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डाउनलोड करेंकछुआ गति से चल रहे इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के दो साल बाद अफसरों ने 2023 तक यानी 27 माह में 17 किमी में मेट्रो चलाने का दावा किया है। यह कितना संभव होगा, इस पर भास्कर ने मेट्रो काम में सबसे तेज माने जाने वाले नागपुर प्रोजेक्ट के एमडी और दिल्ली मेट्रो के टेक्निकल डायरेक्टर से जाना।
उन्होंने कहा कि यह मुश्किल है, क्योंकि मेट्रो के कोच बनने में ही दो साल और इसके बाद सिग्नल, इंटीग्रेटेड सिस्टम, स्टेशन आदि तैयार होने में कम से कम एक साल लग जाएगा। यह भी तब संभव होगा जब साइट क्लियर हो और 24 घंटे काम किया जाए। हर दिन का टारगेट फिक्स हो। नागपुर मेट्रो को ट्रैफिक एरिया में 5 किमी रूट तैयार करने में 27 माह लगे थे।
इंदौर मेट्रो के हाल, न कोच के ऑर्डर हुए न डिजाइन फाइनल
इंदौर में काम शुरू हुए एक महीना पूरा हो चुका है, लेकिन अभी तक 5-6 पिलर ही आधे-अधूरे नजर आ रहे हैं। मेट्रो के कोच (रोलिंग स्टॉक) विदेश में ही तैयार होते हैं। इसके लिए ऑर्डर देने के बाद दो साल का समय लगता है। इंदौर मेट्रो पर तो इसकी न डिजाइन फाइनल हुई है और न ऑर्डर दिया गया है। इसके बाद सिग्नल, पूरा इंटीग्रेटेड सिस्टम भी कोच के साथ ही इंस्टॉल होता है। यह सबसे संवेदनशील काम होता है।
17 किमी की क्लीयर साइट है तब भी कम से कम 3 साल लग जाएंगे
इंदौर के लिए बस यही बेनिफिट है कि गांधीनगर से मुमताज बाग तक का पूरा ट्रैक क्लीयर है, यहां न जमीन अधिग्रहण करना है और न पेड़ों की शिफ्टिंग करना है। फिर भी ट्रैक तैयार कर ट्रेन चलाने में कम से कम तीन साल लग जाएंगे।
इंस्पेक्शन और ट्रायल
तैयार रूट की जांच के लिए दिल्ली मेट्रो की टीम बारीकी से जांच करती है। बार-बार रूट की मजबूती का ट्रायल होता है। इसके बिना काम आगे नहीं बढ़ता।
स्टेशन तैयार करना
इसमें कम से कम छह माह लगते हैं। नागपुर की टीम को भी सबसे ज्यादा समय इसी में लगा, क्योंकि स्टेशन के साथ काफी सुविधाएं जुड़ी होती हैं।
हर दिन की प्लानिंग करना होगी, 24 घंटे निरंतर काम करना होगा
27 माह का प्लान तैयार कर प्रतिदिन की मॉनिटरिंग करना होगी। एक साथ कई फ्रंट पर काम करना होगा। मेट्रो का सबसे ज्यादा काम नाइट में होता है। इसके लिए तीन शिफ्ट में काम करने वाली टीम लगाना होगी। रोलिंग स्टॉक का ऑर्डर तत्काल देना होगा क्योंकि उसे इंस्टॉल करने में भी महीनों का समय लगता है।
भास्कर एक्सपर्ट
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