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डाउनलोड करेंसादलपुर थाना क्षेत्र के बिजूर गांव में मंदिर के समीप निर्माण खुदाई के दौरान ध्यान मुद्रा में प्रतिमा की ग्रामीणों ने मंदिर में रखकर पूजन शुरू कर दिया। हालांकि रविवार को श्वेतांबर और दिगम्बर समाज के लोग इंदौर और धार-राजगढ़ से बिजूर गांव पहुंचे। दिगम्बर समाज से प्रतिमा को भगवान आदिनाथ की बताई, तो श्वेतांबर ने प्रतिमा पर अंकित चित्रों को शंख और वृषभ बताते हुए इसे तीर्थंकर नेमीनाथ की प्रतिमा बताया।
धार श्री संघ की और से अनिल छाजेड़ और राजगढ़ में मोहनखेड़ा ट्रस्ट की और से संतोष नेताजी बिजूर पहुंचे थे। ये प्रतिमा को मोहनखेड़ा तीर्थ ले जाना चाहते थे, हालांकि ग्रामीणों ने इसे मंदिर में ही पूजन करने की बात कही। इधर, इंदौर के बेटमा से भी दिगम्बर समाज से जुड़े लोग बिजूर पहुंचे थे। इन्होंने भी प्रतिमा को देखा है।
हमें मालूम है पूजन पद्धति
शनिवार को प्रतिमा मिलने की सूचना सार्वजनिक होने के बाद इसे लोगों ने गौतम बुद्ध की प्रतिमा बताया। इधर, सूचना के बाद लोग इंदौर-राजगढ़ से बिजूर पहुंच गए, लेकिन दूसरे दिन सुबह तक राज्य पुरातत्व विभाग और प्रशासन की और से कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। प्रतिमा करीब 800 वर्ष पुरानी बताई जा रही है। इसकी तिथि भी अंकित है। जहां प्रतिमा मिली है, उस गांव में एक भी जैन परिवार नहीं है। इसके बावजूद ग्रामीणों ने प्रतिमा को साफ करने के साथ उसके समक्ष दीपक प्रज्जवलित किए।
अनुमान है कि 800 वर्ष के बीते वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में जो भी परिस्थितियां निर्मित हुई होगी, उसके कारण पाषाण की यह प्रतिमा भूमि के भीतर जमींदोज हो गई थी। गांव में पहुंचे लोगों ने ग्रामीणों से समाज के तीर्थंकर की प्रतिमा होने की जानकारी देने के साथ प्रतिमा ले जाने की बात कही। उन्होंने बताया कि जैन समाज के लोग विधिवत प्रतिमा की पूजा पद्धति करते हैं। प्रतिमा खंडित है, किंतु इसे मोहनखेड़ा में सुरक्षित और संरक्षित रखा जा सकता है।
धार तहसीलदार का कहना है कि जैन समाज के लोग प्रतिमा को ले जाने की मांग कर रहे थे। हमने गांव पहुंचकर उन्हें शासन के नियमों की जानकारी दी है। उनसे कहा है कि इस प्रतिमा की मांग को लेकर आप अपनी कार्रवाई कर सकते हैं। प्रशासनिक स्तर पर इसे पुरातत्व विभाग को सौंपा जाएगा। प्रतिमा को थाने लाया गया था। जहां से उसे सुरक्षित मांडू में भिजवा दिया गया है।
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