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डाउनलोड करेंभोपाल शहर जायके के लिए भी मशहूर है। यहां का टेस्ट 150 साल पुरानी अफगानी कुजीन से इंस्पायर्ड है। भोपाल में खानसामा रखने का कल्चर था और सारे जायकों का असल सीक्रेट या तो शाही परिवार को पता होता था या फिर इन खानसामाओं को। सेंट्रल इंडिया में बसे होने के कारण बाद में यहां मुगल और मराठा पकवानों का जायका भी घुल-मिल गया।
अगर आप नॉन-वेज के शौकीन हैं तो भोपाल परफेक्ट प्लेस है। यहां नॉन-वेज में डिशेज की तमाम वैराइटीज हैं। इन्हीं में से एक है- कोरमा। नवाबों की किचन से निकलने की वजह से इस डिश का नाम भोपाली कोरमा पड़ा। इसे रिच और स्पाइसी ग्रेवी में धीमी आंच पर पकाया जाता है। दालचीनी, इलायची और दूसरे मसालों की खुशबू ऐसी होती है कि पकाते ही भूख लग आए।
दूसरे नॉनवेज जायकों से इस तरह अलग
भोपाली कोरमा को खास बनाते हैं इसमें पड़ने वाले खड़े गरम मसाले। मटन या चिकन के पीस को रिच और स्पाइसी ग्रेवी में साबुत मसालों के साथ पकाया जाता है। कोरमा को कुलीन नवाबी हलकों में जोर से चबाना अशिष्टता माना जाता था। इसीलिए, इसमें खड़े मसालों को सीधे ग्रवी में डालने के बजाय पोटली मसाला प्रयोग करते थे। मलमल की एक पोटली में मसाला बांधकर शोरबे (ग्रेवी) में डाल दिया जाता है। यह फ्रांस की डिश गार्नी की तरह है। इसमें जड़ी-बूटियों को एक कपड़े में बांधकर खाना पकाते समय सॉस डाल देते हैं। खैर, कोरमा में बाद में ऊपर से महकते मसाले भी डालते हैं।
रुमाली रोटी, नांद के साथ करते हैं सर्व
हकीम के ओनर मोहम्मद हुसैन के मुताबिक, लोग नॉन वेज में बटर चिकन, रोगन जोश और दूसरी डिशेस खाने आते हैं। खास यह है कि कोरमा सभी का फेवरिट है। लोग इसे जरूर ऑर्डर करते हैं। रुमाली रोटी, नांद और शीरमाल के साथ इसे सर्व किया जाता है। ये काफी पुरानी डिश है। हकीम 1975 से इसे सर्व करता आ रहा है।
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