ताला लगा हुआ है, जो चिंता का विषय है।
लापरवाही पड़ चुकी है भारी
सोमवती अमावस्या में परिजनों को खोजने और परिक्रमा क्षेत्र की व्यवस्था के लिए बनाए गए मेला कंट्रोल रूम में ताला लगा हुआ है। इसका बन्द होना प्रशासन की लापरवाही दर्शाता है। प्रशासन को बखूबी पता है कि यहां लाखों से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होते हैं। 2014 में भारी भीड़ के कारण यहां भगदड़ मच गई थी। जिसके कारण प्राचीन मुखारविंद के पास 10 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और 3 दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इतना कुछ होने के बाद भी सरकार लापरवाही कर रही है।
इसलिए खास है सोमवती अमावस्या
सोमवती अमावस्या या भाद्रपद अमावस्या को इसलिए खास माना जाता है क्योंकि इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा यानी घास इकट्ठी की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह पुण्य फलदायी होती है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियां संतान प्राप्ति और अपनी संतान के कुशल मंगल के लिए उपवास रखती हैं और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस दिन सिर्फ महिलाएं और माताएं ही व्रत रख सकती हैं, कुंवारी कन्याएं व्रत नहीं रखती। पूजा के लिए गुजिया, शक्कर पारे, गुज के पारे और मठरी बनाएं जाते है और देवी देवताओं को उनका भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद आटे से देवी-देवताओं को बनाया जाता है और उनकी आरती उतारी जाती है। अमावस्या की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं और अपने पितरों को याद कर पीपल की सात परिक्रमा करते हैं। अमावस्या को शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना आवश्यक होती है। कालसर्प दोष निवारण के लिए भी पूजा-अर्चना भी की जाती है।
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