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डाउनलोड करेंपिछले साल तक लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग के 50% बोर खनन ही सफल हो पा रहे थे। जमीन में 500 फीट गहराई तक नलकूप खनन कराने में 1 से डेढ़ लाख रुपए खर्च आता है। इसे देखते हुए अब तकनीक का इस्तेमाल कर जमीन में पानी तलाश कर बाेर किए जा रहे हैं। इसमें अच्छी सफलता मिल रही है। जिले में भू-गर्भ में लावा से बनी कठोर चट्टानों की 50-75 फीट मोटाई की 6 परतें हैं।
450 फीट गहराई में दूसरी-तीसरी परत के बीच जल शिराएं हैं। बाेर खनन से पहले सैटेलाइट नक्शे की मदद से विभाग के तकनीकी अमले ने जमीन में जल शिराएं तलाशी। जीपीएस के जरिए जमीन में पानी के बहाव की दिशा व गति का पता लगाकर खनन के लिए स्पॉट तय किए। इसके परिणाम सुखद रहे हैं।
भू-जलविद डॉ. आरजी नागर के अनुसार पिछले 9 महीनों में ब्यावरा-नरसिंहगढ़ ब्लॉक के 70 गांवों में जल जीवन मिशन के तहत ये प्रयोग किया। 66 गांवों में खनन के दौरान पर्याप्त पानी मिला। इससे शासन के करीब 40 लाख रुपए की बचत हुई, साथ ही ग्रामीणों को गांव में जीवित जलस्रोत भी मिल गए हैं।
मंडे पॉजिटिव: शासन के करीब 40 लाख रुपए की बचत हुई, गांव में जीवित जलस्रोत भी मिले
ये हैं तकनीक... इस प्रक्रिया से जमीन में पानी का पता लगाया
1. टोपोसिट : एक प्रकार का नक्शा, जिससे नदी-नालों की स्थिति, समुद्र तल से ऊंचाई मापी। पानी के बहाव की दिशा व गति का पता लगाया।
2. सेटेलाइट नक्शा : गांव का नक्शा डाउनलोड कर लीनियामेंट तकनीक के जरिए जमीन में जल शिराएं देखी, जीपीएस से सत्यापित कर स्पॉट तलाशे गए।
3. जियो फिजिकल रेस्टिविटी सर्वे : अक्षांश व देशांश से पॉइंट तय किया। भू-गर्भीय संरचना कठोर, नर्म, पानी वाले पत्थर (फ्रेक्चर रॉक) खोजे गए।
4 गांव,... जिनमें पहली बार नलकूप में मिला पर्याप्त पानी
1. तरेना : करीब 240 परिवारों के 1200 लो गों के लिए हैंडपंप व कुएं जलापूर्ति के माध्यम थे। गर्मीं में भीषण किल्लत रहती थी।
2. जंगीबड़ : क रीब 390 पर परिवारों के 1182 लो गों के लिए कोई जल स्रोत नहीं था। पेयजल परिवहन कर जरूरत पूरी करते थे।
3. आमडोर : करीब 200 परिवारों के 750 लोगों के लिए जलस्रोतों में बहुत कम पानी मिलता था। जरूरतें पूरी नहीं हो पाती।
4. चौमा : 500 परिवारों के 1800 लो ग डेढ़ किमी दूर से पानी लाते थे। पहले से 7 हैंडपंप हैं, गर्मीं में जलस्तर नीचे चला जाता था।
20 गांवाें में बारहमासी समस्या हल हुई
20 गांव ऐसे भी हैं, जहां पेयजल की बारहमासी समस्या अब हल हो गई हैं। नरसिंहगढ़ के चौमा, रलायती, बरेड़ी, आंदल हेड़ा, सुकली, जामुनिया जोहार आदि गांवों नलों से जल सप्लाई भी शुरू हो गई है।
जिले के भू-गर्भ में जल की ये स्थिति
गहराई : बरसात के दिनों में 200 फीट भू-गर्भ में पेयजल मिलता है, जबकि गर्मीं के दिनों में 450 से 500 ;फीट की गहराई तक पानी मिल रहा है।
संरचना : भू-गर्भ में लावा से बनी कठोर चट्टानों की 50-75 फीट मोटाई की 6 परतें हैं। 450 फीट गहराई में दूसरी-तीसरी परत के बीच जल शिराएं हैं।
री-चार्ज : ;कठोर चट्टानें होने से वर्षा जल आसानी से भू-गर्भ में नहीं पहुंच पा रहा है। पुराने सूखे बोर से या अन्य तरीकों से जलस्रोत री-चार्ज नहीं कर रहे।
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