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डाउनलोड करेंअंग्रेज पुलिस गोलियां चला रही थी… डरे हुए आंदोलनकारी जमीन पर लेटे हुए थे। इतने में लाल पद्मधर सिंह ने देखा कि तिरंगा गिरने वाला है। वो तेजी से उठे। तिरंगा थामा और आगे बढ़ने लगे। पुलिस ने आव देखा ना ताव सीधे गोली सीने में उतार दी। शहीद हो गए, लेकिन तिरंगा नहीं झुकने दिया। आज आजादी के गुमनाम नायक और अनसुनी कहानियां में सतना के क्रांतिकारी लाल पद्मधर सिंह के बलिदान की कहानी।
2 अगस्त 1942, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
देश में भारत छोड़ो आंदोलन शबाब पर था। आंदोलन की गूंज इलाहाबाद विश्वविद्यालय तक पहुंच चुकी थी। देशप्रेमी छात्रों ने तय किया कि हम भी अंग्रेज सरकार के खिलाफ जुलूस निकालकर तिरंगा फहराएंगे। इसके लिए दिन तय हुआ 12 अगस्त 1942।
जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं लड़कियां
सतना के लाल पद्मधर सिंह आए तो पढ़ने के लिए थे, लेकिन आजादी का स्वाद लेने के चक्कर में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। जुलूस निकालने के एक दिन पहले सभी छात्रों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आमसभा की। इसमें तय किया कि अगले दिन होने वाले आंदोलन का नेतृत्व लड़कियां करेंगी।
तय हुआ कि जुलूस के बाद फहराएंगे तिरंगा
यह भी तय हुआ कि यूनिवर्सिटी से कचहरी परिसर तक जुलूस की लीडरशिप नयनतारा सहगल करेंगी। जुलूस जहां समाप्त होगा वहां आंदोलनकारी छात्रों का समूह तिरंगा फहराएगा। आपको बता दें कि नयनतारा सहगल विजय लक्ष्मी पंडित की बेटी व पंडित जवाहर लाल नेहरू की भांजी थीं।
जासूसों ने अंग्रेजों को कर दी खबर
जासूसों ने इस आमसभा की खबर अंग्रेज सरकार को दे दी। अगले दिन धारा 144 लागू कर दी गई। फिर भी 12 अगस्त की सुबह जुलूस शुरू हुआ। नयनतारा झंडा लेकर आगे चल रही थीं। उनके बगल से लाल पद्मधर सिंह छात्रों को कंट्रोल करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
आगे बढ़े तो खानी पड़ेगी गोली
थोड़ी दूर जुलूस बढ़ा ही था कि पुलिस ने जुलूस को रोक दिया। इस बीच पुलिस और छात्रों में नोकझोंक हुई, लेकिन जुलूस बढ़ता गया। पुलिस की सांसें तब फूलीं जब जुलूस कचहरी के पास पहुंचने लगा। पुलिस ने आंदोलनकारियों को चेतावनी दी कि यदि अब एक इंच भी आगे बढ़े तो गोली खानी पड़ेगी।
असामाजिक तत्वों ने कर दी पत्थरबाजी
अंग्रेजों ने छात्रों के जुलूस के बीच कुछ असामाजिक तत्वों को घुसा रखा था। इनमें से ही कुछ ने पुलिस पर पथराव कर दिया। अंग्रेज अपनी चाल में कामयाब रहे और उन्होंने बिना किसी वॉर्निंग के फायरिंग शुरू कर दी। हालात बिगड़ते देख ज्यादातर छात्र जमीन पर लेट गए।
लाल ने जमीन पर नहीं गिरने दिया तिरंगा
नयनतारा सहगल भी गोलियों से बचने के लिए तिरंगे समेत जमीन पर लेटने लगीं। सुरक्षा देने के लिए लाल पद्मधर सिंह साए की तरह नयनतारा के पीछे ही चल रहे थे। जैसे ही लाल पद्मधर सिंह ने देखा कि तिरंगा नीचे गिर रहा है। बरसती गोलियों के बीच लाल पद्मधर ने दौड़ कर नयनतारा से तिरंगा अपने हाथ में ले लिया।
सीना तान के खड़े हो गए, बोले-अब गोली मारो
गोलियां चलना बंद हुईं, जुलूस बढ़ने लगा और अब नेतृत्व लाल पद्मधर सिंह के हाथ में आ गया। जब जुलूस मनमोहन पार्क के पास पहुंचा तो फिर सख्त चेतावनी दी गई कि अगर आगे बढ़ोगे तो गोलियों से भून दिए जाओगे। तब लाल पद्मधर ने कहा ‘मारो देखते हैं कि कितनी गोलियां फिरंगियों की बंदूकों में हैं। उसी समय एक गोली लाल पद्मधर के सीने का चीरते हुए निकल गई।
गोली लगने के बाद भी झंडा नहीं छोड़ा
घायल पद्मधर को साथी मनमोहन पार्क के पास स्थित पीपल पेड़ के नीचे ले गए, जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उस दौरान स्थिति बेकाबू हो गईं। आंदोलनकारी और भड़क गए थे। चारों तरफ भगदड़ मच गई। गोली लगने के बाद भी लाल पद्मधर सिंह ने हाथ से झंडा नहीं छोड़ा था। शहीद लाल पद्मधर सिंह का हौसला देख जुलूस आगे बढ़ता ही चला गया। अंत में आंदोलनकारियों ने कचहरी में जाकर झंडा फहराया।
चार भाइयों में सबसे छोटे थे शहीद लाल पद्मधर सिंह
पद्मधर सिंह के भतीजे देवेन्द्र सिंह भारतीय सेना से ब्रिगेडियर पद से रिटायर हुए हैं। वे बताते हैं कि लाल पद्मधर का जन्म 14 अगस्त 1914 को सतना के समीप कृपालपुर गांव में हुआ। उस समय यह क्षेत्र रीवा जिले में आता था। सबसे बड़े भाई का नाम लाल गदाधर सिंह, दूसरे नंबर के लाल चक्रधर सिंह, तीसरे नंबर के शंखधर सिंह और शहीद लाल पद्मधर सिंह सबसे छोटे थे। उनकी आठवीं तक की पढ़ाई माधवगढ़ के सरकारी स्कूल से हुई।
हाई स्कूल के प्रिंसिपल को मार दी गोली
लाल पद्मधर सिंह जुल्म बर्दाश्त करने वाले लोगों में से नहीं थे। इसकी एक बानगी रीवा के सरकारी स्कूल में पता चलती है, जब वे हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए वहां पहुंचे थे। एक बार स्कूल की फिजिक्स के लैब से प्रिज्म चोरी हो गया था। बिना जाने इसका आरोप लाल पद्मधर पर लगा दिया। इसके बाद प्रिंसिपल उनके कमरे में पहुंचे और तलाशी लेने लगे, लेकिन उन्हें प्रिज्म नहीं मिला। इस घटना से लाल इतने व्यथित हुए कि उन्होंने कमरे में रखी 12 बोर की बंदूक उठाई और प्रिंसिपल को गोली मारी दी। गनीमत रही कि गोली प्रिंसिपल के पैर में लगी और वो घायल हो गए।
7 वर्ष की मिली सजा, 3 वर्ष में जेल से बाहर आ गए
इसके बाद पुलिस प्रिंसिपल को गोली मारने के अपराध में 7 वर्ष की सजा सुना दी। लाल के अच्छे आचरण की वजह से उन्हें तीन साल में ही रिहा कर दिया गया। उन्होंने जेल में रहकर ही 10वीं की परीक्षा पास की। इसके बाद दरबार इंटर कॉलेज रीवा में दाखिला लिया। यहां से हायर सेकंडरी की पढ़ाई पूरी कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए और यही उनकी शहादत हुई।
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