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डाउनलोड करेंचंबल के बीहड़ में महिला डकैतों का भी आतंक रहा है। फूलन देवी के बाद दूसरा सबसे बड़ा नाम सीमा परिहार का लिया जाता है। एक वक्त था, जब मध्यप्रदेश के भिंड और उत्तर प्रदेश के इटावा, औरैया क्षेत्रों में लोग सीमा परिहार के नाम से थर-थर कांपते थे। आम लोगों को तो छोड़िए बड़े-बड़े डाकू और पुलिस भी उसके नाम से खौफ खाती थी। आज आपको सीमा परिहार की कहानी बताएंगे। कैसे 13 साल की उम्र की बच्ची को अगवा कर उससे 3 साल तक रेप किया गया।
सीमा ने बख्श देने की गुहार लगाई। पिता के जरिए पुलिस से मदद मांगी, लेकिन जब किसी ने नहीं सुनी तो उसने बंदूक उठा ली। अपने ऊपर हुए सितम का बदला उसने 77 हत्याएं करके लिया। दैनिक भास्कर ने सीमा परिहार को अगवा करने से लेकर बदला लेने तक के घटनाक्रम पर बातचीत की। सीमा ने बताया कि उस पर 2 मुकदमे अभी चल रहे हैं। मुकदमे खत्म हाेने के सवाल पर बोली- जब सरकार के कागज और स्याही खत्म हो जाएंगे, तब मुकदमे भी खत्म हो जाएंगे।
6 लाख एकड़ में फैले चंबल के बीहड़ों की रानी बनने की कहानी...
सीमा कहती है, बात 1983 की एक रात की है। भिंड से सटे यूपी के औरैया जिले के बबाइन गांव में हमारा एक जर्जर मकान था। इसमें हम 4 बहन और 2 भाई अपने मां-बाप के साथ सो रहे थे। तेज बारिश होने लगी। बिजली गिरने के साथ गोलियां भी चलने लगीं। गोलियों की आवाज सुनकर हम सभी घबरा गए। अचानक मकान का दरवाजा टूटा और हथियारों से लैस एक औरत समेत 10 लोग गालियां देते हुए अंदर घुस आए। मुझे अगवा कर चंबल के बीहड़ की तरफ ले गए। उस समय मेरी उम्र 13 साल थी।
रातभर पैदल चलाकर मुझे बीहड़ में ले जाया गया। मैं रास्तेभर वह रोती रही। गिड़गिड़ाती रही कि मेरे बाबा के पास उन्हें (डकैतों) को देने के लिए कुछ नहीं है। बीहड़ पहुंची तो पता चला कि मुझे चंबल के कुख्यात डकैत लालाराम, उसकी गैंग के श्रीराम, सुरेश लोधी और सुषमा नाइन ने अगवा किया है।
डकैत ने कहा कि भागे तो गोली मार देना
सीमा ने बताया- अपहरण के बाद 3 साल तक की जिंदगी जहन्नुम जैसी थी। मुझे भरोसा था कि मेरे पिता पुलिस की मदद से मुझे छुड़ा लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिता थाने गए तो पुलिस ने ये कहते हुए दुत्कार दिया कि 'निकल यहां से, तेरी-बेटी किसी के साथ भाग गई होगी। सीमा ने आगे बताया कि मैंने डकैतों के चंगुल से भागने की कोशिश की, लेकिन हर बार पकड़ी गई। गिरोह के सरगना लालाराम का आदेश था कि ये भागे तो गोली मार देना। मरने के डर से मैं जुल्म बर्दाश्त करती रही।
नाम सुनकर अटैक से मर गया था सरपंच
पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा का कहना है कि 3 साल में गिरोह के सरगना लालाराम का भरोसा जीत चुकी थी। फिर मैंने अगवा करने का कारण पूछा तो लालाराम ने बताया कि सेंगर ठाकुरों के कहने पर अगवा किया गया था। बबाइन गांव में मेरे परिहार के परिवार को छोड़कर सभी सेंगर ठाकुर थे।
मेरा परिवार काफी गरीब था। बकरी पालकर गुजारा करता था। मैं 2 बहनों में छोटी थी। उस समय गांव के सरपंच गंभीर सिंह थे। उन्होंने मेरे पिता को प्रस्ताव दिया कि वह अपनी चारों बेटियों की शादी गांव के 4 सेंगर लड़कों से करा दे। इसके बदले में वे घर और जमीन देंगे। गरीब पिता ने अपनी बेटियों का सौदा करने से मना कर दिया। इसी का बदला गंभीर सिंह ने डाकुओं से मिलकर लिया था। डकैत बनने के बाद मैंने इन्हीं सेंगर ठाकुरों से बदला लिया। उसने सबसे अधिक अपहरण और फिरौती सेंगर ठाकुरों से वसूली। हत्याएं और लूट भी सेंगर ठाकुरों के साथ की।
सीमा कहती हैं, हालत ये हो गई थी कि सेंगर ठाकुरों ने शाम होने के बाद घर से निकलना तक बंद कर दिया। गंभीर सिंह हमारा नाम सुनकर मर गया। किसी ने कहा दिया कि उनकी (पिता का नाम लिया) लड़की आ रही है, उसे अटैक पड़ा, खून की उलटी हुई और मर गए।
घरवालों की गिरफ्तारी सुनकर 16 साल की उम्र में उठा ली बंदूक
सीमा ने बताया, मुझे बीहड़ के बाहर की दुनिया को कुछ पता नहीं था। 3 साल से चंबल का बीहड़ ही जिंदगी थी। डकैत लालाराम और उसकी गैंग ने सीमा को अगवा करने के बाद जो भी अपहरण या हत्याएं की, पुलिस ने उन सभी में सीमा को आरोपी बना दिया। पुलिस रिकॉर्ड में वह अब डकैत बन गई थी। पुलिस गिरोह तक तो नहीं पहुंची, लेकिन सीमा के पिता और घरवालों को गिरफ्तार कर जेल में पहुंचा दिया। जर्जर घर की कुर्की तक करा दी। यह 1986 की बात है। एक दिन बीहड़ में सीमा को पड़ोस के गांव का एक लड़का मिला। उस लड़के ने बताया कि पुलिस ने क्या-क्या किया है। इसके बाद 16 साल की उम्र में फूलन देवी के बाद चंबल की दूसरी सबसे खूंखार डकैत सीमा परिहार का जन्म होता है।
लालाराम के बाद गैंग को संभालने लगी सीमा
अपने अतीत और पुलिस के रवैए ने मासूम सी सीमा परिहार को ज्वालामुखी बना दिया था। बिना जुर्म किए अपराधी बनाने से नाराज सीमा ने अपराध का रास्ता चुन लिया। सीमा कहती हैं, बंदूक उठाने के बाद मैं लगातार लूट, अपहरण, हत्याएं करने लगी। लालाराम के बाद गैंग का दूसरा बड़ा चेहरा बन गई। लगातार खौफनाक वारदात को अंजाम देने लगी।
बीहड़ में गुजारा करने के लिए पैसे चाहिए और पैसों का जरिया था अपहरण कर फिरौती वसूलना। मैंने भी यही किया। रसूखदारों और पैसों वालों के बच्चों, पत्नियों को अगवा करती और फिरौती वसूलती। ये वो दौर था, जब चंबल में डकैतों का कानून बदल चुका था। अब फिरौती न मिलने पर अगवा किए व्यक्ति की हत्या कर दी जाती थी। अखबार के पन्ने सीमा परिहार के जुर्म की स्याही से भरने लगे। सीमा पर 200 अपहरण के अलावा 70 हत्याएं और 30 से अधिक लूट के केस दर्ज हुए थे।
पुलिस से मुकाबला करने थानों से हथियार लूटने लगी
लालाराम कठपुतली बन चुका था। अब गैंग का कंट्रोल सीमा परिहार के हाथ में था। चंबल में जीने के लिए हमेशा नए और अच्छे हथियार की जरूरत होती थी, जो सीमा की गैंग के पास नहीं थे। वो जो भी हथियार खरीदती, वो पुलिस मुठभेड़ में दगा दे जाते थे। इसके बाद उसने पुलिस के हथियार छीनना शुरू कर दिए। सीमा ने बताया कि उसकी गैंग दिनदहाड़े किसी थाने में घुस कर हथियार और कारतूस लूट लेती थी। इस पैंतरे से हमारा टेरर और बढ़ गया। पुलिसवालों को मारकर हथियार छीनकर मारने से वह और ज्यादा कुख्यात हो गई थी। पूरे चंबल में सीमा की तूती बोलने लगी थी। बड़े-बड़े डाकू उसकी इज्जत करने लगे थे। माथे पर काला टीका, सिर पर लालपट्टी बांधे और बागी की वर्दी पहनने वाली सीमा के जुर्म की चर्चाएं विदेशों तक में होने लगी थीं।
शादी की, निर्भय से धोखा मिलने पर उसे गैंग से निकाला
सीमा परिहार ने बताया कि 1987 के आसपास लालाराम गैंग में औरैया के रहने वाले निर्भय गुर्जर की एंट्री हुई। छोटी-मोटी चोरियों के साथ उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा था। एक डकैती में पकड़ा गया और पुलिस के हत्थे चढ़ा। यहां से छूटने के बाद उसने चंबल की शरण ली और लालाराम गैंग में शामिल हो गया। निर्भय गुर्जर डकैतों में सबसे अय्याश था। सीमा कहती है, निर्भय ने मेरे अलावा पांच-छह शादियां की थीं। निर्भय और सीमा एक-दूसरे के करीब आ गए।
सीमा कहती है कि फक्कड़ बाबा का आदेश था कि कोई कुंवारी डाकू गैंग में नहीं रह सकती है। इस कारण अपने से जूनियर निर्भय से शादी की थी। वह लूटपाट करने जाता तो लड़कियों के साथ रेप भी कर देता। इसकी शिकायत सीमा तक पहुंची तो उसने निर्भय से नाता तोड़ लिया और उसे 1995 में गिरोह से निकाल दिया। इसके बाद निर्भय ने अपनी गैंग बनाई थी। सीमा को मिला धोखा और निर्भय के साथ उसकी लव स्टोरी उस दौर में बीहड़ों में चर्चा का विषय होती थी।
बेटे की ममता ने बीहड़ से निकाला, सामान्य जीवन में आई
1997 में सीमा परिहार ने लालाराम से दूसरी शादी की। लालाराम ने ही सीमा को 13 साल की उम्र में अगवा किया था। दोनों की उम्र में दोगुना अंतर था। 1999 में लालाराम से सीमा को एक बेटा हुआ, पर लालाराम बेटे का सुख ज्यादा दिन तक नहीं भोग पाया। 2000 में पुलिस ने उसे एनकाउंटर में मार दिया। सीमा ने बताया कि वो बीहड़ में बेटे के साथ अकेली रह गई थी। पुलिस लगातार सीमा को ढूंढ रही थी।
10 महीने के बेटे को लेकर सीमा यहां-वहां भागती रही। चार-चार दिन तक उसे खाना नसीब नहीं होता था। चार-पांच महीने इसी तरह गुजर गए। इसके बाद सीमा ने बड़े भाई के जरिए पुलिस से संपर्क किया। आत्म समर्पण की शर्त रखी। तय हुआ कि सीमा को आत्म समर्पण करने पर नौकरी, घर के लिए जमीन और बंदूक का लाइसेंस दिया जाएगा। उस पर दर्ज मुकदमों में भी ढील दी जाएगी।
तीन साल, 3 महीने रही जेल में, 29 मुकदमों का किया सामना
वर्ष 2000 में ही सीमा परिहार ने आत्म समर्पण कर दिया। हालांकि, शर्त पूरी नहीं की गई। उसे जेल भेज दिया गया। तीन साल तीन महीने तक वह जेल में रही। शुरुआत में 6 महीने तक बेटा भी जेल में रहा। बाद में उसे सीमा के भाई के पास भेज दिया गया। जेल में भी सीमा परिहार का जलवा था। वो जेल में ही पार्टी करती थी।
जेल में रहते हुए राजनीति से जुड़ने के लिए कई पार्टियों से सीमा के पास ऑफर आए। साल 2002 के विधानसभा चुनावों में उसने शिव सेना का समर्थन किया। साल 2006 में इंडियन जस्टिस पार्टी जॉइन कर ली। 2007 में इसी पार्टी से भदोही लोकसभा सीट उपचुनाव लड़ा, लेकिन हार गई। इसके बाद साल 2008 में सपा में शामिल हो गई। सपा में शामिल होते ही 15 आपराधिक मामलों में उसे बरी कर दिया गया। 14 मुकदमों में जमानत मिल गई। साल 2011 में सीमा को राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन परिषद के महिला आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया।
खुद पर बनी फिल्म में मुख्य किरदार निभाया, बिग बॉस में भी गई
जेल से निकलने के 3 साल बाद, साल 2007 में सीमा पर डायरेक्टर कृष्णा मिश्रा ने वाउंडेड नाम से फिल्म बनाई थी। इसमें मुख्य किरदार सीमा ने निभाया था। फिल्म में अभिनय के लिए उसने विशेष अनुमति ली थी, क्योंकि कुछ मुकदमे चल रहे थे। डाकू निर्भय सिंह ने बीहड़ में फिल्म की शूटिंग पर धमकी दी थी कि फिल्म में सीमा की दूसरी शादी दिखाई गई तो रिलीज नहीं होने दी जाएगी।हालांकि, फिल्म रिलीज हुई।
तीन साल बाद 2010 में सीमा को रियलिटी शो बिग बॉस के सीजन 4 में आने का न्योता मिला। सीमा ने बिग बॉस में आने के बाद भी खूब सुर्खियां बंटोरी थीं। कभी बीहड़ में सालों गुजारने वाली सीमा अपने 23 साल के बेटे के साथ अब सामान्य जीवन जी रही है, लेकिन उसकी जिंदगी के घाव अभी भी दर्द देते हैं। एक भाई राम कुमार को पुलिस ने एनकाउंटर में पहले ही मार दिया था। दूसरे भाई रामवीर उपाध्याय को कुछ दिन पहले ही पुलिस ने 23 साल पुराने प्रकरण में गिरफ्तार किया है। अब भी सीमा परिहार को दो मुकदमों में कोर्ट--कचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
कभी सोचा नहीं था कि जिंदा बचूंगी
सीमा परिहार कहती हैं कि मेरा बेटा बीएससी की पढ़ाई पूरी कर चुका है। परिस्थितियों के चलते इस बार आगे की पढ़ाई नहीं करा पाई। मैं तो मुकदमा लड़ते-लड़ते परेशान हो चुकी हूं। अब भी दो मुकदमों की पेशी में परेशान हूं। मेरा एक भाई जेल चला गया। उसकी फाइल ढूंढने में परेशान हूं। मेरे छोटे भाई रामवीर उपाध्याय को पुलिस ने 23 साल पुराने प्रकरण में गिरफ्तार कर लिया, जबकि कभी इस मामले में वारंट तक नहीं आया था। चंबल की जिंदगी मजबूरी वाली थी। जब चंबल में थी तो ये ख्वाब नहीं देखा था कि कभी जिंदा बचूंगी। मैं तो खुद कई सालों तक उस बीहड़ से निकलना चाहती थी, पर क्या करें, किस्मत ने शायद मेरे नसीब में डकैत बनना लिखा था।
सरकार के कागज-स्याही जब खत्म हो जाएंगे, तब हम बरी हो जाएंगे
अब भी संघर्ष झेल रही हूं। खाने वाले 10 लोग हैं। कमाने वाला कोई नहीं है। भगवान की मर्जी है। पता नहीं कब तक चलेगा। हम तो ये कह देते हैं कि सरकार के कागज-स्याही जब खत्म हो जाएंगे, तब हम बरी हो जाएंगे। अभी कागज बढ़ते जा रहे हैं। फाइलें मोटी होती जा रही हैं। डकैत की जिंदगी में जो भी अपराध हुए, उस पर अब अफसोस होता है। मुझे तो अपराधी बनाया गया।
मेरे पिता की जन्मभूमि पंचनदा बिठौली में थी। वहां से हम बबाइन गांव में आकर बस गए थे। मेरी जिंदगी एक खुली किताब की तरह है। मैंने कभी अपने अतीत को नहीं छिपाया। बिग बॉस में जाकर मुझे बहुत सी चीजें सीखने को मिली। वहां पता चला कि दुनिया में मेरे कितने चाहने वाले हैं। देश के साथ विदेशों में भी मेरे चाहने वाले हैं।
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