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डाउनलोड करेंसिवनी के सिमरिया गांव में गोहत्या के आरोप में 2 आदिवासियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कहा था कि प्रथम दृष्टया लग रहा है कि मृतकों के पास से बरामद मांस गाय का ही था। ऐसे में सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि क्या आदिवासी गोमांस खाने लगे हैं। दैनिक भास्कर ने आदिवासी नेताओं से बात की। जानिए किसने क्या कहा....
इससे पहले ये जान लीजिए कि जिस सिवनी जिले में ये मॉब लिंचिंग हुई, वहां सबसे ज्यादा गो तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। सिवनी में बीते 4 साल में 430 से ज्यादा गो तस्करी, हत्या जैसी घटनाएं सामने आई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि नेशनल हाईवे और महाराष्ट्र बॉर्डर नजदीक होने के कारण सिवनी गो तस्करी का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। इसके पीछे कौन लोग काम कर रहे हैं, सीधे तौर पर उनका नाम सामने नहीं आ सका है।
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मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद की उपाध्यक्ष संदेश सैय्याम कहती हैं कि हमारी कौम को नीचा दिखाने के लिए ये साजिश रची जा रही है। आदिवासी संस्कृति ये है कि हमें प्रकृति के जीव जंतु की रक्षा करनी है। हमारे यहां कुंभरे सरनेम होता है, वो बकरी की भी पूजा करते हैं।
गोवर्धन पूजा के दौरान सूप में भोजन निकालकर हम पहले गाय को खिलाते हैं। फिर प्रसाद स्वरूप जूठा खाते हैं। पोला में हम बैलों की पूजा करते हैं। फिर हम पर कैसे आरोप लगा सकते हैं कि आदिवासी गोमांस खाते हैं। आदिवासियों की मौत इतनी सस्ती नहीं है।
गोंडवाना गोंड महासभा की महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासन उइके कहती हैं कि 750 जानवरों और पेड़ पौधों की हम पूजा करते हैं। हमें ये पता लगा कि गोमांस की तस्करी के आरोप में ये हत्या हुई है। हम गाय की पूजा करते हैं। हम टोटम व्यवस्था वाले हैं। गो सेवा करते हैं। हम इस बात का खंडन करते हैं कि आदिवासी गोमांस खा रहे हैं।
दिनेश धुर्वे कहते हैं कि ऐसा कहना ठीक नहीं है। आदिवासी जिस गोवंश की पूजा करते हैं, उसकी हत्या कैसे कर सकते हैं।
जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के प्रवक्ता अंशुल मरकाम कहते हैं कि ये सब फेब्रिकेटेड नरेटिव बनाने की कोशिश है। हम तो शंभू गौरा की पूजा करते हैं, हम नंदी की पूजा करते हैं। हम बड़ा महादेव की पूजा करते हैं। प्राचीनकाल से ये पूजा कर रहे हैं। फिर गो वध की कैसे सोच सकते हैं?
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