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डाउनलोड करेंएक समय था जब महिलाएं रात में निकलने से डरती थीं, लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। ग्वालियर की महिलाओं ने वीरांगना एक्सप्रेस (छोटे सवारी वाहन) चलाईं। इसके बाद स्मार्ट सिटी की बसों में कंडेक्टर बनीं और अब वह फैक्ट्री में नाइट शिफ्ट में ड्यूटी कर रही हैं। इस बदलाव की शुरुआत मालनपुर स्थित एक निजी कंपनी से हुई है।
महिलाओं की नाइट शिफ्ट में ड्यूटी के लिए फैक्टरी में कई बदलाव किए गए। शुरुआत 3 महिलाओं से हुई और सवा साल इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया गया। इसका रिव्यू करने के बाद इसे लागू कर दिया गया है। फैक्ट्री में 17 महिलाओं का रोस्टर बनाया गया है, जो जनरल शिफ्ट (दिन) और नाइट शिफ्ट में ड्यूटी कर रही हैं।
विजिट में अभिभावकों ने देखी सुरक्षा, तब हां की
कंपनी के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट एचआर अविनाश मिश्रा बताते हैं कि काम आसान नहीं था। अभिभावकों को बेटियों की चिंता थी। इसलिए हमने उन्हें कैंपस विजिट करवाई। उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था देखी और उसके बाद बेटी को नाइट शिफ्ट करने की इजाजत दी। नर्सिंग फीमेल स्टाफ भर्ती किया। पुरुष वर्कर को ट्रेनिंग दी।
अभिभावकों ने व्यवस्थाएं देखने के बाद काम की दी परमिशन
मुझे यहां ढाई साल हो गए हैं। जब मैंने अभिभावकों को नाइट शिफ्ट के बारे में बताया तो उन्होंने यहां विजिट की। सुरक्षा व्यवस्था से संतुष्ट होने के बाद मुझे परमिशन मिली। -प्रियंका राज, ऑफिसर ओ-1
दिन में बस से ऑफिस जाती थी, अब घर लेने आती है कैब
जनरल शिफ्ट (दिन) के लिए मैं बस में ही ऑफिस जाती थी, लेकिन जब से नाइट में शिफ्ट लगती है। तबसे मुझे कैब घर लेने आती है और छोड़ने भी जाती है। -संगीता यादव, ऑफिसर ओ-1
शुरुआत में नर्वस थी, नाइट शिफ्ट अब रुटीन बन गया है
मैं सोप ऑपरेशन में हूं, जहां पूरा टेक्निकल पार्ट देखना होता है। शुरुआत में नर्वस थी, लेकिन अब नाइट में ड्यूटी करना रुटीन में शामिल हो गया है। -रीना सिंह, ऑफिसर
कंपनी की ओर से यह बदलाव किए गए
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