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नई किस्में बढ़ाएंगी पैदावार:MP के सबसे बड़े कृषि विवि ने विकसित की गेहूं-धान-रामतिल-जई की किस्में, कम पानी में देंगी ज्यादा उत्पादन

जबलपुरएक वर्ष पहले
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मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने गेहूं, धान, रामतिल, जई की 8 किस्मों को विकसित किया है। ये किस्में रोग प्रतिरोधी हैं और कम सिंचित वाले क्षेत्रों में भी आसानी से इनकी फसल हो सकेगी। 120 से 125 दिनों में ये फसलें होंगी। विश्वविद्यालय की इन 8 नई किस्मों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने भी अधिसूचित कर दिया है। अब इसे ब्रीडर योजना के तहत बीज उत्पादन वाली इकाइयों को दिया जाएगा। भास्कर खेती किसानी सीरीज-43 में आइए एक्सपर्ट जीके कौतू (डायरेक्टर,अनुसंधान सेवाएं JNKV) से इन नई किस्मों के बारे में जानते हैं…

जीके कौतू के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अनाज की 8 नई किस्में विकसित की हैं। इनमें से दो किस्में अधिक न्यूट्रीशन वाली हैं। जबकि 4 किस्में सिर्फ MP को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं। आदिवासियों के लिए लाभ की फसल माने जाने वाली रामतिल की तीन किस्मों को विकसित किया गया है। एक नेशनल किस्म है, तो दो किस्में मप्र और छत्तीसगढ़ को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं।

कृषि वैज्ञानिकों ने जई की दो किस्में विकसित की हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने जई की दो किस्में विकसित की हैं।

पशु चारे के तौर पर जई

JO10-506: उड़ीसा, बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी, असम, मणिपुर राज्यों के लिए ये उपयुक्त है। हरा चारा और बीजों के लिए इसकी बुआई कर सकेंगे। 90 से 100 दिन हरा चारा के रूप में प्रयोग करें। 225 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा का उत्पादन होगा। एक कटिंग के बाद छोड़ दें। 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जई भी तैयार हो जाएगी।

JO05-304: मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बुंदेलखंड राज्यों के लिए ये मुफीद होगा। इसकी कटिंग भी 90 से 100 दिन में कर सकते हें। पहली कटिंग 55 से 60 दिन में कर पाएंगे। हरा चारा प्रति हेक्टेयर 560 से 600 क्विंटल प्राप्त कर सकते हैं। इसे खिलाने से पशु दुग्ध उत्पादन और फैट दोनों बढ़कर मिलेगा।

गेहूं की दो किस्में विकसित की गई है।
गेहूं की दो किस्में विकसित की गई है।

गेहूं की दो किस्मों का विकास किया

MP 1323- पूरे प्रदेश में इसकी बुआई हो सकेगी। उत्तम उपज, रोग प्रतिरोधक, अधिक प्रोटीन होगा। औसत पैदावार 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगी। 125 दिन में ये तैयार हो जाएगा।

MP 1358- अधिक उपज प्राप्त होगी। औसत पैदावार 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगी। इसमें प्रोटीन 12% से अधिक होगा। आयरन की मात्रा 406 PPM होगी। गेहूं की ये फसल भी 125 से 130 दिन में तैयार हो जाएगी।

धान की नई किस्म से किसानों को फायदा होगा।
धान की नई किस्म से किसानों को फायदा होगा।

धान की एक किस्म

JR10: कम सिंचाई में अधिक उपज किसान प्राप्त कर सकेंगे। पूरे एमपी में इसकी रोपाई कर सकेंगे। इसके चावल पतले और सुगंधित होंगे। 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा। 120 दिन में ये धान तैयार हो जाएगा।

रामतिल की तीन किस्में

JNS 521: असिंचित और सिंचित दोनों क्षेत्रों में खरीफ और रबी में इसकी बुआई कर सकेंगे। ये शीघ्र पक जाएंगी। 100 से 110 दिन में ये पक कर काटने लायक हो जाएगी। 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादन होता है। ये आदिवासी बेल्ट में बोया जाता है। वहां घी के विकल्प के तौर पर इसका प्रयोग करते हैं। 80 रुपए प्रति किलो की दर से इसकी बिक्री होती है।

रामतिल की तीन किस्में विकसित की गई हैं।
रामतिल की तीन किस्में विकसित की गई हैं।

JNS 2015-9: मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को ध्यान में रखकर ये किस्में विकसित की गई हैं। सिंचित और असिंचित क्षेत्र में मध्य खरीफ के समय इसकी बुआई करें। 100 दिन में ये तैयार हो जाएगी। इससे JNS-9 की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक उपज और 9 प्रतिशत अधिक तेल की मात्रा मिलेगी। पौधे छोटे होंगे और गिरेंगे नहीं। कई गंभीर बीमारी और कीटों से प्रतिरोधी किस्म है। 541 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा।

JNS2016-1115: इसे देश के किसी भी हिस्से में बो सकेंगे। सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में इसकी बुआई हो सकेगी। मध्य खरीफ में इसकी बुआई कर सकेंगे। इससे अधिक उपज प्राप्त होगी। रामतिल के साथ किसान मधुमक्खी पालन भी कर पाएंगे। इससे एक से दो क्विंटल जहां उत्पादन बढ़ जाएगा। वहीं तीन से चार हजार रुपए प्रति एकड़ प्राप्त राशि भी प्राप्त कर पाएंगे।

डायरेक्टर कौतू ने कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन को 8 किस्मों की जानकारी दी।
डायरेक्टर कौतू ने कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन को 8 किस्मों की जानकारी दी।

किसानों को अभी करना होगा इंतजार

किसानों को इन नई किस्मों के लिए अभी एक साल और इंतजार करना होगा। इस साल अभी ब्रीडर बीज के तौर पर इसका उत्पादन कराएंगे। इसके बाद ये सर्टिफाइड बीज के तौर पर किसानों को 2024 से उपलब्ध होगी। 8 नई किस्में किसानों के लिए किसी क्रांति से कम नहीं होंगी। ये सभी किस्में बदलते जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील होंगी।

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