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डाउनलोड करेंनवीन कुमार (परिवर्तित नाम) को सर्दी-खांसी हुई। उन्होंने 13 जनवरी को भोपाल के जेपी अस्पताल में RTPCR जांच के लिए सैंपल दिया। SFR ID नंबर तुरंत मोबाइल पर आ गया, लेकिन 48 घंटे बाद भी रिपोर्ट नहीं आई। जब उन्होंने अस्पताल में संपर्क किया, तो संतोषजनक जवाब नहीं मिला। वे रिपोर्ट के लिए भटकते रहे। 16 जनवरी को दोपहर में उनके मोबाइल पर कोरोना पॉजिटिव होने का मैसेज आया। ये स्थिति प्रदेश की राजधानी भोपाल की है, जहां कोरोना के इलाज से लेकर जांच की व्यवस्था बेहतर होने का दावा किया जाता है।
जबलपुर के रहने वाले 45 वर्षीय संतोष कुमार (परिवर्तित नाम) गुजरात में काम करते हैं। वह कुछ दिन पहले घर आए थे। उनको अपनी पत्नी के साथ वापस गुजरात जाना था। लौटने से पहले 12 जनवरी को RTPCR जांच के लिए सैंपल दिया। उनको जानकारी थी कि पॉजिटिव होने पर 24 घंटे में रिपोर्ट आ जाती है। रिपोर्ट नहीं आने पर उन्होंने 15 जनवरी का गुजरात जाने के लिए ट्रेन से टिकट कराया और चले गए। जब गुजरात पहुंच गए, तो 16 जनवरी को पॉजिटिव होने का मैसेज आया।
बैतूल, राजगढ़ जैसे दूसरे जिलों की स्थिति तो और भी खराब है। यहां पर जांच रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन का समय लग रहा है। यहां से सैंपल भोपाल जांच के लिए भेजे जाते हैं। बैतूल जिले में 13 रिपोर्ट पेंडिंग है। यहां रिपोर्ट आने में 48 घंटे से चार दिन का समय लग रहा है।
दावा- 78 हजार RTPCR की रोज जांच
मध्यप्रदेश में यह स्थिति तब है, जबकि निजी और सरकारी लैब को मिलाकर करीब 78 हजार RTPCR जांच प्रतिदिन करने की क्षमता होने का दावा किया जा रहा है। प्रदेश में होने वाली कुल जांच में 10 से 15% रैपिड एंटीजन से की जा रही हैं। यानी यह स्थिति तब है, जबकि RTPCR जांच भी पूरी क्षमता से नहीं की जा रही है।
तकनीकी खामी और ज्यादा सैंपल से देरी
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि रिपोर्ट पेंडिंग होने का कारण मेडिकल कॉलेजों की लैब में जांच क्षमता से ज्यादा सैंपल आना है। वहीं, दूसरा कारण ICMR के रिपोर्ट अपलोड करने वाले पोर्टल की तकनीकी खामी भी है। कई बार पोर्टल का सर्वर डाउन हो जाता है। ऐसे में रिपोर्ट अपलोड नहीं हो पाती। रिपोर्ट का मैसेज नहीं जाता। वहीं, दूसरे जिलों से जांच के लिए आने वाले सैंपल के ट्रांसपोर्टेशन में भी समय लगता है।
एम्स में क्षमता ज्यादा, फिर भी जांच नहीं
भोपाल के एम्स अस्पताल में कोरोना जांच के लिए एक हजार की क्षमता है, लेकिन यहां 50 लोगों की भी जांच नहीं की जा रही है। रविवार को यहां सिर्फ 32 लोगों के सैंपल लिए गए। यह स्थिति यहां रोजाना रहती है। खास बात ये है कि यहां कोरोना जांच के लिए दोपहर में ढाई बजे तक ही सैंपल लिए जाते हैं।
जिम्मेदार बोले- कारण का पता लगवाते हैं
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त डॉ. सुदाम खाड़े ने कहा कि दूसरे जिलों में रिपोर्ट देरी से मिलने का कारण ट्रांसपोर्टेशन में लेटलतीफी हो सकती है। वहीं, मैसेज देरी से आने के संबंध में उन्होंने पता लगाने की बात कही।
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